मुहम्मद लुक़्मान मजोका – ज्र्मनी
JUNE 17, 2021
लेख का स्रोत
महामारी से बचाव, कलौंजी, दोपहर का आराम, नींद की कमी, मरीज़ों का हालचाल पूछना तथा अजवा खजूर के बारे में हज़रत मुहम्मद स० अ० व० के मुबारक कथन, उन्नत वैज्ञानिक शोध की रौशनी में।
अल्लाह तआला क़ुरआन करीम में आँहज़रत स० अ० व० के बारे में फरमाता है-
لَقَدۡ جَآءَکُمۡ رَسُوۡلٌ مِّنۡ اَنۡفُسِکُمۡ عَزِیۡزٌ عَلَیۡہِ مَا عَنِتُّمۡ حَرِیۡصٌ عَلَیۡکُمۡ بِالۡمُؤۡمِنِیۡنَ رَءُوۡفٌ رَّحِیۡمٌ (सूरह तौबा आयत- 128 )
यक़ीनन तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आया है उसे बहुत पीड़ा होती है जो तुम दुःख उठाते हो। तुम्हारे लिए वह यही चाहता है कि हमेशा तुम्हें भलाई पहुंचती रहे। मोमिनों के लिए बहुत मेहरबान और बार बार रेहम करने वाला है।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर अल्लाह तआला आँहज़रत स० अ० व० के बारे में फरमाता है कि
وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ اِلَّا رَحۡمَۃً لِّلۡعٰلَمِیۡن ( सूरह अल अम्बिया- 108 )
अर्थात आँहज़रत स० अ० व० को समस्त संसार के लिए रेहमत बना कर भेजा गया है।
आँहज़रत स० अ० व० के चरित्र का एक मुख्य पहलू ख़ुदा के पैदा किये हुए मनुष्य तथा अन्य जीव जंतुओं की सेवा है। आँहज़रत स० अ० व० ने एक मर्तबा फ़रमाया के धर्म तो भला चाहने और भला करने का नाम है। इसी प्रकार एक अवसर पर फ़रमाया मुसलमान वह है जिसकी ज़ुबान से समस्त लोग सुरक्षित रहें।
हज़रत उमररज़ि बयान करते हैं कि किसी व्यक्ति ने एक बार आँहज़रत स० अ० व० से पूछा कि कौन लोग अल्लाह तआला के सर्वाधिक प्रिय हैं ? आप स० अ० व० ने फ़रमाया अल्लाह को सबसे प्यारे वो लोग हैं जो दूसरों को सब से अधिक लाभ पहुंचाते हैं। (बहवाला उस्वा इंसान ए कामिल पृष्ठ 204)
निस्संदेह दुनिया में सबसे अधिक दूसरों को लाभ पहुंचाने वाले आप स० अ० व० ही थे। आप स० अ० व० पूर्ण रूप से मख्लूक़-ए-ख़ुदा की बेहतरी तथा उत्थान के लिए प्रयास करते रहे। इसी लिए आप स० अ० व० के कथनो में हमें ऐसी बहुत सी नसीहतें मिलती हैं जिन का सीधा सम्बन्ध धर्म से तो कोई मालुम नहीं होता परन्तु वह आम लोगों के फायदे के लिए हैं और जिन का लाभ वर्तमान वैज्ञानिक खोजों से सिद्ध होता है। इसके बावजूद यह कहना ठीक न होगा कि हदीसों का उद्देश्य वैज्ञानिक खोजों तथा अविष्कारों को ब्यान करना है। क्यूंकि नबियों के प्रकट होने का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक इंक़लाब पैदा करना होता है ताकि मनुष्य अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानते हुए ख़ुदा तआला से जीवित सम्बन्ध पैदा करे और संसार में एक आदर्श समाज की स्थापना करे। इसीलिए हदीसें भी अधिकतर आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक बातों से सम्बन्धित है। यहां तक कि आँहज़रत स० अ० व० ने एक बार किसानों से फ़रमाया कि तुम संसारिक बातें मुझ से अधिक जानते हो क्यूंकि में तो धर्म की शिक्षा देने आया हूँ। (मुस्लिम, इब्ने माजा)
क्यूंकि नबी ख़ुदा कि और से आते हैं इसलिए सर्वज्ञानी ख़ुदा उनकी सच्चाई सिद्ध करने के लिए उनको अदृश्य की बातें निशान के तौर पर बताता है। अतः कुछ हदीसों में हमें ऐसी चीज़े भी मिलती हैं जिन की हकीकत वर्तमान युग की नवीन चीज़ों से ज्ञात होती है। इस संक्षिप्त परिचय के बाद वास्तविक विषय की तरफ आते हैं।
इस समय जब कोरोना वायरस की महामारी विश्व में फैलना शुरू हुई तीन विभिन्न देशों में इस से बचाव के उपायों पर बेहेस हुई अधिकतर वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स ने यही सुझाव दिया कि बीमारी की रोकथाम के लिए लोगों के बाहर निकलने पर तुरंत रोक लगनी चाहिए और लोकडाउन लगा देना चाहिए ताकि मनुष्य से मनुष्य तक इस बीमारी के फैलने पर अंकुश लगाया जा सके। यह वही शिक्षा है जो आज से 1400 साल पहले नबी करीम स० अ० व० ने ब्यान की थी।
इतिहास में वर्णित है कि एक मौके पर जब हज़रत उमररज़ि सीरिया की ओर रवाना हुए तो लक्ष्य के क़रीब पहुंच कर आपरज़ि को सूचना मिली के वहां प्लेग कि महामारी फैल गयी है। आपरज़ि ने विभिन्न सहाबा से मशवरा किया तो हज़रत अब्दुलरहमान बिन औफरज़ि ने हदीस सुनाई कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स० अ० व० ने फरमाया है कि “यदि किसी स्थान पर महामारी फैल जाए तो कोई व्यक्ति उस स्थान पर न जाए जहां महामारी फैली हुई है और वहां के लोग दूसरी जगह न जाएं। ये उस समय की बात है जब वायरस बेक्टेरिया का मनुष्य को ज्ञान नहीं था और न ही महामारी के फैलने का और न ही मनुष्यों में एक दूसरे से संक्रमित होने के बारे में वैज्ञानिक बारीकियों की किसी को समझ थी। आँहज़रत स० अ० व० की ये बहुत ही साधारण सी नसीहत उन्नत आयुर्विज्ञान की रौशनी में अत्यंत लाभदायक उपाय है और पूरे विश्व में आजकल इस का सख्ती से पालन कराया जा रहा है।
अतः जिन देशों में इस महामारी के दौरान समय पर इस का पालन करते हुए लोकडाउन और संक्रमितों के आइसोलेशन को पूरी तरह से लागू किया गया है वहां महामारी का फैलाव बहुत हद तक रुक गया जबकि ऐसे देश जहाँ इस ओर ध्यान नहीं दिया गया वहां न केवल बड़े पैमाने पर बीमारी फैली बल्कि भारी जानी नुक्सान भी उन्होंने उठाया। उदाहरणतया इस बीमारी के प्रारम्भिक दिनों में अमरीका और ब्राज़ील दो ऐसे देश थे जहाँ जानबूझ कर महामारी के फैलाव को अनदेखा किया गया और लोकडाउन का पालन कराने में लापरवाही से काम लिया गया। अब ये दोनों देश महामारी की सख्त पकड़ में हैं। केवल अमरीका में ही कम से कम 95 लाख लोग इस महामारी का शिकार हुए हैं जबकि ढाई लाख मौतें हो चुकी हैं। इसी प्रकार ब्राज़ील में करीब 55 लाख लोग इस महामारी से संक्रमित हुए और एक लाख साठ हज़ार से अधिक मौतें हुईं। यदि आँहज़रत स० अ० व० की नसीहत पर अमल किया जाता तो इतने भारी नुक्सान से बहुत हद तक बचा जा सकता था।
हदीसों में लिखा है कि आँहज़रत स० अ० व० ने एक बार फ़रमाया कि कलौंजी का उपयोग करो क्यूंकि इसमें मौत के अतिरिक्त हर बीमारी का इलाज है। कलोंजी का इलाज प्राचीन हकीमों ने तो ब्यान किया ही है परन्तु कुछ समय पूर्व जर्मनी के फ़्राय बर्ग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर Sigrun Shrubasik-Hausmann ने अनुसंधान के बाद एक दिलचस्प विस्तृत शोध प्रस्तुत किया है।
इस शोध के अनुसार कलौंजी जिसे लैटिन में Nigella Sativumकहा जाता है विभिन्न रोगों के उपचार के लिए लाभदायक है। शोध के दौरान यह बात भी सामने आई कि कलौंजी में मौजूद Thymoquinon जलन कम करने में लाभदायक है। इसी प्रकार Thymoquinon कैंसर के सेल रोकने में मदद देती है। कलौंजी मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करती है तथा मधुमेय की रोकथाम में भी सहायक है और इससे शरीर के अंदर इंसुलिन की मात्रा बढ़ती है। इसके अतिरिक्त यह अपने अंदर कीटाणुनाशक क्षमता भी रखती है जिससे विभिन्न प्रकार के जीवाणु जैसे Salmonella या Coli के बेक्टेरिया को रोका जा सकता है। इसी प्रकार एक जांच में कलौंजी ने Hepatitis -C के वायरस को शरीर में फैलने से रोकने में मदद की। कलौंजी का तेल Arthritis के दर्द को दूर करने में मदद देता है। एक बात जांच में ये भी सामने आई है कि कलौंजी से ब्लड प्रेशर कम होता है जबकि दमे की बीमारी के लक्षणों में भी स्पष्ट कमी देखने को मिलती है। अतः कलौंजी के छोटे से दानो में अल्लाह तआला ने विभिन्न रोगों की रोकथाम और इलाज का प्रबंध कर रखा है। 2018 में की गई यह जांच इस बात को सिद्ध कर रही है कि इसके औषधीय लाभों पर अभी आगे की जांच जारी है। 1400 वर्ष पूर्व आँहज़रत स० अ० व० के इस कथन की सच्चाई आज साबित हो रही है। (Prof. Sr. Sigrun Chrusbasik-Hausmann: Schwarzkümmel, Freiburg 2018)
आँहज़रत स० अ० व० ने एक अवसर पर फ़रमाया-
قِیْلُوْا فَاِنَّ الشَّیْطَانَ لَا یَقِیْلُ (तिब्रानी)
अर्थात कैलोला (दोपहर में आराम) कर लिया करो क्यूंकि शैतान ऐसा नहीं करते। आँहज़रत स० अ० व० दोपहर में आराम किया करते थे बल्कि क़ुरआन करीम में इसका उल्लेख है। कैलोला के लिए आजकल power nap की परिभाषा प्रचलित है। अर्थात थोड़े समय के लिए गहरी नींद सोना। दोपहर को आराम करना इस्लामी संसार बल्कि यूरोप के भी औसतन गर्म देशों जैसे यूनान, इटली या स्पेन इत्यादि में एक आम रिवाज है और ज़ुहर के समय आम तौर पर लोग इन इलाक़ों में सुस्ताने के लिए सो जाते हैं। इसके विपरीत अब तक अधिकांश उत्तरीय यूरोपीय देशों में कैलोला की यह धारणा सिर्फ पायी नहीं जाती बल्कि अत्यंत व्यस्त जीवनशैली में समय का व्यय समझा जाता रहा है। दुनियादारी और दौलत की दौड़ में इस युग का मानव नींद को कम करने के लिए विभिन्न energy drinks और औषधियों का उपयोग करता है ताकि नींद का प्रभाव न हो तथा वह और अधिक समय धन कमाने में व्यतीत कर सके। इस प्रकार के drinks और औषधियों के सेवन का स्वास्थ्य पर कुछ समय पश्चात दुष्प्रभाव नज़र आना शुरू हो जाता है और शरीर नींद के आभाव के कारण विभिन्न प्रकार के रोगों में ग्रस्त हो जाता है।
नींद के बारे में क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फरमाता है :
وَّ جَعَلۡنَا نَوۡمَکُمۡ سُبَاتًا (सूरह नबा आयत- 10 )
अर्थात तुम्हारी नींद को हम ने आराम का साधन बनाया है इसलिए शरीर अथवा आत्मा को तरोताज़ा रखने के लिए नींद का ख़ास महत्व है और इसको अनदेखा करने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है विज्ञान अब इस बात पर सहमत है। कि दिन के बारह से तीन बजे के दौरान मनुष्य में ऊर्जा का स्तर सब से कम होता है। उस समय अधिक मानसिक कार्य अथवा एकाग्रता बनाये रखना कठिन हो जाता है और उसी समय यदि कोई 15 से 20 मिंट के लिए आराम कर ले तो उसकी ऊर्जा का स्तर फिर से बढ़ जाता है तथा वह शाम तक ज़्यादा अच्छे तरीके से कार्य करने की योग्यता पैदा कर लेता है।
अतः अमरीकी अंतरिक्ष संगठन नासा के एक सर्वेक्षण से यह मालूम होता है कि दोपहर के समय आराम करने वाले पायलट्स अपने समकक्षों कि तुलना में अधिक एकाग्रता बनाये रखने के योग्य थे।
इसी प्रकार Harvard School of Public Health के एक शोध से सिद्ध होता है कि नियमित तोर से दोपहर को आराम करने वाले लोगों में हृदय से संबंधित रोगों की संभावना 37% कम हो जाती है।
(Androniki Naska, Eleni Oikonomour, Antonia Trichopoulou: Seista in Healthy Adults and Coronary (Mortality in the General Population in: Arch Intern Med. 2007, 167(3) p. 296 to 301)
इसी प्रकार फ्रांस में पेरिस के विश्वविद्यालय के एक शोध से पता चलता है कि यदि नींद का आभाव ज़्यादा हो तो norepinephrine नामक hormone और interleukin-6प्रोटीन का स्तर बहुत कम हो जाता है जबकि दोनों रोग प्रतिरोधक क्षमता और stress level कम करने के लिए ज़रूरी हैं। लेकिन वही जब रात में नींद की कमी के बावजूद यदि दिन में दोपहर को 30 मिंट सो लें तो norepinephrine اور और interleukin-6 उसी मात्रा में शरीर में पैदा हो जाता है। जैसा कि रात को नींद पूरी करने से।
( The Journal of Clinical Endocrinology & Metabolism, 2015.)
इसी प्रकार कैलोला (दोपहर को आराम) करने से रात की नींद की कमी पूरी हो जाती है। इस्लाम में रात की इबादत पर बहुत ज़ोर दिया गया है जैसा कि अल्लाह तआला क़ुरआन करीम में फरमाता है कि
وَ مِنَ الَّیۡلِ فَتَہَجَّدۡ بِہٖ نَافِلَۃً لَّکَ ٭ۖ عَسٰۤی اَنۡ یَّبۡعَثَکَ رَبُّکَ مَقَامًا مَّحۡمُوۡدًا
(सूरह बनी इस्राईल आयत- 80)
अर्थात रात के एक भाग में भी क़ुरान के साथ तहज्जुद पढ़ा करो। यह तेरे लिए नफिल (अतिरिक्त उपासना) के तौर पर होगा। करीब है कि तेरा रब्ब तुझे प्रशंसा के मुक़ाम पर स्थापित कर दे। और आँहज़रत स० अ० व० को मुखातिब करते हुए फ़रमाया-
قُمِ الَّیۡلَ اِلَّا قَلِیۡلًا ۙ﴿۳﴾ نِّصۡفَہٗۤ اَوِ انۡقُصۡ مِنۡہُ قَلِیۡلًا ۙ﴿۴﴾ اَوۡ زِدۡ عَلَیۡہِ وَ رَتِّلِ الۡقُرۡاٰنَ تَرۡتِیۡلًا ؕ﴿۵﴾
(सूरह अल मुज़म्मिल आयत 3 – 5)
अनुवाद: रात को कुछ समय क़याम कर (अर्थात तहज्जुद की नमाज़ पढ़)। इसका आधा या इस में से कुछ थोड़ा सा कम कर दे या इसपर कुछ अधिक कर दे और क़ुरान को खूब निखार कर पढ़ा कर।
आँहज़रत स० अ० व० रात का एक बड़ा भाग इबादत में ही व्यतीत किया करते थे और सूफियों ने इस बात पर बल दिया है कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए कम खाना कम बोलना और कम सोना सहायक है। स्पष्ट है कि इस से रात की नींद प्रभावित होती है। परन्तु दिन में दोपहर के समय थोड़ी देर सो कर इस कमी को पूरा किया जा सकता है जैसा कि विभिन्न शोधों से अब ये सिद्ध हो चुका है। इन शोधों की रौशनी में अब विश्व की कुछ एक प्रसिद्ध कंपनियां तथा संस्थान अपने कर्मचारियों के लिए दोपहर के समय थोड़ा आराम करने का अवसर प्रदान करते हैं जैसा कि Google Pricewater Coopers या Cisco इत्यादि।
आँहज़रत स० अ० व० ने एक अवसर पर फ़रमाया –
مَنْ عَادَ مَرِیْضًا لَمْ یَزَلْ فِیْ خَرفَۃِ الجَنَّۃِ حَتّٰی یَرْجِعَ
जो किसी मरीज़ की अयादत (मरीज़ का हाल चाल पूछने) को जाता है वह जन्नत के भाग में रहता है। यहां तक कि वह वापस लौट आए। यह भी फ़रमाया-
اِذَا حَضَرْتُمُ الْمَرِیْضَ اَوِ الْمَیِّتَ فَقُوْلُوْا خَیْرًا
(मुस्लिम किताबुल जनायज़) अर्थात तुम किसी मरीज़ या मरने वाले के घर जाओ तो अच्छी बात कहो।
आम तौर पर मरीज़ की अयादत (हाल चाल पूछने) को समाजिक कर्तव्य के तौर पर देखा जाता है परन्तु इस के मनोवैज्ञानिक व चिकित्सकीय लाभों का कम ही लोगों को ज्ञान है। जर्मनी जैसे यूरोपियन देश में इस प्रकार की अयादत को welfare care की श्रेणी में शुमार किया जाता है। अर्थात कुछ विशेष लोग मरीज़ की अयादत और उस कठिन समय में उन का होंसला बढ़ाने के लिए नियुक्त हैं तथा लोगों का एक वर्ग यही समझता है कि यह कार्य इन्हीं लोगों के लिए ख़ास है जबकि शेष सभी लोग इस कर्तव्य से पूर्ण रूप से आज़ाद हैं। इसके विपरीत इस्लाम में प्रत्येक मुसलमान को इसके लिए प्रेरित किया गया है। मरीज़ों की अयादत और उनको अच्छी बात कहकर उनकी हिम्मत बढ़ाना स्वस्थ होने के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि औषधियों द्वारा उपचार करना। इस के संबंध में 2016 में जर्मनी की एक पत्रिका में एक दिलचस्प शोध प्रकाशित हुआ जिस में सिद्ध किया गया कि हृदय रोगियों की तीमारदारी उन के स्वास्थ्य के लिए सहायक है इस शोध से ये बात सामने आई है कि 94 प्रतिशत मरीज़ों ने यह माना की तीमारदारी से उन के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा जबकि 89 प्रतिशत की इस से उन के भविष्य के लिए उम्मीद बढ़ी। इसी प्रकार 78 प्रतिशत ने बताया की इससे उन के दर में स्पष्ट कमी हुई। ??
(Jörg Kittel, Marthin Karoff: „Die Seelsorge hat mir Kraft gegeben, meine Krankheit besser zu vertragen“. Witten/Herdecke December 2015.)
अतः तीमारदारी मानसिकता अथवा स्वास्थ्य पर अच्छा असर तथा सकारात्मक प्रभाव डालती है और यही वह शिक्षा है जिस पर आँहज़रत स० अ० व० ने बहुत बल दिया है यहां तक की फ़रमाया :
مَا مِنْ مُسْلِمٍ یَعُوْدُ مُسْلِمًا غَدْوَۃً اِلَّا صَلَّی عَلَیْہِ سَبْعُوْنَ اَلْفَ مَلَکٍ حَتَّی یُمْسِیَ، وَ اِنْ عَادَہ عَشِیَّۃً اِلَّا صَلَّی عَلَیْہِ سَبْعُوْنَ الْفَ مَلَکٍ حَتَّی یُصْبِحَ وَ کَانَ لَہٗ خَرِیْفٌ فِیْ الْجَنَّۃِ۔
(रियाज़ुस्सालिहीन बहवाला तिर्मिज़ी – 899)
अर्थात यदि कोई मुसलमान दूसरे मुसलमान की अयादत करने के लिए सुबह जाता है तो 70 हज़ार फ़रिश्ते उसके लिए दुआ करते हैं यहां तक कि शाम हो जाती है और यदि वह शाम को अयादत के लिए जाए तो 70 हज़ार फ़रिश्ते उस के लिए दुआ करते हैं यहां तक कि सुबह हो जाए और उस के लिए जन्नत के फलों में एक बाग़ होगा।
रमज़ान के पवित्र महीने में आँहज़रत स० अ० व० आम तौर पर खजूर से इफ्तार (रोज़ा खोला) करते थे और आप स० अ० व० का ही अनुसरण करते हुए विश्व भर के मुसलमान खजूर खाकर ही रोज़ा खोलते हैं। इसका शोध उन्नत विज्ञान की रौशनी में स्पष्ट है। रोज़े के दौरान जब मनुष्य सारा दिन खाने पीने से परहेज़ करता है तो उसके शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है उदाहरतया शुगर या ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है। खजूर एक ऐसा फल है जिसमें वह सब पोषक तत्व मौजूद हैं जिससे इस प्रकार की कमी को तुरंत पूरा किया जा सकता है। खजूर में विटामिन A और B के अतिरिक्त Magnesium, Calcium और Iron पाया जाता है। जिससे रख्त में Red blood cellsका उत्पादन बढ़ता है। इसी तरह खजूर में cholestrolनहीं होता बावजूद इसके कि खजूर में carbohydrates बड़ी मात्रा में (लगभर 78 प्रतिशत) मौजूद होते हैं तथा इसमें sodium की मात्रा भी कम होती है। डाक्टर इस प्रकार के भोजन की ओर ध्यान दिलाते हैं कि भोजन ऐसा हो जिस में cholesterol، fat और sodiumकम हो जबकि fibre अधिक हो और यह सारे गुण खजूर में पाए जाते हैं।
(Sobhy Ahmad El-Sohaimy: Biochemical and Nutritional Characterizations of Date Palm Fruits in: (Journal of Applied Sciences Research, August 2010, p. 1060 to 1067)
एक हदीस में ब्यान हुआ है कि आँहज़रत स० अ० व० ने खजूर के बारे में फ़रमाया:
مَنْ تَصَبَّحَ سَبْعَ تَمَرَاتِ عَجْوَةٍ لَمْ يَضُرُّهُ ذٰلِكَ الْيَوْمَ سَمٌّ وَلَا سِحْرٌ (बुखारी)
अर्थात जो प्रत्येक सुबह 7 अज्वा खजूरें खाए उसे उस दिन कोई विष और जादू हानि नहीं पहुंचा सकता।
वैज्ञानिक शोधों की बुनियाद ज्ञान अर्जित करना और उसकी जिज्ञासा है। आँहज़रत स० अ० व० ने इस संदर्भ में भी अपनी उम्मत को बहुत सी नसीहतें कीं हैं। ज्ञान और विज्ञान कि उन्नति का एक विकासशील समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। आप स० अ० व० का कथन
اُطْلُبُوْا العِلْمَ وَ لَوْ فِیْ الصِّیْن (बिहारुल अनवार)
अर्थात ज्ञान प्राप्त करो चाहे चीन ही क्यों का जाना पड़े इसका महत्व उजागर होता है। चीन उस युग में एक प्रकार से पृथ्वी का अंतिम छोर था। जहां कि यात्रा में ही कई महीने लगते थे। परन्तु आप स० अ० व० इस बात पर बल दिया कि इतनी कठिन और खतरनाक यात्रा भी ज्ञान अर्जित करने में रोक पैदा न करे। इसी प्रकार फ़रमाया कि ज्ञान अर्जित करना प्रत्येक मुसलमान औरत अथवा मर्द के लिए फ़र्ज़ है। (मुस्तदरकुल वसाइल) फिर फ़रमाया कि
الْحِکْمَۃُ ضَالَۃُ الْمُوْمِنِ فَحَیْثُ وَجَدَھَا فَھُوَ اَحَقُّ بِھَا (तिर्मिज़ी)
अर्थात ज्ञान की बात मोमिन की खोई हुई वस्तु है जहां से भी वह उस को प्राप्त हो वह उसका सबसे अधिक हक़दार होता है। एक अन्य स्थान पर आप स० अ० व० ने फ़रमाया:
من سلک طریقا یطلب علما سلک اللّٰہ بہ طریقا من طرق الجنۃ وان الملائکۃ لتضع اجنحتھا رضا لطالب العلم وان العالم لیستغفر لہ من فی السموات و من فی الارض والحیتان فی جوف الماء و ان فضل العالم علی العابد کفضل القمر لیلہ البدر علی سائر الکواکب
(सुनन अबू दाऊद किताबुल इल्म)
अनुवाद: जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए यात्रा करे तो अल्लाह उसके लिए स्वर्ग का मार्ग सरल कर देगा और फ़रिश्ते विद्यार्थी के लिए अपनी पसंद के पर बिछाते हैं और जो कोई आकाश और धरती में है यहां तक कि पानी के अंदर मछलियां भी क्षमा मांगती हैं और एक ज्ञानी को इबादत करने वाले पर श्रेष्ठता उसी प्रकार है जैसा कि पूर्णमासी के चाँद को सितारों पर।
इसी शिक्षा के कारण इस्लाम के प्रारम्भिक युग में मुसलमान वैज्ञानिकों ने ज्ञान के मैदान में महान सेवा प्रदान की है जिसका प्रभाव वर्तमान युग पर भी है और उसे विस्तार से लिखने के लिए एक अलग निबंध की आवश्यकता है। अतः इसमें सबसे अधिक महत्व 1400 वर्ष पूर्व आँहज़रत स० अ० व० का विज्ञान सीखने और ज्ञान प्राप्त करने की शिक्षा देने का है, जबकि मनुष्य के विकास का हर पहलु ज्ञान और विज्ञान की उन्नति से जुड़ा हुआ है।
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