क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त करने वाला अल्लाह तआला है (क़िस्त-2)

इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआन-ए-मजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआन-ए-मजीद की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया।
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क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त करने वाला अल्लाह तआला है (क़िस्त-2)

इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआनमजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआनमजीद की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया।

मुहम्मद हमीद कौसर

19 सितंबर 2022

क़ुरआन-ए-मजीद की 26 आयतों पर आरोपों के उत्तर
(क़िस्त – 2)

क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त जिब्राई अलैहिस्सलाम के माध्यम से अल्लाह तआला ने हिफ़ाज़त और हद दर्जा की सावधानी को दृष्टिगत रखते हुए यह तरीक़ भी इख़तियार फ़रमाया कि हर रमज़ान में जितना क़ुरआन-ए-मजीद नाज़िल हुआ करता था हज़रत जिब्राई अलैहिस्सलाम सय्यदना मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम उसकी दुहराई फ़रमाया करते थे और फिर जब हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का जीवन का आख़िरी वर्ष था तो दोनों ने यह दुहराई दो बार की। इसलिए उम्मुल मोमेनीन हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि हज़रत फ़ातमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बताया कि नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने मेरे कान में फ़रमाया कि हर वर्ष जिब्राई मेरे साथ क़ुरआन-ए-मजीद का एक दफ़ा दौर किया करते थे लेकिन इस वर्ष दो दफ़ा दौर किया इस इससे मैं यही समझता हूँ कि मेरे सवर्गवास का समय क़रीब आ गया है।

إِنَّ جِبْرِيلَ كَانَ يُعَارِضُنِي الْقُرْآنَ كُلَّ سَنَةٍ  وَإِنَّهُ عَارَضَنِي الْعَامَ مَرَّتَيْنِ

(صحيح بخاری، کتاب التفسیر،باب کان جبریل یعرض القرآن)

अनुवाद : हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा वर्णन करती हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने अपनी इस बीमारी में जिसमें आपकी वफ़ात हुई अपनी साहबज़ादी हज़रत फ़ातिमा रज़ी अल्लाह अन्हा से फ़रमाया जिब्राई हर साल मुझ से एक-बार क़ुरआन-ए-करीम का दौर करते थे लेकिन इस साल उन्होंने दो दफ़ा दौर किया है।

अब इस इलाही इंतिज़ाम के बाद कोई सम्भावना वर्तमान क़ुरआन-ए-मजीद में कमी बेशी की नहीं रहती।

क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त के सम्बन्ध में मुस्तश्रिक़ीन की स्वीकृति

यहां यह बताना भी आवश्यक है कि मुस्तश्रिक़ीन ने इस बात का खुल्लमखुल्ला इक़रार किया है कि आज जो क़ुरआन-ए-मजीद मुसलमानों के हाथों और उनके सीनों में महफ़ूज़ है वह वही क़ुरआन-ए-मजीद है जो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुआ था। कुछ की प्रतिपुष्टि निम्नलिखित हैं।

सर विलियम म्योर की राय  : सिर विलियम म्योर लिखते हैं कि “दुनिया के पर्दे पर शायद क़ुरआन-ए-मजीद के अतिरिक्त और कोई किताब ऐसी नहीं जो बारह सौ साल के लम्बे समय तक बिना किसी परिवर्तन और बदलाव के अपनी असली अवस्था में महफ़ूज़ रही हो। फिर लिखते हैं: “हमारी इंजीलों का मुसलमानों के क़ुरआन-ए-मजीद के साथ मुक़ाबला करना जो बिल्कुल ग़ैर परिवर्तन और बदलाव के चला आ रहा है। दो ऐसी चीज़ों का मुक़ाबला करना है जिन्हें आपस में कोई भी निसबत नहीं।” फिर लिखते हैं : “इस बात की पूरी पूरी अंदरूनी और बैरूनी ज़मानत मौजूद है कि क़ुरआन-ए-मजीद अब भी इसी शक्ल-ओ-सूरः में है जिसमें कि मुहम्मद ने उसे दुनिया के सामने पेश किया था।’’ फिर लिखते हैं : हम यह बात पूरे यक़ीन के साथ कह सकते हैं कि क़ुरआन-ए-मजीद की हर आयत मुहम्मद से लेकर आज तक अपनी असली और ग़ैर मुबद्दल अवस्था में चिली है।’’

(बहवाला लाईफ़ आफ़ मुहम्मद दीबाचा पृष्ठ 21-22-25-26 )

नोल्ड की राय : नोल्ड की जो जर्मनी का एक निहायत प्रसिद्ध ईसाई मुस्तश्रिक़ गुज़रा है और जो इस फ़न में मानों उस्ताद माना गया है। क़ुरआन-ए-मजीद के सम्बन्ध में लिखता है कि “आज का क़ुरआन-ए-मजीद ठीक उसी प्रकार वही है जो सहाबा के वक़्त में था।’’ फिर है: “योरोपियन उल्मा की यह कोशिश कि क़ुरआन-ए-मजीद में कोई परिवर्तन साबित करें पूर्णतः नाकाम रही है।”

(इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका शब्द क़ुरआन-ए-मजीद )

प्रोफ़ैसर निकल्सन की राय : फिर इंग्लिस्तान का प्रसिद्ध मसीही मुस्तश्रिक़ प्रोफ़ैसर निकल्सन अपनी अंग्रेज़ी पुस्तक “अरब की अदबी तारीख़” में लिखता है: “इस्लाम की आरंभिक तारीख़ का ज्ञान हासिल करने के लिए क़ुरआन-ए-मजीद एक बेनज़ीर और हर शक-ओ-शुबा से पवित्र किताब है और निसदेह बुद्ध धर्म या मसीहीयत या किसी पुराने धर्म को इस किस्म का मुस्तनद असरी रिकार्ड हासिल नहीं है,जैसा कि क़ुरआन-ए-मजीद में इस्लाम को हासिल है।’’ (अरब की अदबी तारीख़)

मुख़ालिफ़ीन की आरा के बाद बरमला यह कहा जा सकता है कि اَلفَضلُ مَا شَھِدَت بِہِ الْاَعدَاءُ फ़ज़ीलत वही होती है जिसकी दुश्मन गवाही दे। जादू वह जो सिर चढ़ कर बोलो।

 आरोप नम्बर : 2

एतिराज़ करने वाले ने सही बुख़ारी की कुछ अहादीस के हवाले से तहरीर किया है कि आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के बाद चार सहाबा जो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के संदेश से वाक़िफ़ थे यही चार अंसार थे जिन्हों ने क़ुरआन-ए-करीम को जमा किया और फिर हज़रत अबू दर्दा का वर्णन किया है।

उत्तर : एतिराज़ करने वाले के आरोप के उत्तर में तहरीर है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का जीवन के आख़िरी दिनों में एक व्यक्ति मुसल्मा (कज़्ज़ाब) नामी ने नबुव्वत का ऐलान कर दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की वफ़ात के बाद इस्लामी हकूमत से बग़ावत कर दी। यह व्यक्ति यमामा का रहने वाला था जब उसकी बग़ावत का असर बड़ा होने लगा और यह उपद्रव का कारण बनने लगा तो हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसके दमन के लिए हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को तेराह हज़ार (13000) मुसलमानों का लश्कर देकर रवाना फ़रमाया। मुसल्मा कज़्ज़ाब ने अपने चालीस हज़ार (40000) अस्करियों के साथ ख़ालिद बिन वलीद के लश्कर का मुक़ाबला किया और फ़रीक़ैन में घमासान की जंग हुई और इस जंग में बहुत सारे सहाबा शहीद हो गए। उनमें से बहुत से क़ुरआन-ए-मजीद के हाफ़िज़ और क़ारी थे। बुख़ारी में रिवायत है कि हज़रत जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु वर्णन करते हैं कि इस हादिसा के बाद हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुझे अपने पास बुलाया। उस वक़्त हज़रत उमर बिन अल्-ख़िताब भी आपके पास थे। हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुझे अर्थात जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु को सम्बोधित करते हुए फ़रमाया कि उमर मेरे पास आए और कहा कि जंग-ए-यमामा में क़ुरआन-ए-मजीद के बहुत से हुफ़्फ़ाज़ शहीद हो गए हैं और इसी तरह और कई स्थानात पर पुराने हुफ़्फ़ाज़ और कारी शहीद हो गए हैं और फ़ौत होते चले जा रहे हैं। इस लिए मेरा निवेदन है कि आप क़ुरआन-ए-मजीद को एक साथ करने का हुक्म दें। मैंने हज़रत उमर से कहा मैं वह काम किस तरह कर सकता हूँ जो रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने नहीं किया? हज़रत उमर ने कहा ख़ुदा की क़सम फिर भी यह अच्छा है। अतः हज़रत उमर बार-बार मुझे कहते रहे। इसके बाद अल्लाह तआला ने मेरा सीना खोल दिया। हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के निम्नलिखित शब्द ध्यान देने योग्य हैं।

حَتّٰی شَرَحَ اللہُ صَدْرِی لِذٰلِکَ

(बुख़ारी किताब अल् तफ़सीर बाब जमा अल् क़ुरआन)

अर्थात अल्लाह ने क़ुरआन-ए-करीम को एक साथ करने के लिए हज़रत अबू बकर का सीना खोल दिया। सय्यदना मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का ख़लीफ़ा प्रथम जिसके बारे में अल्लाह तआला ने क़ुरआन-ए-मजीद में फ़रमाया 

ثَانِیَ اثْنَیْنِ اِذْ ہُمَا فِی الْغَارِ 

(सूरः तौबा आयत : 40)

दो में से एक। इसका सीना उस अल्लाह तआला ने खोला जिसने क़ुरआन-ए-मजीद नाज़िल फ़रमाया था और उसके माध्यम से वह वादा पूरा फ़रमाया

وَ اِنَّا لَہٗ لَحٰفِظُوْنَ

(سورۃ الحجر ،آیت 11)

اِنَّ عَلَیْنَا جَمْعَہٗ وَ قُرْاٰنَہٗ 

(सूरः कय्यामा ،آیت  18)

क़ुरआन-ए-मजीद को एक साथ करवाना, रखवाना और क़ियामत तक उसकी हिफ़ाज़त करते चले जाना यह अल्लाह की ज़िम्मेदारी है। इसलिए बुख़ारी की रिवायत में वर्णित है कि क़ुरआन-ए-मजीद जो अलग स्थानों पर तहरीर शूदा था उसको एक साथ करने के लिए अल्लाह तआला ने हज़रत जै़द बिन साबित को शरह सदर अता फ़रमाया उन्होंने क़ुरआन-ए-मजीद खजूर (लकड़ी) की तख़्तीयों और पत्थर की सलेटों और “صدور الرجال” लोगों के सीनों में से महफ़ूज़ और एक साथ किया।

याद रहे कि हज़रत जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु क़ुरआन-ए-मजीद को एक साथ करने की यह कार्रवाई कहीं छुप कर या खु़फ़ीया तौर पर नहीं कर रहे थे बल्कि मदीना मुनव्वरा में यह फ़रीज़ा अदा कर रहे थे और इस वक़्त इसी मदीना मुनव्वरा में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो,  हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और पुराने किबार सहाबा भी मौजूद थे उनकी मौजूदगी में किसी किस्म के बढ़ाने और घटाने की कोई सम्भावना कदापि नहीं थी और न ही किसी ने ऐसे संदेह का इज़हार किया। यह मुस्तनद मुसहफ़ क़ुरआन-ए-मजीद हज़रत उम्मुल मोमेनीन हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा जो हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हो की साहबज़ादी सय्यदना मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की पत्नी थीं के पास अमानतन रखवा दिया गया और जब हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो के अहद-ए-ख़िलाफ़त में इस्लामी हकूमत की सीमा अजमी और ग़ैर अरबी इलाक़ों तक बढ़ गई और ग़ैर अरबी लोग और दूर दराज़ के अरब क़बायल के लोग इस्लाम में शामिल हो गए। आर्मेनिया औरा ॓अज़रबाइजान भी इस्लाम में दाख़िल हो गया तो यह मुनासिब और आवश्यक समझा गया कि दूर दराज़ के इलाक़ों में क़ुरआन-ए-मजीद को सही उच्चारण और तर्तीब से पढ़ने के लिए असल मुस्तनद क़ुरआन-ए-मजीद की नकलें करवा कर अलग देशों में भिजवा दी जाएं इसलिए हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो  ने असल नुस्ख़ा क़ुरआन-ए-मजीद हज़रत हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा से मंगवाया और हज़रत जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत सईद बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत अब्दुर्रहमान बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि इस की नकलें करें, इसलिए उन्होंने इस की नकलें तैयार कीं और यह सब कुछ मदीना मुनव्वरा में किबार सहाबा की मौजूदगी में हुआ। असल नुस्ख़ा हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो ने हज़रत हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा को वापस भिजवा दिया।  رَدَّ عُثْمَانُ الْصُّحُفَ اِلٰی حَفْصۃ (बुख़ारी अल् तफ़सीर) एतिराज़ करने वाले की सारी तवज्जा हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो के समय में क़ुरआन-ए-मजीद को एक साथ करने और इस की नकलें करवाने की तरफ़ रही और ख़ुद को भी और दूसरों को भी इस मुग़ालता में डालने की कोशिश की कि ख़ुदा-न-ख़्वास्ता इन दोनों खल़िफ़ाओं ने इसे तहरीर करवाया। एतिराज़ करने वाले को यह याद रखना चाहिए कि क़ुरआन-ए-मजीद हज़ारों सहाबा और ताबईन के हाफ़िज़ा और सीनों में बहुत पहले से महफ़ूज़ था यह तो एक एहतियात से संबंधित तरीक़ था जो इख़तियार किया गया।

लेखक  नाज़िर दावत इलाल्लाह मर्कज़िया, उत्तर भारत, क़ादियान

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