अनसार अली ख़ान, ढेंकानाल
हर वर्ष २१ सितम्बर को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस (International Day of Peace) मनाती है। यह दिन केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं, बल्कि पूरी मानवता को यह याद दिलाने का अवसर है कि इंसान का असली अस्तित्व युद्ध, घृणा और विनाश में नहीं, बल्कि शांति, प्रेम और भाईचारे में है। आज जब दुनिया परमाणु हथियारों के ख़तरों, आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता, आर्थिक असमानताओं और पर्यावरण संकट जैसे अनेक संकटों से जूझ रही है, तब शांति का संदेश केवल एक “विकल्प” नहीं बल्कि मानव अस्तित्व की बुनियादी शर्त बन चुका है।
इस्लाम की जड़ें ही शांति पर रखी गई हैं, “इस्लाम” शब्द का अर्थ ही शांति और समर्पण है । पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है: “और अल्लाह अमन के घर की ओर बुलाता है।” (सूरह युनुस)। पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने भी फ़रमाया – “मुसलमान वह है, जिसकी ज़बान और हाथ से दूसरे लोग सुरक्षित रहें।” (बुख़ारी)। इन आयतों और शिक्षाओं से स्पष्ट है कि इस्लाम की आत्मा ही अमन और इंसानियत की सुरक्षा है।
इसी शांति संदेश को उन्नीसवीं सदी के अंत में भारत की सरज़मीं पर हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी (अलैहि-स्सलाम) ने एक नए आध्यात्मिक अंदाज़ में पूरी दुनिया के समक्ष रखा। आपने यह घोषणा की कि असल जिहाद तलवार और हिंसा से नहीं, बल्कि क़लम, दुआ और मानवता की सेवा से है। आपका मिशन यह था कि सारी मानवता एक ईश्वर की छत्रछाया में एकजुट होकर अमन और भाईचारे का झंडा बुलंद करे। आज उसी मिशन को आपके उत्तराधिकारी, विश्वव्यापी आध्यात्मिक ख़लीफा, परम पावन हज़रत मिर्ज़ा मसरूर अहमद (अय्यदहुल्लाहु तआला बिनस्रिहिल अज़ीज़) पूरी शक्ति और दुआओं के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, ब्रिटिश पार्लियामेंट, यूरोपीय संसद, जापानी संसद, अमेरिकी कांग्रेस और जर्मनी के सेना मुख्यालय जैसे विश्व मंचों पर खड़े होकर अमन और न्याय का पैग़ाम पेश किया।
हज़रत मसरूर अहमद साहिब के इन ऐतिहासिक व्याख्यानों और भाषणों का संकलन “विश्व संकट तथा शांति पथ” के नाम से प्रकाशित है। यह किताब इंसानियत को चेतावनी देती है कि अगर परमाणु हथियारों की दौड़, आर्थिक असमानताओं और अन्याय की दीवारों को न तोड़ा गया तो पूरी दुनिया तबाही की आग में झुलस जाएगी। इस पुस्तक का केंद्रीय संदेश यही है कि न्याय के बिना शांति असंभव है। जब तक राष्ट्र एक-दूसरे के साथ बराबरी और सम्मान का रिश्ता कायम नहीं करते, धार्मिक और नस्ली भेदभाव को समाप्त नहीं करते, तब तक इंसानियत को चैन और सुरक्षा नहीं मिल सकती। यह पुस्तक केवल मुसलमानों या किसी ख़ास वर्ग के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए शांति का सार्वभौमिक संदेश है।
अहमदिया मुस्लिम समुदाय का योगदान केवल किताबों और भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी यह समुदाय दुनिया के हर कोने में इंसानियत की सेवा कर रहा है। Humanity First जैसे संस्थानों के ज़रिए यह समुदाय आपदाओं में राहत, शिक्षा, स्वास्थ्य और साफ़ पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करा रहा है।
हाल ही में पंजाब में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान Humanity First की टीमें लगातार राहत कार्यों में लगी हुई हैं। उन्होंने प्रभावित परिवारों तक भोजन, कपड़े, दवाइयाँ और पीने का साफ़ पानी पहुँचाया। कई इलाक़ों में मेडिकल कैंप लगाकर बीमार और घायल लोगों का इलाज किया गया। यह सेवाएँ इस बात का सबूत हैं कि अहमदिया मुस्लिम समुदाय केवल शांति का पैग़ाम नहीं देता, बल्कि संकट की घड़ी में बिना भेदभाव हर इंसान की मदद के लिए सबसे आगे रहता है।
इसके अतिरिक्त, अलग-अलग धर्मों के बीच संवाद और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने के लिए इंटरफ़ेथ डायलॉग आयोजित किए जाते हैं। हर साल दुनिया के कई देशों में “Peace Symposiums” के ज़रिए शांति सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है, जिनमें विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और समुदायों के लोग शामिल होकर अमन और भाईचारे की ज़रूरत पर चर्चा करते हैं। बच्चों और युवाओं की तरबियत पर भी ख़ास ध्यान दिया जाता है ताकि आने वाली पीढ़ी सेवा-भाव, निःस्वार्थता और भाईचारे की मिसाल बन सके।
इस तरह अहमदिया मुस्लिम समुदाय अपने खलीफ़ा की अगुवाई में यह पैग़ाम देता है कि शांति केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि जीवन का वास्तविक मिशन होना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस हमें याद दिलाता है कि अमन का रास्ता न्याय, सेवा और आध्यात्मिकता से होकर जाता है। “विश्व संकट तथा शांति पथ” में वर्णित कुरआनी शिक्षाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि अगर इंसानियत को बचाना है तो हमें युद्ध की बजाय शांति को, नफ़रत की बजाय भाईचारे को, और स्वार्थ की बजाय मानवता की सेवा को अपनाना होगा।
आज का दौर हमें यह पुकार – पुकार कर कह रहा है कि अगर दुनिया को बचाना है तो हथियारों से नहीं, बल्कि दिलों को जीतना होगा। अहमदिया मुस्लिम समुदाय का संदेश यही है कि असली अमन तभी संभव है जब इंसानियत न्याय, सेवा और आध्यात्मिकता के रास्ते पर चले। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस का असली अर्थ यही है कि हम सब मिलकर वह दुनिया बनाएं वह समाज बनाएं जहाँ हर दिल अमन में साँस ले सके और हर इंसान को यह भरोसा हो कि उसका कल सुरक्षित है।
लेखक अहमदिया मुस्लिम समुदाय के प्रचारक हैं और अभी गोवा में सेवा कर रहे हैं।
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