पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर का क़ादियान में आगमन और इमाम जमाअत अहमदिय्या के साथ मुलाक़ात

“अहमदिय्यत एक [बौद्धिक] आयुध सामग्री कारखाना है जो असंभव को संभव बनाने के लिए तैय्यार किया गया है और एक शक्तिशाली मत है जो पहाड़ों को अपने स्थान से हिला देता है ”– पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर

पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर का क़ादियान में आगमन और इमाम जमाअत अहमदिय्या के साथ मुलाक़ात

“अहमदिय्यत एक [बौद्धिक] आयुध सामग्री कारखाना है जो असंभव को संभव बनाने के लिए तैय्यार किया गया है और एक शक्तिशाली मत है जो पहाड़ों को अपने स्थान से हिला देता है ”– पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर

“अहमदिय्यत एक [बौद्धिक] आयुध सामग्री कारखाना है जो असंभव को संभव बनाने के लिए तैय्यार किया गया है और एक शक्तिशाली मत है जो पहाड़ों को अपने स्थान से हिला देता है ”– पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर


यह लेख सर्वप्रथम अल-फज़ल इंटरनेशनल (उर्दू) में 17 जून 2021 को प्रकाशित हुआ इसका हिंदी अनुवाद लाईट ऑफ़ इस्लाम के लिए फज़ल नासिर ने किया है।

एमानुएल हारिस

18 अक्टूबर 2021

पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर का जन्म 12 अप्रैल 1867 ई में मिशिगन अमरीका के शहर Vriesland में हुआ। उन्हें इस्लाम और ईसाइयत के प्रतिनिधी की उपाधि दी गयी। वे एक अमरीकी पादरी थे। इन सज्जन को अमरीका में विश्व धर्मों के एक योग्य प्रोफेस्सर और एक परिश्रमी पर्यटक तथा प्रसिद्ध लेखक के तौर पर भी जाना जाता है। उनके शैक्षणिक रेकॉर्ड से पता चलता है कि उन्होंने 1887 में मिशिगन के शहर हॉलैंड के Hope College से ग्रेजुएशन पूरी की और फिर वह New Brunswick में 1890 ई तक उसी शहर की Seminary Theological में शिक्षा ग्रहण करते रहे। Reformed Church में पादरी के तौर पर कार्य करने से पूर्व वह 1895 से 1905 तक बसरा तथा अन्य अरब इलाक़ों में मिशिनरी कार्यों में नियुक्त रहे। इस अवधि में ज़्वेमर ने एशिया के विभिन्न इलाकों में भ्रमण का सिलसिला भी जारी रखा और शायद इसी कारण उन का चयन बतौर मेंबर रॉयल जिओग्रफ़िकल सोसाइटी लंदन हुआ।

1929 ई में ज़्वेमर की नियुक्ति Princeton Theological Seminary में विश्व धर्मों तथा ईसाई मिशनों में इतिहास के प्रोफेसर के तोर पर हुई जहां वे 1951 तक पढ़ाते रहे। ज़्वेमर मुस्लिम दुनिया में ईसाइयत के प्रचार के लिए अंतिम हद तक प्रयास करने के पक्षधर थे। उन का विवाह एमी ज़्वेमर से हुआ जो ज़्वेमर की अनेक शैक्षणिक योजनाओं और पुस्तकों की तैयारी में सहायक भी रहीं।

एक समय तक पादरी ज़्वेमर साहिब त्रिमासिक पत्रिका The Moslem World के सम्पादक के तौर पर कार्यरत रहे। इस विद्वत्तापूर्ण पत्रिका के कुल 47 संस्करण ज़्वेमर के सम्पादन (1911 – 1947) में प्रकाशित हुए। उसकी अधिक प्रसिद्धि इस कारण थी कि वह बार बार ईसाइयों को मुस्लिम देशों में जाकर प्रचार करने के लिए प्रेरित किया करते थे। पादरी ज़्वेमर साहिब की मृत्यु 2 अप्रैल 1952 ई को हुई।

एक आलोचक Ruth A Trucker के विचार में पादरी के प्रचार से ईसाइयत में दाखिल होने वालो की संख्या उनके परिश्रम और सेवा के बावजूद एक दर्जन से अधिक न बढ़ सकी और ज़्वेमर का सब से बड़ा कारनामा यह गिना जाता है कि वह ईसाई लोगों को मुस्लमान देशों में प्रचार करने के लिए बहुत ज़ोर दिया करते थे।

(बीच में) जमाअत अहमदिय्या के दुसरे खलीफा, (आप के दाहिनी ओर) हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद सादिक़ साहिब, (आप के बायीं ओर) पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर

इस बात का समर्थन इस प्रकार भी होता है कि प्रसिद्ध लेखक रेवरंड अन्वाइल खोखर अपनी पुस्तक Who Is Who के दूसरे भाग में मुस्लिम दुनिया में ज़्यादा प्रचार करने वाले ईसाई पादरी का उल्लेख करते हुए पृष्ठ 184 से 185 तक पादरी ज़्वेमर का वर्णन करते हैं यहां विद्वान लेखक उस का परिचय लिखने के बाद एक बात कहने पर मजबूर हो जाता है और लिखता है कि

सारा जीवन अध्ययन करने वाला ज़्वेमर कभी भी मसीह के संदेश को सीमित करने पर तैयार न था इसके लिए उसने कई तरीके अपनाए उदाहरण के लिए लेखक बन कर मुस्लिम दुनिया में प्रचार के लिए मिशनरी भर्ती करने और ईसाई मिशनों में नई उमंग पैदा करने जैसे काम करने और अनथक परिश्रम के बावजूद ज़्वेमर अपने जीवनकाल में बहुत थोड़े मुसलमानों को ईसाइयत के खुले इक़रार के योग्य बना सके।[1]

त्रिमासिक पत्रिका The Moslem World और लंदन से प्रकाशित होने वाले The Quarterly Review के संपादक के अतिरिक्त ज़्वेमर ने दर्जनों छोटी बड़ी पुस्तकों के नाम और प्रकाशन के साथ की सूची मौजूद है।
यह प्रसिद्ध विद्वान् पर्यटक पादरी और लेखक क़ादियान भी आये उन के क़ादियान आगमन का हाल तारीख़ ए अहमदिय्यत में कुछ इस प्रकार वर्णित है। लिखा है कि:

अमरीका के प्राच्यविद पादरी ज़्वेमर क़ादियान में

अमेरिका के प्रसिद्ध प्राच्यविद ज़्वेमर अहमदिय्यत का केन्द्र देखने के लिए 28 मई 1924 ई को क़ादियान आए। आप ने मुख्य संस्थान देखने के बाद हज़रत ख़लीफ़तुल मसीह द्वितीय, हज़रत मिर्ज़ा बशीरुद्दीन महमूद अहमद साहिबरज़ि से भेंट की और जमाअत का लिटरेचर लेने के बाद प्रस्थान किया और अमेरिका पहुंच कर एक विज्ञापन प्रकाशित किया जिस में ईसाई दुनिया से अपील की गयी कि उसे जमाअत ए अहमदिय्या से मुक़ाबले के लिए विशेष तैयारी करनी चाहिए क्यूंकि आधुनिक इस्लाम जमाअत ए अहमदिय्या के द्वारा यूरप व अमरीका में मज़बूत हो रहा है।

पादरी ज़्वेमर ने चर्च मिशिनरी रिव्यू लंदन में “भारत में इस्लाम” के शीर्षक से एक निबन्ध प्रकाशित किया और उस में अपने क़ादियान आगमन का उल्लेख निम्नलिखित शब्दों में किया:

हमारा स्वागत बहुत गर्मजोशी के साथ किया गया। वास्तव में उन्होंने एक दूसरे रेलवे स्टेशन (अर्थात बटाला में क्यूंकि 1924 में अभी क़ादियान में अभी रेल न आई थी) पर हमें लेने के लिए आदमी भेजा (परन्तु हम दूसरे रास्ते आ गए ) और हमें घंटों की बजाए दिनों तक क़ादियान में ठहरने का न्योता दिया। यहां से न केवल पत्रिका “रिवियु आफ रिलिजन” प्रकाशित होती है बल्कि तीन और पत्रिकाएं भी निकलती हैं और न केवल लंदन, पैरिस, बाली, शिकागो, सिंगापूर अपितु समस्त पश्चिम देशों के साथ पत्राचार का सिलसिला भी जारी है। छोटे छोटे कार्यालय, हर प्रकार के मिलने वाले सामान, विभिन्न प्रकार की इनसाइक्लोपीडिया डिक्शनरियां और ईसाइयत के विरुद्ध साहित्य से भरे पड़े हैं। यह एक आयुद्य निर्माण स्थल है जो असम्भव को सम्भव बनाने के लिए तैयार किया गया है और एक शक्तशाली मत है जो पहाड़ों को अपने स्थान से हिला देता है।[2]

इन पादरी साहिब का क़ादियान आगमन और उन की हज़रत मुस्लेह मौऊदरज़ि से भेंट खुद हुज़ूर के शब्दों में इस प्रकार है। यह उदाहरण वास्तव में हज़रत मुस्लेह मौऊद रज़ि के महान स्थान (मर्तबे) और आप के साथ असाधारण आसमानी सहायता से भी अवगत कराता है। आप लिखते है:

क़ादियान में एक पादरी ज़्वेमर आया जो विश्व का बहुत प्रसिद्ध पादरी है और अमेरिका का रहने वाला था वहां के एक बहुत बड़े प्रचारक ईसाई सोसाइटियों में से एक वशिष्ट स्थान रखता था। उस ने क़ादियान का भी नाम सुना हुआ था, जब वह भारत आया तो और स्थानों को देखने के बाद वह क़ादियान आया उस के साथ एक और पादरी गार्डन नामी भी था। डाक्टर ख़लीफा रशीदुद्दीन साहिब मरहूम उस समय जीवित थे उन्होंने उसे क़ादियान के समस्त स्थल दिखाए परन्तु पादरी आखिर पादरी होता है, डंक मारे बिना कैसे रह सकता है। उन दिनों क़ादियान में अभी टाउन कमेटी नहीं बनी थी और गलियों में अभी बहुत गंद पड़ा रहता था। पादरी ज़्वेमर बातों बातों में हंस कर कहने लगा हम ने क़ादियान भी देख लिया और नए मसीह के गाँव की सफाई भी देख ली। डाक्टर ख़लीफा रशीदुद्दीन साहिब उसे हंस कर कहने लगे के पादरी साहिब अभी पहले मसीह की ही हिन्दुस्तान पर हुकूमत है और यह उस की सफाई का नमूना है। नए मसीह की हुकूमत अभी स्थापित नहीं हुई। इस पर वह बहुत शर्मिंदा और अपमानित हुया। फिर उस ने मुझे कहला भेजा कि मैं आप से मिलना चाहता हूँ। मेरी तबियत कुछ खराब थी मैंने जवाब दिया कि पादरी साहिब बताएं कि यह मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं। कहा- कुछ बातें पूछना चाहता हूँ परन्तु पहले नहीं बता सकता। खैर मैंने उस को बुला लिया। वह भी आ गए और पादरी गार्डन साहिब भी आ गए। एक दो दोस्त और भी मौजूद थे। पादरी ज़्वेमर साहिब कहने लगे मैं एक दो सवाल करना चाहता हूँ। मैंने कहा पूछिए। कहने लगे के इस्लाम की धारणा आवागमन के संबंध में क्या है ? क्या वह इसे मानता है या इंकार करता है। जैसे ही उसने मुझे से यह प्रश्न किया अल्लाह तआला ने मेरे दिल में डाल दिया कि उसका इस प्रश्न से प्रायोजन यह है कि तुम जो मसीह ए मौऊद (अलैहिस्सलाम) को मसीह ए नासरी का रूप क़रार देते हो क्या इस से यह अभिप्राय है कि मसीह ए नासरी की आत्मा उन में प्रवेश कर गई है? यदि यही मतलब है तो यह आवागमन हुआ। और आवागमन की धारणा क़ुरआन ए करीम के खिलाफ है। अतः मैंने हंस कर कहा कि पादरी साहिब आप को ग़लती लग गई है हम यह नहीं मानते कि मिर्ज़ा साहिब में मसीह ए नासरी कि आत्मा प्रवेश कर गई है बल्कि हमारा अर्थ आप (अलैहिस्सलाम) को मसीह ए नासरी के रूप में क़रार देने से यह है कि आप मसीह ए नासरी के आचरण और अध्यात्म के रंग में रंगीन होकर आए हैं। मैंने जब यह उत्तर दिया तो उस का रंग उड़ गया और कहने लगा कि आप को किसने बताया कि मैंने यह सवाल करना था। मैंने कहा कि आप यह बताइये कि क्या आप का इस सवाल से यही प्रायोजन था या नहीं ? कहने लगा कि हाँ मेरी मंशा तो यही थी। आवागमन के विरुद्ध है तो अहमदी मिर्ज़ा साहिब को मसीह ए मौऊद किस प्रकार कह सकते हैं। कहने लगा कि मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि नबी को कैसे स्थान पर आना चाहिए अर्थात उसे अपने कर्तव्यों के निर्वाहन के लिए किस प्रकार का स्थान चाहिए ? जैसे ही उस ने यह दूसरा प्रश्न किया साथ ही पुनः खुदा ने मेरे दिल में यह बात डाल दी कि इस प्रश्न से इसका प्रायोजन यह है कि क़ादियान एक छोटा सा गाँव है यह पूरे विश्व का केंद्र कैसे बन सकता है। और इस छोटे से स्थान से समस्त विश्व में प्रचार किस तरह किया जा सकता है। यदि मिर्ज़ा साहिब का आने का उद्देश्य इस्लाम का प्रचार करना है तो आप को ऐसी जगह भेजना चाहिए था जहाँ से पूरे विश्व में आवाज़ पहुंच सकती हो न यह कि क़ादियान जो एक छोटा सा गाँव है, उस में आप को भेज दिया जाता। अतः अल्लाह तआला ने इस प्रश्न के तुरंत बाद मेरे दिल में यह बात डाल दी और मैंने फिर उसे मुस्कुरा के कहा कि नासरा या नासरा से बड़ा कोई शहर हो वहां नबी आ सकता है। हज़रत मसीह जिस गाँव में प्रकट हुए थे उस का नाम नासरा था और नासरा की जनसंख्या मुश्किल से दस से बारह घरों पर आधारित थी। मेरे इस उत्तर पर फिर उस का रंग उड़ गया और उसे आश्चर्य हुआ कि मैंने उसकी उसी बात का उत्तर दे दिया जो वास्तव में उस के प्रश्न के पीछे थी। इस के बाद उसने तीसरा प्रश्न किया जो इस समय मुझे याद नहीं रहा। अंततः उस ने तीन प्रश्न किये और तीनों प्रश्नों के बारे में पहले ही अल्लाह तआला ने मुझे बता दिया कि उसका इन प्रश्नों से असल मंशा क्या है और बावजूद इसके कि वह चकमा देकर पहले और सवाल करता था फिर भी अल्लाह तआला उस की असल मंशा मुझ पर प्रकट कर देता था। और वह बिलकुल लाजवाब हो गया। तो अल्लाह तआला दिलो पर अजीब रंग में नियंत्रण करता है और इस माध्यम से अपने बंदो की सहायता करता है। और यह नियंत्रण केवल अल्लाह तआला के वश में होता है बंदों के नहीं।[3]

पादरी ज़्वेमर अपने इस दौरे को बहुत महत्वपूर्ण समझा करते थे और इस को अपने कारनामे के तौर पर बयान किया करते थे। हज़रत मुस्लेह मौऊदरज़ि अपने सम्बोधन शीर्षक “हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के कारनामे” 28 दिसंबर 1928 ई जलसा सालाना क़ादियान के अवसर पर एक जगह फरमाते हैं कि:

अतः जमाअत ए अहमदिय्या के काम के महत्व का उन लोगों को भी इक़रार है जो जमाअत में शामिल नहीं हैं बल्कि जो इस्लाम के शत्रु हैं वह भी इक़रार करते हैं। अभी कलकत्ता में डाक्टर ज़्वेमर के लेक्चर हुए। यह डाक्टर ईसाइयों में सब से अधिक इस्लाम के बारे में जानकारी रखने के दावेदार हैं। मिस्र में एक पत्रिका “मुस्लिम वर्ल्ड” निकालते हैं। पिछली बार जब आए तो क़ादियान भी आए थे। यहां से जाकर उन्होंने दूसरे शहरों में इश्तिहार (विज्ञापन) दिया था कि वह डाक्टर ज़्वेमर जो क़ादियान से भी हो आया है उनका लेक्चर होगा। कुछ समय पूर्व वह कलकत्ता गए और वहां उन्होंने लेक्चर दिया। मौलवी अब्दुल कदीर साहिब एम् ऐ जो मेरी एक पत्नी के भाई हैं। उन्होंने कुछ प्रश्न करने चाहे। इस पर पूछा गया कि क्या आप अहमदी हैं ? उन्होंने कहा : हाँ। तो इस पर कहा गया कि हम अहमदियों से बहस नहीं करते। मिस्र में इन्हीं सज्जन के पर्यटन से काई लोग मसीही (ईसाई) बना लिए गए। सौभाग्यवश एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान मिस्री जो उन दिनों मिस्र में थे उन्हें मिल गया। उन्होंने उसे अहमदी दृष्टिकोण के तर्क समझाए। फ़िर वह पादरी ज़्वेमर के पास गया और जाकर बात की और कहा कि मसीह जीवित नहीं बल्कि क़ुरआन करीम के अनुसार उन की मृत्यु हो गयी है। उस पादरी ने कहा कि कहीं तुम किसी अहमदी से तो नहीं मिले? मिस्री ने कहा कि हाँ मिला हूँ। यह उत्तर सुन कर वह घबरा गए और आगे बात करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। अतः खुदा की कृपा से हमारी जमाअत को मज़हबी दुनिया में ऐसा महत्व प्राप्त हो रहा है कि संसार आश्चर्यचकित है।[4]

सन्दर्भ

[1] Who Is Who by Emanuel Khokhar, भाग 2, पृष्ठ 185

[2] तारीखे अहमदिय्यत भाग 4 पृष्ठ 470

[3] तफ़्सीर ए कबीर भाग 7, पृष्ठ 89-90

[4] हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के कारनामे, अन्वारुल उलूम खंड 10, पृष्ठ 124-125

Related Topics

0 टिप्पणियाँ

प्रातिक्रिया दे

Avatar placeholder

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Mirza_Ghulam_Ahmad
Hazrat Mirza Ghulam Ahmad – The Promised Messiah and Mahdi as
Mirza Masroor Ahmad
Hazrat Mirza Masroor Ahmad aba, the Worldwide Head and the fifth Caliph of the Ahmadiyya Muslim Community
wcpp
Download and Read the Book
World Crisis and the Pathway to Peace

More Articles

Twitter Feed