विश्व संकट तथा शान्ति पथ

विश्व संकट तथा शान्ति पथ

विश्व एक अत्यन्त उपद्रवयुक्त दौर से गुज़र रहा है। विश्व का आर्थिक संकट निरन्तर प्रत्येक सप्ताह नवीन से नवीन तथा कठिनतम ख़तरे प्रकट कर रहा है। द्वितीय ‌विश्व-युद्ध के ठीक पहले की समानताएं निरन्तर प्रकट हो रही हैं त‌था स्पष्ट तौर पर ऐसा दिखाई देता है कि घटनाएं विश्व को विद्युत-गति के साथ एक भयंकर तृतीय विश्व युद्ध की ओर ले जा रही हैं। एक अहसास यह है कि परिस्थितियां बड़ी तीव्रता के साथ काबू से बाहर हो रही हैं तथा जन सामान्य किसी ऐसे व्यक्तित्व की खोज में हैं जो उनका ऐसा सुदृढ़ एवं स्‍थायी मार्ग-दर्शन करे जिस पर उन्हें विश्वास हो सके तथा उनके हृदय एवं मस्तिष्क को प्रेरित करे और उन्हें आशान्वित करे कि यह एक मार्ग है जो उन्हें शान्ति की ओर ले जा सकता है। एक एटमी युद्ध के परिणाम इतने विनाशकारी होते हैं कि कोई उनकी कल्पना का भी साहस नहीं कर सकता।
इस संबंध में विश्वव्यापी मुस्लिम जमाअत अहमदिया के इमाम एवं ख़लीफ़ा ने मार्ग-दर्शन प्रस्तुत किया है। उसे हमने यहां एकत्र किया है। गत कई वर्षों के मध्य जिस-जिस प्रकार की घटनाएं प्रकट होती रहीं आप निर्भीकतापूर्वक विश्व में यह घोषणा करते आ रहे हैं कि परिस्थितियां किस ओर जा रही हैं। आप केवल भय उत्पन्न करने के लिए ऐसा नहीं करते रहे अपितु इसलिए कि वे विचार करें कि विश्व इस (भयानक) अवस्था‍ तक कैसे पहुंचा है तथा इसलिए भी कि इस विनाश को कैसे टाला जा सकता है और फिर इसलिए कि विश्व में रहने वाले समस्त लोगों के लिए अमन त‌था शान्ति का मार्ग कैसे प्रशस्त किया जा सकता है। आपने स्पष्ट घोषणा की कि विश्व में शान्ति को सुनिश्चित बनाने का केवल यही मार्ग है कि विनय एवं न्याय के मार्गों को अपनाया जाए तथा विनय एवं विनम्रता के साथ परमेश्वर की ओर आकृष्ट हुआ जाए। मानव, नम्र हृदय मानव बनने के लिए, शक्तिशाली, कमज़ोर के साथ एक उच्‍च सम्मानित तथा न्यायपूर्ण व्यवहार करने के लिए तथा कमज़ोर एवं असहाय, कृतज्ञता एवं सन्तोष प्रकट करने के ‌लिए संयम तथा सत्य मार्गों को अपनाएं। सब लोगों के लिए आवश्यक है कि वे नितान्त विनय तथा निष्कपटता के साथ अपने वास्तविक स्रष्टा की ओर आकृष्ट हों।
आप ने बार-बार प्रत्येक को यह स्मरण कराया कि विनाश के मुख से वापस होने का मार्ग यह है कि विभिन्‍न देश परस्पर लेन-देन या मामले में न्याय की आवश्यकताओं को पूरा करें, यद्यपि उनके मध्य शत्रुता ही क्यों न हो फिर भी वे न्याय को दृष्टिगत रखें, क्योंकि इतिहास ने हमें शिक्षा दी है कि भविष्य की अप्रसन्नताओं एवं मलिनताओं के समस्त निशानों को मिटाने तथा स्‍थायी अमन की स्‍थापना का केवल यही एक मार्ग है।
आप ने इसी क़ुर्आनी शिक्षा पर ‌विश्व-शासकों एवं राजनेताओं के नाम पत्रों में बड़ा ज़ोर दिया है।
एक जाति की (तुम्हारे साथ यह) शत्रुता ‌कि उन्होंने तुम्हें “मस्जिदे हराम” से रोका था तुम्हें इस बात पर तत्पर न करे कि तुम अन्याय करो तथा तुम कल्याण एवं संयम (के कार्यों) में परस्पर (एक दूसरे की) सहयोग करो त‌था पाप और अन्याय (की बातों) में परस्‍पर सहयोग न किया करो और अल्लाह का संयम धारण करो। अल्लाह का दण्ड निश्चय ही कठोर (होता) है। आपने इज़्राईल के प्रधानमंत्री को लिखा:

‌अतः मेरी आप से विनती है कि संसार को एक विश्व युद्ध के चंगुल में ले जाने की बजाए इसको एक ‌विश्व-विनाश से बचाने के संबंध में अपने अन्तिम प्रयासों को काम में लाएं। विवादों का हल शक्ति के बल पर करने की बजाए आप को वार्तालाप के द्वारा उन्हें हल करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम अपनी भावी नस्लों को विकलांगता तथा दोषों का उपहार देने की बजाए उन्हें एक प्रकाशमान भविष्य का उपहार दे सकें।

इस्लामी प्रजातंत्र ईरान के प्रेसीडेन्ट को आप ने सतर्क करते हुए कहा:

आजकल विश्व में बहुत उपद्रव एवं बेचैनी है। कुछ क्षेत्रों में लघु स्तरीय युद्ध छिड़ चुके हैं जबकि दूसरे स्‍थानों में महाशक्तियां शान्ति-स्‍थापित करने के नाम पर शक्ति का प्रयोग कर रही हैं। प्रत्येक देश दूसरे देशों के समर्थन अथवा विरोध करने में लिप्‍त है जबकि न्याय की मांगों को पूर्ण नहीं किया जा रहा है। मैं बड़े खेद के साथ यह कहता हूं कि यदि हम विश्व की वर्तमान परिस्थितियों का निरीक्षण करें तो हमें ज्ञात होगा कि एक और विश्व युद्ध की नींव पड़ चुकी है।

अमरीका के प्रेसीडेण्ट उबामा को आप ने बताया:

जैसा कि सर्वविदित है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बड़े कारण लीग आफ़ नेशन्ज़ की विफलता तथा 1932 ई. में आरंभ होने वाला आर्थिक संकट था। वर्तमान युग के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वर्तमान आर्थिक संकट और 1932 ई. के आर्थिक संकट के मध्य असंख्य समानताएं हैं। हम देखते हैं कि राजनीतिक एवं आर्थिक कठिनाइयां पुनः छोटे देशों के मध्य युद्धों का कारण बनी हैं तथा उन देशों के अन्दर झगड़ा तथा बेचैनी फैल रही है। यह बात अन्ततः कुछ विशिष्ट शक्तियों के अस्तित्व में आने का कारण बनेगी। कुछ ऐसी शक्तियों के हाथ में सत्ता आ जाएगी जो हमें विश्व युद्ध की ओर ले जाएंगी। यदि छोटे देशों में राजनीति या परस्पर संबंधों तथा बुरे-भले पर दृष्टि रखते हुए विवादों को हल न किया गया तो इसका परिणाम नए गठबंधनों एवं ग्रुप्स के रूप में सामने आएगा और यही बात एक तृतीय विश्व युद्ध छिड़ने की भूमिका होगी। इसलिए मेरा विचार है कि विश्व की उन्‍नति पर अत्यधिक केन्द्रित होने की बजाए यह अधिक आवश्यक तथा वास्तव में महत्त्वपूर्ण है कि हम विश्व को तुरन्त इस विनाश से बचाने के लिए अपने प्रयासों को तीव्र कर दें। इस बात की नितान्त आवश्यकता है कि मानव जाति एक ख़ुदा को पहचाने जो कि हमारा स्रष्टा है क्योंकि यही बात मानवता की सुरक्षा की गारंटी है अन्यथा विश्व निरन्तर तथा बड़ी तीव्रता के सा‌थ स्वयं अपने ही हाथों अपने विनाश की ओर बढ़ता चला जाएगा।

चीन के शासक श्री वैन जियाबाऊ को आपने लिखा:

मेरी दुआ है कि विश्व नेता विवेक से काम लें तथा देशों एवं लोगों के मध्य लघु स्तर की परस्पर शत्रुताओं को एक विश्व युद्ध छिड़ने का कारण न बनने दें।

आपने यू.के. के प्रधानमंत्री को लिखा:

मेरी विनती है कि प्रत्येक स्तर पर त‌था प्रत्येक दिशा में हम नफ़रत की अग्नि शान्त करने के लिए भरसक प्रयत्न करें। यदि हम इस प्रयास में सफल होते हैं तो हम केवल इसी स्थिति में अपनी भावी नस्लों के प्रकाशमान भविष्य की गारंटी दे सकते हैं, किन्तु यदि हम इस कार्य में विफल होते हैं तो फिर इस बात में कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि एक एटमी युद्ध के परिणामस्वरूप हमारी भावी नस्लों को हमारे अनुचित कार्यों के भयंकर परिणाम भुगतने होंगे और फिर वे अपने बुज़ुर्गों को, विश्व को विश्वव्यापी विनाश में ढकेलने के कारण कभी क्षमा नहीं करेंगी। मैं आपको दोबारा स्मरण कराता हूं कि ब्रिटेन भी उन देशों में से एक है जो कि इस सन्दर्भ में उन्‍नति प्राप्‍त तथा इसी प्रकार विकासशील देशों में अपने प्रभाव को काम में ला सकता है। यदि आप चाहें तो न्याय एवं इन्साफ़ की आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए इस संसार का मार्ग-दर्शन कर सकते हैं। इसलिए ब्रिटेन को अन्य महाशक्तियों को विश्व-शान्ति की स्‍थापना के संबंध में अपना कर्त्तव्य अदा करना चाहिए। परमेश्वर आप को तथा विश्व के अन्य शासकों को यह सन्देश समझने की शक्ति प्रदान करे।

हज़रत मिर्ज़ा मसरूर अहमद साहिब विश्वव्यापी जमाअत अहमदिया के इमाम के ‌भिन्‍न-भिन्‍न भाषणों तथा पत्रों द्वारा दिए गए मार्ग-दर्शन को अपने पूर्ण रूप में पुस्तक “World Crisis and The Pathway to Peace” में उपलब्‍ध कराया है। इस पुस्तक में विश्वव्यापी जमाअत अहमदिया के इमाम के भाषण निम्नलिखित विवरण के अनुसार मौजूद हैं:

1. ब्रिटिश पार्लियामेंट, द हाउस आफ कामन्ज़ लन्दन, यू.के. को सम्बोधन
2. मिलिट्री हैडक्वार्टर, काब‌लिन्ज़ जर्मनी को सम्बोधन
3. वार्षिक अमन कान्फ्रेन्स लन्दन, यू.के. को सम्बोधन।
4. कैपिटल हिल वाशिंगटन डी.सी. में Leading Congressmen,  सीनेटर्स आफ़ यू.एस.ए. को सम्बोधन
5. यूरोपियन पार्लियामेण्ट बरसेल्ज़, बैल्जियम को सम्बोधन।

इस पुस्तक में वे पत्र भी सम्मिलित हैं जो कि मुस्लिम जमाअत अहमदिया ने विभिन्‍न देशों के प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्राध्यक्षों को लिखे।
हमारी यह सहानुभूतिपूर्ण दुआ है कि इस पुस्तक में मौजूद मार्ग-दर्शन इन ख़तरों से भरपूर समय में मानवजाति के लिए मार्ग-दर्शन का यह माध्यम सिद्ध हो ताकि न्याय एवं विनय के सिद्धान्तों को काम में लाते हुए तथा परमेश्वर की ओर आकृष्ट होकर मनुष्य को एक स्‍थायी शान्ति तथा अमन प्राप्‍त हो।
इस पुस्तक को प्राप्‍त करने के लिए इस पम्फलेट के अन्त में दिए गए पते पर सम्पर्क करें।

मुस्लिम जमाअत अहमदिया पर एक नज़र

मुस्लिम जमाअत अहमदिया एक धार्मिक संगठन है जिसकी शाखाएं विश्व के 202 से अधिक देशों में फैली हुई हैं। वर्तमान युग में यह जमाअत इस्लाम की सबसे कर्मठ धार्मिक जमाअत है जिसके सदस्यों की संख्या विश्व स्तर पर लगभग एक सौ साठ मिलियन है।
हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद (1835-1908 ई.) ने 1889 ई. में पंजाब (हिन्दुस्तान) के एक सुदूर छोटे से गांव में जो कि क़ादियान के नाम से जाना जाता था में इस जमाअत की स्‍थापना की। आप ने समस्त धर्मों के लिए अन्तिम युग के सुधारक तथा सम्पूर्ण विश्व का प्रतिज्ञात अवतार होने का दावा किया (अर्थात मसीह मौऊद महदी-ए-मा’हूद तथा अन्तिम युग के सुधारक) आपकी स्‍थापित की हुई जमाअत इस्लाम के वास्तविक, पवित्र तथा लाभान्वित करने वाले सन्देश की प्रतिमा है जो कि कृपालु एवं दयालु परमेश्वर पर ईमान लाते हुए अमन और विश्व भाई-चारे को बढ़ावा देती है। इसी विश्वास एवं भावना के साथ मुस्लिम जमाअत अहमदिया एक शताब्दी के अन्दर-अन्दर सम्पूर्ण विश्व में फैल चुकी है तथा लाखों पौण्ड चन्दा करके स्कूल निर्माण, अस्पतालों की स्‍थापना तथा धर्मों के मध्य परस्पर वार्तालाप के द्वारा सीखने के उपायों को प्रोत्साहित करते हुए इस्लाम की शान्तिपूर्ण शिक्षा पर कार्यरत होने में प्रयासरत है।

ख़लीफ़ा शान्ति-दूत

हज़रत मिर्ज़ा मसरूर अहमद साहिब 2003 ई. में विश्वव्यापी मुस्लिम जमाअत अहमदिया के पांचवें ख़लीफ़ा निर्वाचित हुए।
आप का जीवन वास्‍तविक समर्पण, स्वभाव में स्‍थायित्व, दुआओं एवं सफलताओं को प्रतिबिम्बित करता  है। आप का परमेश्वर से अटूट सम्बन्‍ध अपनी जमाअत के मार्ग-दर्शन का कारण बनता है कि वह कभी भी परमेश्वर को न भूले तथा कभी निराश न हो। आप का दुआओं में संलग्न रहना समस्त दर्शकों के सामने है और फिर ऐसी दुआओं की सफलता के परिणाम आप के परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास की साक्ष्य देते हैं। मानव जाति से सहानुभूति आप को तथा आपकी जमाअत को इसी भावना के साथ मानवता, निर्धनों तथा असहायों की सेवा करने के लिए प्रेरित करती है, जिस भावना के साथ प्राथमिक शताब्दियों के मुसलमान सेवा किया करते थे। आप का क़ुर्बानी का अहसास, इस्लाम की विशाल क़ुर्बानी की भावना को प्रदर्शित करता है।
वास्तव में आपका जीवन तथा आपका मिशन इस वास्तविक भावना का चित्रण करता है जो कि सदैव अपने दा‌यित्वों पर सतर्क रहने, इस्लाम के नाम को ऊंचा करने तथा अन्तिम युग के पैगम्बर एवं नबी के मान एवं मर्यादा के लिए हमेशा सतर्क रहा है।

“आप बड़े स्पष्ट तथा ज़ोरदार शब्दों में बड़े साहस के साथ अमन, शालीनता, प्रेम, बुद्धि तथा विवेक पर आधारित यह शिक्षा विभिन्‍न धर्मावलम्बियों तक पहुंचा रहे हैं …….. हमें नैतिक पथ-प्रदर्शन तथा निदेर्शन की नितान्त आवश्यकता है जो कि हमें आप ही उपलब्‍ध कर सकते हैं …….।” (लार्ड अयूबरी का मिर्ज़ा मसरूर साहिब के बारे में बयान)

सम्पूर्ण जमाअत परमेश्वर को स्मरण करने तथा मानव जाति की सेवा में ख़लीफ़ा के साथ सहमत है।

वफ़ादारी, स्वतंत्रता, समानता, सम्मान, शान्ति

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