मामूनुर्रशीद तबरेज़
APRIL 10, 2021
संसार में जब भी कोई मौऊद नबी या रसूल आया है, उसके आने की ख़बरें ख़ुदा तआला उसके आने से पूर्व ही अपने नेक बंदों को दे देता है और यह ख़बरें ख़ुदा तआला के प्रिय ऋषि मुनि आने वाली नसलों के लिए भविष्यवाणियों के रंग में सुरक्षित कर जाते हैं। इन भविष्यवाणियों में मौऊद नबी की आमद का समय भी वर्णन किया होता है और स्थान भी। इसके अतिरिक्त भविष्यवाणियों में वादे वाले युग की निशानीयाऔर विशेषताएं का भी वर्णन किया जाता है। बाइबल में जगह जगह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में भी और हमारे प्यारे आक़ा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के बारे में बनी इस्राईली नबियों की भविष्यवाणियां मिलती हैं। रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने अपनी उम्मत के उल्मा के लिए फ़रमाया :-
عُلَمَآءُ اُمَّتِیْ کَاَنْبِیَآءِ بَنِیْ اِسْرَائِیْلَ
अर्थात मेरी उम्मत के उल्मा बनी इस्राईल के नबियों की भांति होंगे।
रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की उम्मत में जो बुज़ुर्गान और औलिया गुज़रे हैं उन्होंने आने वाले मौऊद मसीह व महदी के सम्बन्ध में उनके जन्म से पूर्व ही बनी इस्राईल के नबियों की भंति भविष्यवाणियां कीं। ये वे भविष्यवाणियां थीं जो हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के आने पर चमकते हुए दिन की भांति पूरी हुईं और आप की सच्चाई पर एक निशान बन गईं। हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं :-
“बहुत से अहले कशफ़ मुस्लमानों में से जिनका शुमार हज़ार से भी कुछ ज़्यादा होगा, अपने मुकाशफ़ात के द्वारा से तथा ख़ुदा तआला के कलाम के प्रमाण से सर्वसहमती से यह कह गए हैं कि मसीह मौऊद का आना चौदहवीं सदी के सिर से कदापि कदापि आगे नहीं बढ़ेगा और संभव नहीं कि एक बड़ा गिरोह अहले कशफ़ का कि जो समस्त अव्वलीन और आख़रीन का समूह है, वे सब झूठे हों और उनके समस्त तर्क भी झूठे हों।”
(तोहफ़ा गोल्ड़विया, रूहानी ख़ाज़ायन, भाग 17 पृष्ठ326 )
- इन नेक बुज़ुर्गाने उम्मत में से एक अल्लामा अब्दुल वहाब शेरानी रहमतुल्लाह अलैहि देहांत समय 976 हिज्री ने अपनी पुस्तक अल्वाकेआत वल्जवाहर में फ़रमाया है : ’’مَوْلِدُہٗ لَیْلَۃَ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ سَنَۃً خَمْسِیْنَ وَ مِئَتَیْنِ بَعْدَ الْاَلْفِ ‘‘ अर्थात ईमाम महदी अलैहिस्सलाम की पैदाइश 1250 हिज्री में होगी। (नूरुल अबसार फ़ी मनाक़िब ऑल बैअतुन्नबी मुख़्तार)
(2) 12वीं सदी के मुजद्दिद हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैहि को स्वयं ख़ुदा ने इलम दिया था कि
’’ اَلْمَہْدِیُّ تَہَیَّأَ لِلْخُرُوْجِ‘‘
अर्थात इमाम महदी आने को तैयार है। (तफ़हीमाते ईलाहिया, भाग 2 पृष्ठ 123 )
नवाब सिद्दीक़ हस्न ख़ान साहब ने अपनी पुस्तक हिज्जजुल किरामा फ़ी आसारिल कियाम 394 पर इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर के समय के बारे में लिखा है, फ़ारसी वाक्यांश का उर्दू अनुवाद यह है :-
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी ने इमाम महदी अलैहिस्सलाम की तिथि ज़हूर शब्द ”चिराग़ दीन” में वर्णन फ़रमाई जो कि अबजद के शब्दों के अनुसार 1268 होते हैं।
(3) नवाह दिल्ली में तक़रीबन आठ सौ वर्ष पूर्व एक बा-कमाल और साहिब कशफ़-ओ-करामात बुज़ुर्ग हज़रत नेअमतुल्लाह शाह वली रहमहुल्लाह गुज़रे हैं। उनके प्रसिद्ध फ़ारसी क़सीदा में आख़िरी ज़माना के हालात का वर्णन मिलता है। आप फ़रमाते हैं :-
महदी वक्त व ईसा दौरां
हर दो रा शाहसवार में बीनम
अर्थात उस समय के महदी और ईसा को मैं शाहसवार देखता हूँ। (अरबाईन फ़ी अहवाल अलमहदीयीन, प्रकाशन 1268 असली क़सीदा’ प्रकाशन मकतबा पाकिस्तान लाहौर)
(4) हज़रत शैख़ मुहियुद्दीन इब्ने अरबी रहमहुल्लाह देहांत का समय 638 हिज्री ने 628 में फ़रमाया :-
وَیَکُوْنُ ظُھُوْرُہٗ بَعْدَ مَضِیِّ خ ف ج مِنَ الْھِجْرَۃِ
‘‘अर्थात इमाम महदी का ज़हूर सन हिज्री के अनुसार ”ख फ ज” के गुज़रने पर होगा। (मुक़द्दमा इब्ने ख़ुलदून, पृष्ठ 354 अनुवाद मौलाना सईद हसन ख़ान यूसुफ़ी फ़ाज़िल)
ख फ ज की संख्या अबजद के हिसाब से 683 बनती हैं (ख 600 फ 80 ज 3) जबकि यह कथन 628 हिज्री का है इस तरह 628 को यदि 683 से जोड़ा जाए तो बाद हिज्री 1311 वर्ष बनते हैं जो महदी के निशान चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का वर्ष है।
(5)एक ईरानी बुज़ुर्ग शेख़ अली असग़र बरोजरदी जो बड़े बड़े ख़ताबात के हामिल और बहुत सी कुतुब के लेखक हैं, अपनी पुस्तक नूरुलअनवार पृष्ठ 215 पर लिखते हैं
(फ़ारसी शेअर का उर्दू अनुवाद यह है) अर्थात वर्ष “सरगी” में यदि तू जीवित रहा तो मुल्क बादशाहत और मिल्लत और धर्म में क्रांति आ जाएगी। सरगी के आदाद अबजद की संख्या के हिसाब से 1290 होते हैं। (इमाम महदी का ज़हूर मुहम्मद असदुल्लाह कश्मीरी, पृष्ठ 417)
(6) अरब मुल्कों के दौरे पर वहां के उल्मा का इमाम महदी के लिए इंतिज़ार देखकर ख़्वाजा हसन निज़ामी लिखते हैं :-
क्या अजब है कि यह वही समय हो और 1330 में सन्नौई की ख़बर के अनुसार हज़रत इमाम महदी का ज़हूर हो जाए और यदि वह समय अभी नहीं आया तो 40 हिज्री तक ज़हूर बिल्कुल निश्चित है क्योंकि अत्यधिक बुज़ुर्गों की भविष्यवाणियों को मिलाया जाए तो 40 तक सब का इत्तिफ़ाक़ हो जाता है।
(शेख़ सन्नौसी और ज़हूर महदआख़िर ज़मान पृष्ठ अंतिम)
(7) हज़रत हाफ़िज़ भाई ख़ान अलैहि रहमतुल्लाह जो स्यालकोट के एक वली बुज़ुर्ग गुज़रे हैं, मसीह मौऊद की आमद के बारे में फ़रमाते हैं (फ़ारसी कविता का उर्दू अनुवाद इस तरह है)
अर्थात जब हिज्री अन् के पूरे तेराह सौ वर्ष गुज़र जाऐंगे तब हज़रत ईसा का ज़हूर होगा। यहां यह बात काबिल-ए-ग़ौर है कि हज़रत हाफ़िज़ बरखु़र्दार साहब ईसा के “ज़हूर” के क़ाइल हैं आसमान से उतरने के नहीं।
(8) एक प्रसिद्ध शीया बुज़ुर्ग हज़रत अब्बू सईद ख़ानम हिन्दी गुज़रे हैं। आपने कशफ़ में हज़रत इमाम महदी के दर्शन किए थे। आप पूरा कशफ़ वर्णन करने के बाद आख़िर में फ़रमाते हैं :
’’کُلُّ ذٰلِکَ بِکَلَامِ الْھِنْدِ‘‘
(साफ़ी शरह उसूल काफ़ी, पुस्तक अल्हिज्जा, बाब मौलिद साहिब अल्ज़मान, भाग 3, हिस्सा 2, पृष्ठ 304)
अर्थात कशफ़ में हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने जिस भाषा में बात की वह सारी हिन्दुस्तानी भाषा में थी। (इमाम महदी का ज़हूर, पृष्ठ 363)
जबकि हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम की मात्र भाषा पंजाबी थी लेकिन इस में हिन्दुस्तान में बोली जाने वाली उर्दू ज़बान की ओर संकेत है। आपका ज़्यादा-तर लिटरेचर इसी भाषा में है।
(9)एक और सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत शैख़ हसन इराकी ने पुस्तक ग़ायतुल्मकसूद में लिखा है :-
“मैं तुम्हें एक बात सुनाता हूँ …. जब मैं शाम में नौजवानी की हालत में जामें बनी उमय्या में दाख़िल हुआ तो मैंने एक व्यक्ति को कुर्सी पर बैठे हुए महदी और उसके ख़ुरूज के बारे में बात चीत करते सुना। उस समय से महदी की मुहब्बत मेरे दिल में पड़ गई और मैं दुआ में लग गया कि अल्लाह तआला मुझे उससे मिलाए। अतः में एक वर्ष तक दुआ करता रहा। एक दिन में मग़रिब के बाद मस्जिद में था कि अचानक एक व्यक्ति मेरे पास आया, कि जिसके सिर पर अजमियों(जो अरबी नहीं होते)की पगड़ी बंधी हुई थी और ऊंट के बालों का जुब्बा था। उसने मेरे कंधे को अपने हाथ से छुआ और मुझे कहा, मेरी मुलाक़ात की तुझे क्या ज़रूरत है। मैंने कहा तू कौन है उस ने कहा मैं महदी हूँ, अतः मैंने उसके हाथ चूमे।” (ग़ायतुल्मकसूद, भाग 2, पृष्ठ 81)
इस में मवाउद-ए-ज़माना के अजमी होने की ख़बर दी है। इस हवाले को पहले वाले हवाले से मिलाकर देखें तो मौऊद इमाम के हिंदुस्तान में ज़ाहिर होने की ख़बर आने से पूर्व दी गई।
(10) हज़रत मुहियुद्दीन इब्ने अरबी रहमहुल्लाह जिनके बारे में आता है कि उन्होंने रसूल करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के इरशाद के अनुसार जो उन्हें स्वप्न में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया था, एक पुस्तक फ़िसूसुलहकम तहरीर फ़रमाई। इस में भविष्यवाणी फ़रमाई कि आने वाला मौऊद जो ख़ातमुल ओलिया भी है जोड़े में पैदा होगा। इससे पहले एक लड़की पैदा होगी इसके बाद वह पैदा होगा
भविष्यवाणी में बताया गया है कि आने वाला मौऊद ख़ातमुल ओलाद होगा। ख़ातमुल ओलाद के अर्थ ख़ातमुल ओलिया के हैं। दूसरे वह जोड़े में पैदा होगा और इस से पहले एक उसकी बहन पैदा होगी और उसका वतन चीन होगा। अरबी में ”अस्सीन” का शब्द प्रयोग हुआ है और यह शब्द अरबी में ग़ैर अरब इलाक़ा या दूर दराज़ के इलाक़ा के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यहां भी मौऊद नबी मसीह व महदी का वतन ग़ैर अरब इलाक़ा या दूर दराज़ का होना ही मुराद है।
(फ़िसूसुल हकम, पृष्ठ 36 अनुवादक मौलाना मुहम्मद मुबारक अली हैदराबादी, प्रकाशन 1308 हिज्री, प्रकाशन अहमदी कानपूर)
हज़रत मुहियुद्दीन इब्ने अरबी रहमहुल्लाह की ही एक और रचना “फ़ुतूहाते मक्की” है । इस पुस्तक की तीसरी जिल्द में आने वाले मौऊद के साथी और करीबियों का वर्णन किया गया है । इसलिए लिखा है :-
“वह सब अजमी होंगे। उनमें से कोई अरबी न होगा लेकिन वह अरबी में बात करते होंगे। उनके लिए एक हाफ़िज़-ए-क़ुरआन होगा जो उनके गोत्र से नहीं होगा क्योंकि उसने कभी ख़ुदा की ना-फ़रमानी नहीं की होगी। वह उस मौऊद का ख़ास वज़ीर और बेहतरीन अमीन होगा । ” (फ़ुतूहाते मक्की, भाग 3, पृष्ठ 364 से 365)
सुब्हान-अल्लाह इस भविष्यवाणी में जहां हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के अस्हाब का वर्णन है वहीं हज़रत हकीम मौलाना नूरुद्दीन साहिब ख़लीफ़तुल मसीह प्रथम रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ़ भी स्पष्ट संकेत है।
(11) मुल्तान के एक प्रसिद्ध वली बुज़ुर्ग हज़रत शैख़ मुहम्मद अब्दुल अज़ीज़ पहारवी ने इलहामे इलाही से ख़बर पाकर मसीह मौऊद की सदाक़त के निशान चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के लगने के बारे में भविष्यवाणी फ़रमाई (फ़ारसी शेअर का उर्दू अर्थ यह है) अर्थात 1311 हिज्री हमें सूर्य और चन्द्र को इकट्ठे एक महीने में ग्रहण लगेगा और ये दो निशान सच्चे महदी और झूठे दज्जाल के मध्य अंतर करने का कारण होंगे। इस भविष्यवाणी में सूर्य और चन्द्र ग्रहण का 1311 हिज्री हमें ज़ाहिर होना बताया गया है। ठीक उसी के अनुसार अर्थात 1894 ई. में यह निशान ज़ाहिर हो गया।
ये बुज़ुर्गान उम्मत मुहम्मदिया की वे महान भविष्यवाणियां हैं जोकि मौऊद ज़माना हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद साहिब मसीह मौऊद और महदी माहूद अलैहिस्सलाम की सच्चाई संसार के सामने हमेशा वर्णन करती रहेंगी। अल्लाह तआला इन पूर्व के बुज़ुर्गान की वर्णन की गई ख़बरों पर समस्त मुसलमानों के ईमान लाने की तोफ़ीक प्रदान करे और हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम की सदाक़त को संसार अत्यधिक संख्या में स्वीकार करे आमीन।
लेखक मुरब्बी सिल्सिला, विभाग तारीखे अहमदियत क़ादियान हैं|
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