रोज़मर्रा के मस्ले-मसाइल और उनका हल

प्राथमिक इस्लामिक मुद्दों के बारे में हज़रत अमीरुल मोमिनीन ख़लीफ़तुल मसीह पंचम (अ ब अ) के मार्गदर्शन जो विभिन्न अवसरों पर आपने लिखित पत्रों तथा M T A के प्रोग्रामों में दिए हैं सभी के लाभार्थ आधिकारिक रूप से प्रकाशित किये जा रहे हैं।

रोज़मर्रा के मस्ले-मसाइल और उनका हल

ज़ाहिर अहमद खान, प्रधान अभिलेख विभाग, निजी सचिवालय, लंदन।

प्राथमिक इस्लामिक मुद्दों के बारे में हज़रत अमीरुल मोमिनीन ख़लीफ़तुल मसीह पंचम (अ ब अ) के मार्गदर्शन जो विभिन्न अवसरों पर आपने लिखित पत्रों तथा MTA के प्रोग्रामों में दिए हैं सभी के लाभार्थ आधिकारिक रूप से प्रकाशित किये जा रहे हैं।

(जंग-ए-जमल) ऊंट युद्ध और हज़रत उमर (रज़ि) के खिलाफ झूठा आरोप

ऊंट युद्ध की वास्तविकता और कारकों के सम्बन्ध में हज़रत अमीरुल मोमिनीन से प्रश्न किया गया जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि हज़रत उमर (रज़ि) ने हज़रत फातिमा (रज़ि) को बड़े निर्मम तरीके से पीटा था जिसके कारण उनका गर्भपात हो गया था। हज़रत अमीरुल मोमिनीन ने अपने पत्र दिनांक 21 नवंबर 2019 को निम्नलिखित उत्तर दिया।
हज़रत फातिमा (रज़ि) के संबंध में हज़रत उमर (रज़ि) पर आरोप बहुत हास्यास्पद, अनुचित तथा वास्तविक घटनाओं और तथ्यों के विरुद्ध है। हज़रत फातिमा (रज़ि) पैग़म्बर स अ व के देहांत के पश्चात कुछ महीने ही जीवित रहीं। उन्होंने अधिकतर समय बीमारी में ही व्यतीत किया। सब से बढ़ कर ये कि हज़रत फातिमा (रज़ि) पैग़म्बर स अ व की पुत्री थीं। हज़रत उमर (रज़ि) उन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कैसे कर सकते थे हज़रत उमर (रज़ि) तो उन लोगों से भी अत्यंत प्रेम करते थे जिनका पैग़म्बर स अ व से सम्बन्ध मात्र था चाहे भले ही वे उन की वास्तविक संतान न भी हों। अतः एक बार हज़रत उमर (रज़ि) के पुत्र हज़रत अब्दुल्लाह (रज़ि) ने उनसे पूछा कि आप (रज़ि) ने मेरा वेतन हज़रत उसामा बिन ज़ैद (रज़ि) से कम क्यों नियुक्त किया है हज़रत उमर (रज़ि) ने उत्तर दिया कि उसामा नबी करीम स अ व को तुम से अधिक प्रिय था तथा तुम्हारे बाप से अधिक उसामा के बाप हज़रत ज़ैद नबी स अ व को प्रिय थे। इसीलिए मैंने उसे अधिक वेतन दिया।
अतः जिस ने अपने पुत्र के बदले नबी स अ व के नौकर के पुत्र को वरीयता दी हो तो यह कभी नहीं हो सकता के उन्होंने नबी स अ व की वास्तविक संतान के साथ बुरा व्यवहार किया हो। यह हज़रत उमर (रज़ि) पर उन के शत्रुओं द्वारा लगाया गया एक झूठा आरोप है।
जहां तक (जंग ए जमल) ऊंट युद्ध का सम्बन्ध है इस में कोई संदेह नहीं कि यह मुसलमानों के दो वर्गों के मध्य लड़ा गया था। वे हज़रत अली (रज़ि) और हज़रत आयशा (रज़ि) की सेनाएं थीं। इस के अतिरिक्त कोई भी युद्ध जो मुसलमानो ने लड़ा वह इतना खूनी नहीं था जितना कि यह।
बहुत सारे मुसलमान महान जर्नलों तथा शूरवीरों समेत इस युद्ध में मारे गए। हालाँकि इस पूरे घटनाक्रम के मुख्य अपराधी वही उपद्रवी विद्रोही थे जिन्हो ने हज़रत उस्मान (रज़ि) की हत्या करके मदीना पर कब्ज़ा कर लिया था। यह युद्ध भी उन्ही बदमाशों के उकसाने पर हुआ था। जिन्हों ने दो मुसलमान ग्रुपों में ग़लतफ़हमियाँ पैदा करके और स्वयं ही बहुत से दुष्ट कार्य करके आपस में मुसलमानो को लड़वा दिया।
हज़रत मुस्लेह मौऊद (रज़ि) ने खिलाफत-ए-अली के दौर की घटनाओं में इस विषय पर विस्तार से रौशनी डाली है। इसे भी पढ़ लें।

बच्चोंं के द्वारा मस्जिद में आज़ान देने के बारे में निर्देश

किसी ने जमात के प्रधान मुफ़्ती से बच्चोंं द्वारा मस्जिद में अज़ान दिए जाने के विषय में फतवा हासिल किया। लेकिन उन का नज़रिया इस फतवे के विपरीत था उन्होंने फिर इस विषय पर अपने विचार हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ ब अ को लिखे, यह विनती करते हुए कि छोटे बच्चों को अज़ान देने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हुज़ूर अ ब अ ने अपने पत्र दिनांक 25 दिसंबर 2019 में निम्नलिखित उत्तर दिया।

“इस विषय पर मुफ़्ती सिलसिला के जवाब बिलकुल दरुस्त है और मैं इस से सहमत हूँ।”

यदि मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाले) के लिए कोई शर्त होती तो नबी स अ व अवश्य ही इस ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते जैसा कि आप स अ व ने नमाज़ पढ़ाने के लिए बहुत सी शर्तें निर्धारित की हैं। हालाँकि अज़ान के बारे में नबी करीम स अ व ने यह फ़रमाया है कि जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से एक व्यक्ति अज़ान दे। आप स अ व ने मुअज़्ज़िन के बारे में कोई शर्त नहीं लगाई।
अतः अज़ान देना पुण्य का कार्य है परन्तु ये कोई ऐसी ज़िम्मेदारी नहीं है जिस के लिए कोई विशेष प्रकार की शर्त लगाने की आवश्यकता हो बल्कि हर ऐसा व्यक्ति जिस की सुरीली आवाज़ हो और वह अज़ान देना जानता हो यह दायित्व निभा सकता है।
बच्चोंं को अज़ान देने के अवसर देना बच्चोंं को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें दीन की सेवा करने के उत्साह पैदा करता है। हुज़ूर फरमाते हैं कि- “मैंने खुद मस्जिद मुबारक में अलग अलग बच्चोंं को अज़ान देने का कार्य सौंपा हुआ है।”
(संकलन कर्ता के नोट : मुफ़्ती सिलसिला की राये जिस को इस पत्र में हुज़ूर अनवर अ ब अ का समर्थन प्राप्त था पाठकों के लाभ हेतु प्रस्तुत है )
प्रश्नकर्ता : अज़ान देने की कम से कम आयु क्या है ? क्या एक बालक अज़ान दे सकता है ?
मुफ़्ती सिलसिला : हमें शरीयत में मुअज़्ज़िन के लिए किसी आयु की हदबन्दी नहीं मिलती इसीलिए यदि कोई बच्चा सही से अज़ान देना जानता है तो फिर उसे आज्ञा है।

महिलाओं का ग़ैर मुस्लिम कैंसर पीड़ितों को बाल दान करना !

हुज़ूर अ ब अ से प्रश्न किया गया कि क्या मुस्लिम महिलाएं ग़ैर मुस्लिम कैंसर पीड़ितों को दान देने के लिए अपने बाल कटवा सकती हैं ?
एक पत्र दिनांक 25 दिसंबर 2019 में हुज़ूर ने निम्नलिखित उत्तर दिया-
“महिलाओं के बाल कटवाने में कुछ ग़लत नहीं है यदि इस की आवश्यकता पड़ जाए। लेकिन महिलाओं को सिर मुंडवाने की अनुमति नहीं है इसी तरह नबी स अ व ने मर्दों को औरतों की तथा औरतों को मर्दों की नक़ल करने से मना फ़रमाया है। अतः महिलाओं को परुषों की तरह अपने बाल नहीं रखने चाहिए। हलांकि श्रृंगार के लिए एक उपयुक्त हद तक बाल कटवाने में कोई हर्ज नहीं है। इस प्रकार कि महिलाओं के बाल परुषों की तरह न दिखें। एक रोगी को बाल दान करना पुण्य का कार्य है इस में कुछ भी ग़लत नहीं है जब एक व्यक्ति दूसरे के इलाज के लिए रक्त या शरीर के अंग दान कर सकता है तो फिर बाल क्यों नहीं दान कर सकता?

उन लोगों की सज़ा जो नबी स अ व की निंदा करते हैं, क़ुरान और अहादीस स्मरण करना, दुरूद और अन्य किस्म के ज़िक्र पढ़ना

हुज़ूर अ ब अ से प्रश्न किया गया :
1 उन लोगों की सज़ा जो नबी स अ व की निंदा करते है।
2 क़ुरान और हदीस स्मरण करना।
3 दुरूद और अन्य प्रकार के ज़िक्र करना।
 4 क़ुरान की विभिन्न दुआओं और सूरत की तिलावत करते हुए उनकी गणना करना।
हुज़ूर ने अपने पत्र दिनांक 25 दिसम्बर 2019 में निम्नलिखित उत्तर दिया:-
1. न तो क़ुरान और न ही हदीस धरती पर किसी मनुष्य को नबी स अ व की निंदा करने पर सज़ा देने का अधिकार देता है नबी स अ व ने तो खुद भी अपनी निंदा करने वाले को दण्ड नहीं दिया। एक बार हज़रत उमर (रज़ि) ने जो कि नबी स अ व के बहुत बड़े प्रशंसक थे, एक ऐसे दुष्ट व्यक्ति को जो नबी स अ व की निंदा करने का दोषी था दण्डित करने की अनुमति मांगी परन्तु नबी स अ व ने इस की अनुमति नहीं दी। अपने पवित्र गुरु के अनुसरण करते हुए हज़रत मसीह ए मौऊद अ स ने भी यही शिक्षा दी। इस के साथ ही इस्लाम धार्मिक तथा सांसारिक अधिकारियों को किसी धर्म अथवा उसकी आदरणीय शख्सियतों के बारे में ऐसी बातें करने से मना करता है जिन से उस के धर्म के अनुयाइयों के जज़्बात को ठेस पहुंचती हो।
अतः एक तो इस्लाम किसी भी व्यक्ति को नबी स अ व की निंदा की सज़ा देने की आज्ञा नहीं देता और दूसरी तरफ एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के धर्म और गुरुओं के बारे में अनुचित शब्दों के प्रयोग करने से मना करता है।
2. क़ुरान और हदीस को स्मरण करने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि उन की बार बार ध्यानपूर्वक तिलावत की जाए। हदीस में वर्णन है कि हज़रत अली (रज़ि) और हज़रत अबू हुरैरह (रज़ि) ने इस मामले में नबी स अ व से शिकायत तो नबी स अ व ने उन से फ़रमाया कि इन बातों का ध्यान रखें और बार बार तिलावत करें।
3.  हमारे दुरूद में उत्साह पैदा करने का यह भी एक तरीका है अर्थात इसे प्रेम और श्रद्धा के साथ अधिक से अधिक पढ़ो। जैसे हम अपने दूसरे कार्यों में दिलचस्पी रखते हैं और उन की ओर ध्यान देते हैं। ठीक उसी तरह हम इन पुण्य के कार्यों में दिलचस्पी रखेंगे तो फिर अपना उद्देश्य अवश्य प्राप्त कर लेंगे। इंशाल्लाह
बार बार दुरूद पढ़ना वास्तव में बड़ा ही पवित्र कार्य है जैसा कि हदीस में ब्यान हुआ है कि किसी भी व्यक्ति की प्रार्थना अल्लाह तक नहीं पहंचती जब तक कि वह नबी स अ व पर दुरूद न भेजे यद्यपि अगर केवल दुरूद भेजना ही काफी होता और एक व्यक्ति को अन्य प्रार्थनाएं करने से छुटकारा दिला दिया जाता तो फिर नबी स अ व ने विभिन्न परस्थितियों में दुरूद के अलावा अन्य दुआएं क्यों की और आप स अ व ने सहाबा को विभिन्न प्रकार की दुआएं क्यों सिखाईं ।
अतः बहुत सी ऐसी दुआओं (प्रार्थनाओं) का उल्लेख हदीस में मिलता है जो नबी स अ व किया करते थे। सहाबा को भी आप स अ व ने दुआएं सिखाईं।
और यही बात हमें नबी करीम स अ व के सच्चे आशिक़ हज़रत मसीह ए माउद अ स के जीवन में भी दिखाई देती है। नबी स अ व के कथन की रौशनी में कि लोगों के अमल उनकी निय्यतों पर निर्भर करते हैं यदि कोई अपनी दुआओं में केवल दुरूद ही पढ़ता है इस ख्याल और आशा से कि दुरूद सर्वोप्रिए अल्लाह की कृपा ग्रहण करने का एक साधन है तो फिर अल्लाह भी उस व्यक्ति से वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा कि हदीस क़ुद्सी में बयान हुआ है اناعند ظن عبدی अर्थात मैं अपने बन्दे की अवधारणा के मुताबिक़ जो वह मेरे बारे में रखता है, उससे व्यवहार करता हूँ। अलग अलग प्रकार के दुरूद का हदीस में उल्लेख मिलता है उम्मत के विद्वानों ने अलग अलग प्रकार के दुरूद पढ़े हैं और उन के अलग अलग नाम भी ब्यान किये हैं। उन में से कुछ दुरूद लम्बे हैं और कुछ छोटे। दुरूद में सब सी पवित्र दुरूद वह है जो नबी स अ व के पवित्र मुख से ब्यान हुआ और जो आप स अ व ने स्वयं अपने सहाबा को सिखलाया। इन बातों का सार व्यक्ति की निय्यत, प्रेम और सत्कार है कि कैसे वो सर्वोप्रिए अल्लाह का प्रेम हासिल करना चाहता है। उसकी निय्यत और निष्ठा अवश्य ही सर्वोप्रिय अल्लाह तक पहुंचती है।
4. हदीसों से स्पष्ट है कि नबी स अ व प्रश्नकर्ता के स्वभाव को ध्यान में रखकर विशेष दिशा निर्देश दिया करते थे। इसीलिए आप स अ व ने किसी समय एक ही प्रश्न के अलग अलग उत्तर दिए। आप स अ व ने लोगों की निजी कमियों के अनुसार उन्हें निर्देश दिए। अतः कुछ ज़िक्र और दुआएं भी ऐसे ही दिशा निर्देश में से हैं। इस के पीछे एक तर्क ये भी है कि व्यक्ति को वो दुआएं और ज़िक्र कम से कम उस हद तक और उतनी संख्या में अवश्य कर लेने चाहिए।
यह भी स्मरण रहे जैसा कि हज़रत मसीह ए मौऊद अ स ने बड़ी स्पष्ट व्याख्या की है कि तोते की भांति दुआ और ज़िक्र पढ़ने का कोई लाभ नहीं है बल्कि सर्वोप्रिय अल्लाह का प्रेम ज़रूरी है। यह आवश्यक है कि मनुष्य अपना जीवन इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार व्यतीत करे जिन का वर्णन इन दुआओं और ज़िक्र में किया गया है। और इस के साथ साथ दूसरे पुण्य कर्म भी करे।
एक व्यक्ति जो सूरत फातिहा बहुत पढ़ता है लेकिन उस में निहित सर्वशक्तिमान अल्लाह के गुणों से अपने आप को रंगने का प्रयास नहीं करता तथा क़ुरआन के आदेश صبغت اللہ अर्थात हम अल्लाह का दीन स्वीकार करते हैं और शिक्षा देने में अल्लाह से बेहतर कौन हो सकता है। और हदीस تخلقو باخلاق اللہ (अर्थात अपने अपने दायरे में अल्लाह के गुण अपनाने का प्रयास करो) के अनुसार पालन नहीं करते तो फिर विभिन्न प्रकार की दुआएं (प्रार्थनाएं) और ज़िक्र उसे कोई लाभ नहीं पहुंचा सकतीं।
यह भी आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने का एक साधन है क्यूंकि इस माध्यम से भी व्यक्ति सर्वोप्रिय अल्लाह का उपहार तथा प्रेम पा सकता है।

“पर्दा” क़ुरान का बड़ा स्पष्ट आदेश

नीदरलैंड्स की लज्ना मेंबर्स के साथ हुज़ूर अ ब अ की वर्चुअल मुलाक़ात में पर्दे से सम्बंधित प्रश्न का उत्तर देते हुए हुज़ूर अ ब अ ने फ़रमाया-
“पर्दे का हुकुम केवल अहमदिय्या जमात से ही खास नहीं है लज्ना तथा नसरात मेंबर्स को पता होना चाहिए कि पर्दे का आदेश क़ुरान करीम ने दिया है। यह अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म है। इस लिए जमात को अल्लाह और उस के रसूल के हुक्मों पर अमल करना चाहिए इन आदेशों का वर्णन क़ुरआन में मिलता है। क़ुरान में बहुत से महत्त्वपूर्ण एवं स्पष्ट आदेशों का उल्लेख है। और पर्दा भी उन में से एक है इसीलिए हम इस पर ज़ोर देते हैं यदि इस आदेश का अर्थ किसी अन्य इबारत से निकला हुआ होता अथवा अनुमान लगाया गया होता तो फिर निस्संदेह लड़कियों अथवा औरतों के लिए कोई गुंजाईश बाक़ी रहती कि विशेष परिस्थितियों में ही पर्दे की आवश्यकता है वरना नहीं। परन्तु जबकि एक स्पष्ट हुक्म दिया गया है तो हम इस अवस्था में इस पर अमल करने के लिए बाध्य हैं और दूसरों को भी यह बात बतानी होगी। आप को लड़कियों को यह बात साफ साफ बता देनी चाहिए इस प्रकार वे पर्दा करने का प्रयास करेंगी।
वास्तव में आपको उन्हें ये अवगत कराना पड़ेगा कि पवित्रता धर्म का एक अंग है जैसा कि हदीस में बयान हुआ है। जब पवित्रता प्राप्त करने का प्रयास होगा तो लड़कियां स्वयं ही पर्दा करनी लगेंगीं। फिर चाहे वो यूनिवर्सिटी की छात्राएं हों या कोई और वे अपनी पवित्रता की सीमाएं नहीं लाँघेंगीं और अपने कपड़ों का हमेशा ख्याल रखेंगी तथा पर्दा भी करेंगीं।

लज्ना मेंबर्स का समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित करना !

इसी मुलाक़ात में हुज़ूर अनवर अ ब अ से प्रश्न किया गया कि लज्ना को ऐसे कौन से कदम उठाने चाहिएं कि उनमें समाचार पत्रों में लिखने की योग्यता पैदा हो सके। हुज़ूर अनवर ने फ़रमाया :
आजकल जो भी समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं या जो लेख समाचार पत्रों में लिखे जाते हैं या जिन विषयों पर आप समझतीं हैं कि समाचार पत्रों, सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बहस की जाती है, उन बारे में सोशल मीडिया पर या लज्ना वेबसाइट पर उत्तर दे सकतीं हैं ताकि इस विषय में जागरूकता पैदा हो और सब को मालूम हो जाए कि इन बातों का यह उत्तर है।
इसी प्रकार जो लोग इस्लाम की प्रतिरक्षा में विभिन्न विषयों पर समाचार पत्रों में लिखना चाहते हैं वे इस तरह लिखें कि आप कहते हैं इस्लाम इस इस तरह शिक्षा देता है जबकि वास्तव में इस्लाम की वास्तविक शिक्षा इस तरह है इत्यादि। आप को योग्य लोगों को लेख लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बहुत से ऐसे विषय हैं जिन पर सोशल मिडिया पर चर्चा होती रहती है, उनका उत्तर देना चाहिए ताकि पाठक उसकी ओर आकर्षित हो जो आप बयान करना चाहते हैं ।
पश्चिमी देशों में मुसलमान औरतों के सम्बन्ध में जिस विषय पर चर्चा होती है वे यह हैं कि औरतों को स्वतंत्रता नहीं है, उनसे पर्दा कराया जाता है महिलाओं के विरुद्ध इस-इस प्रकार की पाबंदियां लगाई जाती हैं इत्यादि। महिलाओं को इन विषयों पर लिखना चाहिए और उन को बताना चाहिए कि तुम तो हमारे बारे में ऐसा कहते हो और मैं एक महिला हूँ और तुम्हारी इस बात पर मेरा यह उत्तर है।
यू. के. की लज्ना मेंबर्स इस प्रकार के लेख लिखतीं हैं और उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बजाए इसके कि पुरुष इन बातों का उत्तर दें महिलाओं को इसका उत्तर देना चाहिए। इसका लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए आपको इस कार्य के लिए एक टीम गठित करनी चाहिए और इस के साथ-साथ आपको इन बातों का ज्ञान भी होना चाहिए। आपको इस्लाम की शिक्षाओं का ज्ञान होना चाहिए और जब आप लिखने लगें तो आपको पूरी तरह से तैयार रहना चाहिए और तथ्यों के आधार पर लिखना चाहिए ताकि लोग आप के लेख से प्रभावित हों।

तब्लीग़ के लिए प्रतिभा का अभाव और इसका हल :

उसी मुलाक़ात में हुज़ूर अनवर को पता चला कि बहुत कम महिलाएं ऐसी हैं जो स्वतंत्र रूप लिख सकतीं हैं। हुज़ूर से प्रश्न किया गया कि इस बारे में क्या करना चाहिए। हुज़ूर अ ब अ ने फ़रमाया:
“यद्यपि कि ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम है फिर भी आपको उन का मार्गदर्शन करना चाहिए इससे उन में बेहतरी पैदा होगी। एक बार, दो, चार, छह, आठ, या जितनी भी लज्ना मेंबर्स हैं उनकी एक टीम तैयार हो जाए और उन को अच्छी तरह शिक्षित कर दिया जाए तो फिर दूसरी भी उन से प्रेरित हो कर उन के पीछे चलना शुरू कर देंगी। प्रश्न यह नहीं है कि इन मेंबर्स की संख्या थोड़ी है या अधिक है यदि एक भी कठिन परिश्रम करने वाली हो तो अकेली परिवर्तन ला सकती है। इसलिए जब आप उत्तर देना प्रारम्भ कर देंगी तो लोग स्वयं ही उत्तर लेने आने लगेंगे जो आपको और भी अधिक उत्तर देने में सहायता प्रदान करेंगे। इससे दूसरों को भी उत्तर देने तथा इस काम का हिस्सा बनने की प्रेरणा मिलेगी।
कुछ प्राप्त करने की इच्छा तथा किसी को ऐसा करने के लिए तैयार करने का हमेशा लाभ होता है। जब कुछ एक लज्ना मेंबर्स का नाम समाचार पत्रों में आता है तो दूसरों को भी इससे प्रेरणा मिलती है और इस प्रकार लज्ना मेंबर्स की संख्या धीरे धीरे बढ़ने लगती है।

शादी ब्याह के मामलों में पर्दापोशी (कमज़ोरियों पर पर्दा डालने) और साफसुथरी बात कहने का उचित उपयोग :

दिनांक 22 अगस्त 2020 की उसी मुलाक़ात में हुज़ूर अ ब अ से प्रश्न किया गया कि अल्लाह सत्तार अर्थात मनुष्य की कमज़ोरियों पर पर्दा डालने वाला है इस गुण को ध्यान में रखते हुए ब्याह करते समय लड़का-लड़की अथवा उन के परिवार वालों के बारे में छानबीन करना उचित होगा ?
इस पर हुज़ूर अ ब अ ने फ़रमाया :
अल्लाह तआला सत्तार है और वह लोगों की कमज़ोरियों पर पर्दा डालने को पसंद करता है अतः किसी को दूसरे व्यक्ति की किसी कमज़ोरी का ज्ञान हो जाए तो उसे दूसरों को बताना नहीं चाहिए। इसका अर्थ यह होगा कि मनुष्य को दूसरों की कमियों पर पर्दा डालना चाहिए। जबकि शादी ब्याह के मामलों में क़ुरआन मजीद का हुक्म यह है कि दोनों पार्टियों को साफ सुथरी और सच्ची बात करनी चाहिए।
शादी तय करते समय लड़के या लड़की में अगर कोई दोष है तो स्पष्ट रूप से एक दूसरे को बता देना चाहिए। तथ्यों को तोड़- मरोड़ कर बयान नहीं करना चाहिए ताकि आगे चल कर रिश्तों में कोई दरार पैदा न हो। इसीलिए हर बात एक-दूसरे को खुल कर बता देनी चाहिए। शादी ब्याह के मामले बड़े संवेदनशील होते हैं आगे चल कर लोग झगड़ा करें और कहें कि यह-यह बातें हमें पहले नहीं बतायीं गईं इसीलिए बेहतर है कि रिश्ता करते समय सारी बातें एक दूसरे को बता देनी चाहिए। इसीलिए निकाह के मौके पर क़ुरान मजीद की जो आयतें पढ़ी जाती हैं उन में भी सच्ची और सीधी बात कहने पर बहुत ज़ोर दिया गया है।
अतः किसी की कमियों को छुपाने का जो हुक्म है उसका अलग महत्व है और वह यह है कि किसी की कमियों और कमज़ोरियों को उजागर नहीं करना चाहिए। यदि आप किसी का रिश्ता तय कर रहे हैं तो आपको कहना चाहिए कि एक रिश्ता है और अगर आप किसी पक्ष की कमज़ोरियों से अवगत भी हैं तो आप को स्पष्ट कर देना चाहिए कि यह मात्र एक रिश्ता है आप दोनों पार्टियां आपस में मिल लें, दुआ करें, फिर कोई निर्णय लें। इस प्रकार आप सत्तारी पर अमल कर सकती हैं।
यह नहीं कि रिश्ता बताने से पहले आप किसी पार्टी से कहें कि इस आदमी में ये ये कमियां हैं। इस तरह तो उस आदमी की शादी ही नहीं हो पाएगी। आपको साधारण शब्दों में यह कहना चाहिए कि ये मात्र एक रिश्ता है जो भी एक दूसरे की अच्छी बुरी बातें हैं खुद देख लीजिये और आपस में मिल कर इस का फैसला कर लीजिये। फिर अगर रिश्ता पसंद हो तो स्वीकार कर सकते हैं और कोई भी निर्णय लेने से पहले दुआ अवश्य करनी चाहिए।
वास्तव में अल्लाह तआला को ही अद्रिश्ट (ग़ैब की बातों) का ज्ञान है वह ही जानता है कि व्यक्ति विशेष के लिए कौन सा रिश्ता सर्वश्रेष्ठ है इसीलिए प्रत्येक को कोई भी निर्णय लेने से पहले दुआ ज़रूर करनी चाहिए और इसीलिए अल्लाह ने दुआ-ए-इस्तखारा करने का हुक्म दिया है। इस्तखारा का अर्थ है भलाई चाहना। मनुष्य को अल्लाह तआला से भलाई मांगनी चाहिए यदि इस रिश्ते में भलाई है तो अल्लाह इसे मेरे लिए मुक़ददर कर दे और इस राह में उत्पन्न बाधाओं को दूर कर दे और अगर इस रिश्ते में कोई भलाई नहीं है तो हे अल्लाह! ऐसा कर दे कि यह रिश्ता टूट जाए और बात आगे न बढ़ पाए।
सत्तारी का यह अर्थ नहीं है कि दोनों पक्ष रिश्ता करते समय सच न बताएं या तथ्यों को सामने न रखें यदि दोनों पक्ष साथ मिल कर बैठते हैं तो बेहतर है कि सच्ची और साफ़ सुथरी बात करें और अपनी अच्छी बुरी बात खुल कर एक दूसरे को बता दें, परवेक्ट कोई भी नहीं होता प्रत्येक में अच्छाइयां भी होती हैं बुराइयां भी। इसका अर्थ यह नहीं है कि अपनी समस्त बुरी आदतों का ऐलान कर दिया जाए बल्कि यह मतलब है कि यदि ऐसी कोई बात है जिसका बाद में पता चलने से रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और शादी टूटने की भी नौबत आ सकती है तो ऐसा दोष विवाह से पूर्व दूसरे पक्ष को अवश्य बता देना चाहिए यदि कोई कमी है या बीमारी है, यदि कोई लड़की माँ न बन सकती हो या मर्द में कोई कमी है तो यह बातें रिश्ते से पहले एक दूसरे को बता देनी चाहिएं। ताकि आगे चल कर कोई समस्या उत्पन्न न हो।  

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