निकट सम्बन्धियों का सहारा हमारा प्रिय नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम

वह मनुष्य जिसने अपने व्यक्तित्व से, अपने गुणों से और अपने कार्यों से सम्पूर्णता का उदाहरण दिखाया और सम्पूर्ण मानव कहलाया वह मुबारक नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) हैं।

निकट सम्बन्धियों का सहारा हमारा प्रिय नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम


वह मनुष्य जिसने अपने व्यक्तित्व से, अपने गुणों से और अपने कार्यों से सम्पूर्णता का उदाहरण दिखाया और सम्पूर्ण मानव कहलाया वह मुबारक नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) हैं।


यह लेख सर्वप्रथम अल-फज़ल इंटरनेशनल (उर्दू) में प्रकाशित हुआ इसका हिंदी अनुवाद लाईट ऑफ़ इस्लाम के लिए फज़ल नासिर ने किया है।

जावेद इक़बाल नासिर, जर्मनी

7 फरवरी 2022

हज़रत मसीह मौऊदअ स हज़रत मुहम्मदस अ व के बारे में फ़रमाते हैं:

उसने ख़ुदा से सर्वाधिक प्रेम किया और मानवजाति की हमदर्दी में उसकी जान सर्वाधिक पिघली।

अल्लाह तआला उस मनुष्य से प्रेम करने लग जाता है और उसके गुनाह माफ़ कर देता है जो उसके प्रिय रसूल मुहम्मदस अ व से प्रेम का व्यवहार करता है। उनकी बातों को मानता और उनके साथ श्रद्धा और आदर से पेश आता है। जैसा कि फ़रमाया:

قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ

तू कह दे यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो अल्लाह तुम से प्रेम करेगा और तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा।[1]

एक अन्य स्थान पर तो अल्लाह तआला ने नबी करीमस अ व का अधिकार मोमिनों पर उनकी जानों से भी अधिक माना है जैसा कि फ़रमाया:

النَّبِيُّ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنْفُسِهِمْ

नबी मोमिनों पर उनकी अपनी जानों से भी ज़्यादा अधिकार रखता है।[2]

इसी प्रकार अल्लाह तआला ने सब निकट सम्बन्धियों से बढ़कर अल्लाह तआला और उसके रसूलस अ व से प्रेम और आदर सत्कार करने का निर्देश दिया है और ऐसा न करने वालों को डराया भी है जैसा कि फ़रमाया:

قُلْ إِنْ كَانَ آبَاؤُكُمْ وَأَبْنَاؤُكُمْ وَإِخْوَانُكُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ وَعَشِيرَتُكُمْ وَأَمْوَالٌ اقْتَرَفْتُمُوهَا وَتِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسَاكِنُ تَرْضَوْنَهَا أَحَبَّ إِلَيْكُمْ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَجِهَادٍ فِي سَبِيلِهِ فَتَرَبَّصُوا حَتَّى يَأْتِيَ اللَّهُ بِأَمْرِهِ

तू कह दे कि यदि तुम्हारे बाप, दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारे साथी और तुम्हारे क़बीले और वे धन जो तुम कमाते हो और वह व्यापार जिसमें घाटे का भय रखते हो और वे घर जो तुम्हें पसन्द हैं अल्लाह और उसके रसूल से और अल्लाह की राह में जिहाद करने से तुम्हें अधिक प्या रे हैं तो फिर प्रतीक्षा करो यहाँ तक कि अल्लाह अपना निर्णय ले आए।[3]

अल्लाह तआला ने अपने प्रिय रसूल मुहम्मदस अ व से इतना प्रेम करने को क्यों कहा? इसीलि ए कि आप सृष्टिकर्ता व पालनहार की सृष्टि के साथ प्रेम व स्नेह का सम्बन्ध रखते थे और उन शब्दों का आप भी जीता जागता उदाहरण थे जो आप ने कहे, समस्त लोग अल्लाह तआला की सन्तान हैं और अल्लाह तआला को अपनी सृष्टि में से वह व्यक्ति सबसे अधिक पसन्द है जो उसकी सन्तान (अर्थात् लोगों जीव जन्तुओं) के साथ अच्छा व्यवहार करता है।[4] आँहज़रतस अ व ख़ुदा की सृष्टि से इस क़दर प्रेम व स्नेह रखते थे जिसका उदाहरण किसी अन्य विभूति में नज़र नहीं आता। वैसे तो संसार के समस्त जीव आँहज़रत के एहसान के नीचे हैं परन्तु सबसे अधिक उपकार और आभारी आँहज़रतस अ व के निकट सम्बन्धी और मित्र दिखाई देते हैं जो आप के घर पर रहते थे या जिनका आप के यहाँ आना-जाना था। कोई भी तो आप के स्नेह, प्रेम और कृपा से वंचित न था। इस विषय में आपकी शिक्षाओं व आदेशों का ख़ज़ाना इतना विस्तृत है कि उसका अनुमान लगाना एक कठिन कार्य है। क़ुर्आन करीम की बताई हुई शिक्षाएं, आँहज़रतस अ व के प्रवचन व मार्गदर्शन जो आप के द्वारा हम तक पहुँचे हैं, उनमें निकट सम्बन्धियों, मित्रों, प्रियों व अपनों के अधिकारों के बारे में एक विशाल ख़ज़ाना उपलब्ध है। जहां माता-पिता व उनके सम्बन्धियों को एक विशेष स्थान प्राप्त है वहीं पत्नियों तथा उनके सम्बन्धियों के साथ अच्छे व्यवहार पर बल तथा शिक्षा के साथ साथ उनके नख़रों को बर्दाश्त करना एक अच्छा कर्म क़रार दिया गया है। बहन भाइयों के साथ प्यार और स्नेह का व्यवहार करना प्रत्येक का दायित्व समझा गया है। अपने बेटों, बेटियों और दामाद के साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार करना भी आप की शिक्षा व मार्गदर्शन से ख़ूब स्पष्ट होता है। घर के नौकर हों या आप के नवासे सभी से आप को बहुत प्यार था। अतः क़ुर्आन करीम माता-पिता व सम्बन्धियों के साथ उपकार व स्नेह के साथ बर्ताव करने के बारे में फ़रमाता है।

وَاعْبُدُوا اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَى وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنْبِ وَابْنِ السَّبِيلِ

और अल्लाह की उपासना करो किसी वस्तु को उसका भागीदार ठहराओ और मातापिता के साथ उपकार करो और निकट सम्बन्धियों से भी और अनाथ तथा बेसहारा लोगों से भी और रिश्तेदार पड़ोसियों से भी और ग़ैर रिश्तेदार पड़ोसियों से भी और साथ उठनेबैठने वालों से भी और यात्रियों से भी।[5]

إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُ بِالْعَدْلِ وَالْإِحْسَانِ وَإِيتَاءِ ذِي الْقُرْبَى وَيَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ وَالْبَغْيِ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ

कह कि सम्बन्धियों के साथ इंसाफ़ और एहसान का व्यवहार करने का ख़ुदाई हुक़्म[6] आपस अ व के द्वारा मानवजाति ने सुना और

وَآتَى الْمَالَ عَلَى حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينَ

का आदेश क़ुर्आन करीम के द्वारा आपस अ व ने संसार को दिया और बताया कि अपने धन से प्रेम होने के बावजूद अपने सम्बन्धियों, अनाथों और बेसहारा लोगों को नहीं भूलना बल्कि धन के प्रेम से अधिक उनसे प्रेम करना है और उन पर भी माल ख़र्च करना है।[7]

एक और आदेश में आपस अ व ने यहाँ तक फ़रमाया कि यदि एक मनुष्य अपनी कमाई से अपने घर वालों पर अल्लाह तआला को प्रसन्न करने के लिए ख़र्च करता है तो यह कार्य अल्लाह तआला को इतना पसन्द आता है कि अल्लाह तआला उसे सदक़ा (दान) में सम्मिलित कर लेता है जैसा कि फ़रमाया

اِنَّ الْمُسْلِمَ اِذَا اَنْفَقَ عَلَی اَھْلِہِ نَفَقَۃً وَ ھُوَ یَحْتَسِبُھَا کَانَتْ لَہُ صَدَقَۃً

एक मुसलमान जो माल भी अपने घर वालों पर पुण्य की नीयत से ख़र्च करता है वह उसके लिए सदक़ा हो जाता है।[8]

सम्बन्धियों का ध्यान रखने पर आपस अ व ने इतना बल दिया है कि उन पर ख़र्च किए गए धन का पुण्य दोगुना क़रार दिया। फ़रमाया कि एक पुण्य तो सम्बन्धियों के साथ अच्छे व्यवहार का और दूसरा सदक़े का।

हज़रत मैमूनार ज़ से रिवायत है कि उन्होंने एक लौन्डी आज़ाद की और उसका ज़िक्र रसूलुल्लाहस अ व से कि या तो आप ने फ़रमाया:

لَوْ اَعْطَیْتِھَا أَخْوَالَکِ کَانَ أَعْظَمَ لِأَجْرِکِ

यदि तुम उसे अपने मामा को दे देतीं जो ज़्यादा पुण्य मिलता।[9]

माता-पिता का आपस अ व ने इतना उच्च स्थान बयान फ़रमाया कि उनकी अवहेलना को बड़ा गुनाह क़रार दिया। एक स्थान पर फ़रमाया:

الْوَالِدُ أَوْسَطُ أَبْوَابِ الْجَنَّةِ

पिता स्वर्ग का सर्वश्रेष्ठ द्वार है।[10]

और यूँ भी फ़रमाया:

هُمَا جَنَّتُكَ وَنَارُكَ

तुम्हारे मातापिता तुम्हारे स्वर्ग तथा नर्क हैं।[11]

अर्थात् उनकी सेवा से ही तुम स्वर्ग के वारिस बन सकते हो या नर्क से दूर हो सकते हो।

दूध के रिश्तेदारों के साथ प्रेम भी आपस अ व के व्यक्तित्व में नज़र आता है। एक बार आपस अ व बैठे हुए थे कि आपके दूध के रिश्ते के पिता आए। आपने उनके बैठने के लिए चादर का एक पल्लू भी बिछा दिया और जब दूध के रिश्ते के भाई को आते देखा तो आप उठ खड़े हुए और उनको अपने सामने बैठने को कहा।

औरतों के साथ अच्छा व्यवहार और उनकी कोमलता व नज़ाक़त का अनुमान आपस अ व के उन शब्दों से ख़ूब स्पष्ट होता है जब आप ने एक सहाबी को तेज़ ऊँट भगाते देखा जिन पर औरतें सवार थीं तो फ़रमाया ऊँटों को आहिस्ता हाँको! देखते नहीं ये नाज़ुक शीशे हैं, कहीं ये टूट न जाएं।

आपस अ व के कथनानुसार यदि कोई पति अपनी पत्नि को प्यार से पानी पिलाता है तो वह भी पुण्य का हक़दार हो जाता है जैसा कि फ़रमाया:

जब कोई अपनी पत्नी को पानी पिलाता है तो उसे भी पुण्य मिलता है।

हज़रत उसामार ज़ बयान करते हैं कि आँहज़रतस अ व की दूध के रिश्ते की माँ हज़रत हलीमा सादियार ज़ मक्का में आईं और हुज़ूर से अकाल और पशुओं के नष्ट होने का उल्लेख किया तो हुज़ूरस अ व ने दूध के रिश्ते की माँ को 40 बकरियाँ और एक माल से लदा हुआ ऊँट दिया।

अपनी पत्नियों के साथ तो आपस अ व का अपार प्रेम था परन्तु उनकी सहेलियाँ भी इन कृपाओं से वंचित न थीं। रिवायत में आता है कि आप का यह दस्तूर था कि घर में जब कभी कोई जानवर ज़िबह करते तो उसका गोश्त हज़रत ख़दीजार ज़ की सहेलियों को भी भिजवाने का आदेश देते। हज़रत आयशार ज़ की प्रशंसा इस तरह करते जिस तरह करने का हक़ था। फ़रमाते आयशा को दूसरी औरतों पर इस तरह प्राथमिकता है जिस प्रकार समस्त भोजनों पर सरीद को। (सरीद अरब का एक प्रसिद्ध व्यंजन था जो गोश्त और मैदा इत्यादि डालकर तैयार किया जाता था और बहुत पसंदीदा होता था।)

हमारे प्या रे आक़ा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ास अ व के प्रेम और उच्च आचरण का एक उदाहरण अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार भी वर्णन किया जाता है। रिवायत है कि एक दिन हज़रत आयशा घर पर आँहज़रतस अ व से ऊँची आवाज़ में बोल रही थीं कि उधर से उनके पिता हज़रत अबू बक़र सिद्दीक़र ज़ आए। वह ये बात सहन न कर सके और अपनी बेटी को मारने के लिए आगे बढ़े । आँहज़रतस अ व बाप और बेटी के बीच आ गए और हज़रत आयशार ज़ को सज़ा से बचा लिया। जब हज़रत अबू बक़रर ज़ चले गए तो रसूल-ए-करीमस अ व ने हज़रत आयशार ज़ से मज़ाक में कहा: देखा आज मैंने तुम्हें तुम्हा रे पिता जी से कैसे बचाया[12]

इस तरह आपस अ व ने हज़रत आयशा को सज़ा से बचाने के साथ-साथ मज़ाक करके उनके मन के बोझलपन को भी दूर किया।

बच्चों के साथ करुणा भाव के उदाहरण तो बहुत हैं। लिखा है कि हुज़ूर अपने आज़ाद किए हुए ग़ुलाम ज़ैदर ज़ को न केवल बहुत पसन्द करते थे बल्कि उनके बेटे उसामार ज़ से भी बुहत प्यार करते और अपने बच्चों की भाँति उसे रखते। हुज़ूरस अ व अपने नवासे हुसैनर ज़ को एक जांघ पर बिठा लेते और उसामार ज़ को दूसरी जांघ पर और दोनों को सीने से लगाकर भींचते और फ़रमाते: हे अल्लाह मैं इनसे प्यार करता हूँ तू भी इनसे प्यार कीजियो।[13]

हज़रत अबू क़तादहर ज़ से रिवायत है कि रसूलुल्लाहस अ व नमाज़ पढ़ते थे तो कई बार अबू उमामा बिन्त ज़ैनबर ज़ जो कि आप की नवासी थी को उठा लेते और जब आप सजदा में जाते तो उसको ज़मीन पर बिठा देते।

भाइयों के साथ मेल-जोल, प्रेम और अच्छा व्यवहार करने पर आपस अ व बल देते थे। हज़रत अबू हुरैरार ज़ से रिवायत है कि रसूलुल्लाहस अ व ने फ़रमाया:

एक व्यक्ति अपने भाई से मिलने के लिए किसी दूसरे गाँव गया। अल्लाह तआला ने उसके मार्ग में एक फ़रिश्ते को नियुक्त कर दिया जब वह वहाँ से गुज़रा तो फ़रिश्ते ने उससे पूछा कहाँ जा रहे हो? उसने उत्तर दिया उस गाँव में मेरा एक भाई रहता है मैं उससे मिलने जा रहा हूँ। फ़रिश्ते ने पूछा क्या उसका तुझ पर कोई एहसान है? जिसको उतारने के लिए उसकी ओर जा रहा है? वह बोला नहीं कोई एहसान उसका मुझ पर नहीं! केवल अल्लाह तआला के लिए मैं उससे प्रेम करता हूँ और मिलने जाता हूँ। इस पर फ़रिश्ता बोला मैं अल्लाह तआला की ओर से भेजा गया हूँ और तुझे यह बताने आया हूँ कि अल्लाह तआला भी तुझ से प्रेम करता है जैसे तू उससे प्रेम करता है।

यह भी आपस अ व का ही कथन है जिसमें आप ने फ़रमाया:

مَنْ أَشَارَ عَلَى أَخِيهِ بِحَدِيدَةٍ لَعَنَتْهُ الْمَلَائِكَةُ

जो व्यक्ति अपने भाई की ओर किसी शस्त्र से इशारा करे तो फ़रिश्ते उस पर लानत भेजते हैं।[14]

भाई की भावनाओं का ध्यान रखने पर बल देते हुए फ़रमाया:

तुम में से कोई अपने भाई के सौदे पर सौदा करे और ही उसके विवाह के प्रस्ताव पर अपना प्रस्ताव भेजे।[15]

एक अन्य स्थान पर फ़रमाया:

إِذَا دَعَا الرَّجُلُ لِأَخِيهِ بِظَهْرِ الْغَيْبِ قَالَتْ الْمَلَائِكَةُ آمِينَ وَلَكَ بِمِثْلٍ

यदि कोई व्यक्ति अपने भाई के लिए उसकी अनुपस्थिति में दुआ करता है तो फ़रिश्ते आमीन कहते हैं और प्रार्थना करते हैं कि तेरे भी ऐसा ही हो।[16]

आपस अ व ने बीमार भाई की तीमारदारी (देखभाल और मिलने जाने) को भी एक शुभ कार्य क़रार दिया है जैसा कि फ़रमाया, जो व्यक्ति अपने मुसलमान भाई की तीमारदारी के लिए जाए उसका उदाहरण ऐसा है जैसा कि वह जन्नत के खजूर के बाग़ में चल रहा है यहाँ तक कि वह बैठ जाए। जब वह बैठ जाता है तो ख़ुदा की अनुकंपा उसे ढाँप लेती है। यदि सुबह के समय वह तीमारदारी के लिए जाता है तो 70 हज़ार फ़रिश्ते शाम तक उसके लिए दुआ करते हैं और यदि शाम के समय गया हो तो 70 हज़ार फ़रिश्ते सुबह तक उसके लिए दुआ करते हैं।

हज़रत अबू ज़रर ज़ से रिवायत है कि नबी करीमस अ व ने फ़रमाया, तेरा अपने भाई के साथ मुस्कुरा कर व्यवहार करना, भलाई का हुक़्म देना और बुराई से रोकना सदक़ा है। इसी प्रकार मार्ग से पत्थर, काँटा और हड्डी इत्यादि का दूर करना और अपने डोल का पानी किसी भाई के डोल में डालना भी सदक़ा है।

बेटी को भी हुज़ूर पाकस अ व ने एक विशेष स्थान प्रदान किया। अपनी पुत्री फ़ातिमार ज़ के बारे में फ़रमाया:

فَإِنَّمَا هِيَ بَضْعَةٌ مِنِّي يُرِيبُنِي مَا أَرَابَهَا وَيُؤْذِينِي مَا آذَاهَا

मेरी बेटी मेरे शरीर का अंग है मुझे वह चीज़ बुरी लगती है जो उसे बुरी लगती है और मुझे कष्ट देती है वह चीज़ जो उसे कष्ट दे।[17]

हज़रत अलीर ज़ बयान करते हैं कि एक बार नबी करीमस अ व रात को हमारे घर पधारे और मुझे और फ़ातिमार ज़ को तहज्जुद (कि नमाज़) के लिए जगाया। फिर आपस अ व अपने घर चले गए और कुछ देर नवाफ़िल (की नमाज़) अदा की। इस दौरान हमारे उठने की कोई आहट इत्यादि महसूस की तो पुनः पधारे और हमें जगाया और फ़रमाया उठो और नमाज़ पढ़ो। हज़रत अलीर ज़ कहते हैं कि मैं आँखें मलता हुआ उठा और कहा ख़ुदा की क़सम जो नमाज़ हमारे लिए मुक़द्दर है हम वही पढ़ सकते हैं। हमारी जानें अल्लाह के अधिकार में हैं वह जब चाहे हमें उठा दे। रसूलकरीमस अ व वापस लौटे। आपस अ व ने अचम्भे से अपनी जांघ पर हाथ मारते हुए मेरा ही कथन दोहराया कि हम कोई नमाज़ नहीं पढ़ सकते सिवाय उसके जो हमारे लिए मुक़द्दर है फिर आप ने यह आयत तिलावत कीوَكَانَ الْإِنْسَانُ أَكْثَرَ شَيْءٍ جَدَلًا[18] कि मनुष्य अधिकांश बातों में बहस करने वाला है।

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाहर ज़ बयान करते हैं कि रसूलस अ व ने फ़रमायाः

जिस व्यक्ति की तीन बेटियां हों और वह उनके रहनसहन का उपयुक्त प्रबंध करता है, करुणा भाव से व्यवहार करता है तथा उनके पालनपोषण का ध्यान रखे तो उसके लिए जन्नत अनिवार्य हो जाती है। आपस अ व से प्रश्न किया गया है कि हे अल्लाह के रसूलस अ व यदि किसी की दो बेटि यां हों तो? आप ने फ़रमाया हाँ यदि दो हों तब भी। फिर आप से एक बेटी के बारे में पूछा गया तो आप ने फ़रमाया हाँ यदि एक ही हो (तब भी)

बेटी के विवाह से पूर्व उसकी अनुमति को आपस अ व ने अनिवार्य ठहराया जैसा कि फ़रमाया: “जब कोई व्यक्ति अपनी बेटी का विवाह करना चाहे तो पहले उस से अनुमति ले।”

नबी पाकस अ व अपने ससुर हज़रत अबू बक़रर ज़ का हमेशा आदर करते और फ़रमाया करते थे, कोई भी नहीं जो मुझ पर अबू बक़र की तुलना में अधिक एहसान करने वाला हो। उन्होंने अपनी जान और माल को मुझ पर न्योछावर किया और अपनी बेटी आयशार ज़ का मुझसे विवाह भी कि या।

आपने चाचा को भी एक विशेष स्थान प्रदान किया। वर्णन है कि एक बार हज़रत अब्बासर ज़ जो कि रसूलुल्लाहस अ व के चाचा थे आप के पास आए। आप खड़े थे, उनके माथे को चूमा और उन्हें अपने दायें ओर बिठाया और फ़रमाया यह मेरे चाचा हैं, जो चाहता है अपने चाचा पर गर्व करे। इस पर हज़रत अब्बासर ज़ ने कहा: “हे अल्लाह के रसूल इतनी प्रशंसा करें।” आपस अ व ने फ़रमाया: मैं ऐसे क्यों कहूँ? और फ़रमाया:

أَنْتَ عَمِّیْ وَ بَقِیَّۃُ آبَائِی وَالْعَمُّ وَالِد

आप मेरे चाचा हैं, मेरे पुर्खों की निशानी हैं और चाचा तो बाप ही होता है।

हज़रत अबू हुरैरार ज़ से रिवायत है रसूलुल्लाहस अ व ने फ़रमाया:

الْعَبَّاسُ عَمُّ رَسُولِ اللَّهِ وَإِنَّ عَمَّ الرَّجُلِ صِنْوُ أَبِيهِ

हज़रत अब्बासर ज़ अल्लाह के रसूल के चाचा हैं और निःसन्देह मनुष्य का चाचा उसके पिता की तरह होता है।[19]

हज़रत आयशार ज़ बयान करती हैं:

एक बार मेरे दूध के रिश्ते के चाचा मेरे पास आए और अन्दर आने की अनुमति माँगी। मैंने उनको अन्दर आने की आज्ञा दी। जब नबी करीमस अ व पधारे तो मैंने निवेदन किया कि मेरे दूध के रिश्ते के चाचा मेरे पास आए थे और अन्दर आने की अनुमति माँग रहे थे परन्तु मैंने मना कर दिया। आप ने फ़रमाया,तेरा चाचा तेरे पास सकता है।मैंने कहा मुझे तो औरत ने दूध पिलाया है, मर्द ने नहीं! आपस अ व ने यह सुनकर फ़रमायावह तुम्हारा चाचा है और तुम्हारे पास सकता है।

साद बिन वकास क़बीला बनी ज़ोहरा के एक व्यक्ति थे और नबी करीमस अ व की माता आदरणीय का सम्बन्ध भी उसी क़बीला से था इसलिए आँहज़रत उनसे प्रेम और सहानुभूति रखते थे। आपस अ व ने उनके बारे में फ़रमाया هَذَا خَالِي فَلْيُرِنِي امْرُؤٌ خَالَهُ यह मेरे मामा हैं, कोई है जो मुझे इस जैसा अपना मामा दिखाए।

हज़रत अबू उमामा बिन सहल बिन हनीफ़ वर्णन करते हैं कि एक व्यक्ति ने दूसरे को तीर मारा जिससे वह मर गया। उस व्यक्ति का उसके मामा के अतिरिक्त कोई अन्य उत्तराधिकारी न था। अबू उबैदा बिन जराहर ज़ ने यह घटना हज़रत उमरर ज़ की सेवा में लिखी। हज़रत उमरर ज़ ने उत्तर देते हुए लिखा कि नबी अकरम ने फ़रमाया है।

اللَّهُ وَرَسُولُهُ مَوْلَى مَنْ لَا مَوْلَى لَهُ وَالْخَالُ وَارِثُ مَنْ لَا وَارِثَ لَهُ

अर्थात् जिसका कोई अभिभावक नहीं उसका अभिभावक अल्लाह और उसके रसूल हैं और जो बग़ैर वारिस के है उसका वारिस उसका मामा है।

आपस अ व ने बुआ, भतीजी, मौसी और भाँजी की भावनाओं और पवित्र रिश्तों का भी सम्मान किया, जब आपने संसार के समक्ष यह ऐलान किया कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए वर्जित है कि वह भतीजी और फूफी और मौसी और भाँजी को एक साथ जमा करे (अर्थात् एक साथ विवाह में ले)

एक और स्थान पर यूँ वर्णन मिलता है:

نَهَى أَنْ تُنْكَحَ الْمَرْأَةُ عَلَى عَمَّتِهَا أَوْ الْعَمَّةُ عَلَى ابْنَةِ أَخِيهَا

रसूलकरीमस अ व ने मना किया है कि किसी महिला से उसकी फूफी (भूआ) की मौजूदगी में और फूफी से उसकी भतीजी की मौजूदगी में विवाह किया जाए।

इसी प्रकार मौसी को भी आपस अ व ने माँ का ही स्थान दिया और फ़रमाया فَإنَّ الْخَالَۃَ اُمٌّ  मौसी तो माँ ही होती है।

हमारे प्यारे आक़ा आँहज़रतस अ व इतना प्रेम का व्यवहार सम्बन्धियों के साथ किया करते थे कि कभी-कभी आप के प्यारों को भी अनुमान लगाना कठिन हो जाता था कि कौन सा व्यक्ति आपको अधिक प्रिय और पसन्द है। जैसा कि हज़रत मुहम्मद बिन उसामा अपने पिता से रिवायत करते हैं कि हज़रत जाफ़रर ज़, हज़रत अलीर ज़ और हज़रत ज़ैद बिन हारसार ज़ एक जगह इकट्ठे थे हज़रत जाफ़रर ज़ ने कहा मैं नबी करीमस अ व को तुम से अधिक प्रिय हूँ। हज़रत ज़ैदर ज़ ने कहा नहीं! मैं नबी पाकस अ व को तुम दोनों से अधिक प्यारा हूँ। उन्होंने कहा चलो! रसूलुल्लाहस अ व के पास जाकर पूछते हैं। हज़रत उसामा बिन ज़ैद कहते हैं, वे दोनों आपस अ व के पास आए और आज्ञा चाही। आपने मुझे फ़रमाया देखो कौन आया है? मैंने कहा जाफ़र, अली और ज़ैद हैं। आप ने उन्हें अन्दर आने की आज्ञा दी। वे अन्दर आए और उन्होंने आप से पूछा हे अल्लाह के रसूल! आपको सबसे अधिक प्रिय कौन है? आप ने उत्तर दिया फ़ातिमा! उन्होंने फिर प्रश्न किया? हम पुरुषों के सम्बन्ध में आप से प्रश्न करते हैं। आप ने फ़रमया: जाफ़र तुम! क्योंकि तुम्हारे आचरण मेरे चाचा के साथ और तुम्हारी शारीरिक बनावट मेरी बनावट से मिलती-जुलती है और तुम मुझसे और मेरे वंश में से हो। अलीर ज़ को फ़रमाया! तुम मेरे दामाद हो और मेरे बच्चों (हसन व हुसैन) के बाप हो। तुम मुझसे हो और मैं तुम से हूँ। और ज़ैदर ज़ को कहा तुम मेरे दोस्त हो, तुम मुझ से हो, मैं तुम्हारा ज़िम्मेदार हूँ और तुम लोगों में मुझे सबसे अधिक प्रिय हो।

हज़रत मसीह मौऊदअ स आँहज़रतस अ व के बारे में फ़रमाते हैं:

उसने ख़ुदा से इन्तेहाई दर्जा पर मुहब्बत की और इन्तेहाई दर्जा पर मानवजाति की हमदर्दी में उसकी जान पिघली।[20]

अपनी एक पुस्तक इतमामुल हुज्जत में हज़रत मसीह मौऊदअ स नबी पाकस अ व की प्रशंसा यूँ करते हैं कि “वह मनुष्य जिसने अपने व्यक्तित्व से, अपने गुणों से, अपने कार्यों से और अपनी आध्यात्मिक पवित्र शक्तियों के बल से सम्पूर्णता का उदाहरण अपने ज्ञान और कार्य और दृढ़ता से दिखाया और सम्पूर्ण मानव कहलाया…. वह मुबारक नबी हज़रत ख़ातमुल अम्बिया, इमामुल असफ़िया, ख़ातमुल मुरसलीन और नबियों के फ़ख़्र मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) हैं। हे प्यारे ख़ुदा! इस प्यारे नबी पर ऐसी रहमत और दुरूद भेज जो संसार के आरम्भ से तूने किसी पर न भेजा हो।”

اللّھمّ صلّ و سلّم  و بارک علیہ و آلہ و اصحابہ اجمعین[21]

सन्दर्भ

[1] पवित्र क़ुर्आन 3:32

[2] पवित्र क़ुर्आन 33:7

[3] पवित्र क़ुर्आन 9:24

[4] अल-मुअजम अल-कबीर

[5] पवित्र क़ुर्आन 4:37

[6] पवित्र क़ुरान 16:91

[7] पवित्र क़ुर्आन 2:178

[8] सहीह मुस्लिम, हदीस नं. 2322

[9] सही मुस्लि म, हदीस नं. 2317

[10] सुनन इब्नु माजा, किताब अल-अदब

[11] सुनन इब्नु माजा, किताब अल-अदब

[12] सुनन अबू दाऊद, हदीस नं. 4999

[13] सही बुख़ारी हदीस नं. 3735

[14] सुनन तिरमिज़ी, किताब अल-फितन

[15] सुनन निसाई, हदीस नं. 3241

[16] सुनन अबू दाऊद, किताब अस-सलात

[17] सहीह बुख़ारी, किताब अल-निकाह

[18] पवित्र कुर्आन 18:55

[19] सुनन तिरमिज़ी, किताब अल-मनाक़िब

[20] हक़ी क़तुल वह्यी, रूहानी ख़ज़ाइन, खण्ड 22, पृष्ठ 119

[21] इतमामुल हुज्जा, रूहानी ख़ज़ा इन, खण्ड 8, पृष्ठ 308

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