क़ादियान में विद्युत रेल इंजन का आगमन विकास की एक नई प्रगति

क़ादियान में 25 मार्च को पहली बार बिजली का इंजन पहुंचा। बटाला से क़ादियान के मध्य बिजली लाइन के कार्य के पूर्ण होने के बाद इस रेल लाइन पर बिजली के इंजन का सफ़ल ट्रायल किया गया।

क़ादियान में विद्युत रेल इंजन का आगमन विकास की एक नई प्रगति

अव्वाब साद हयात
लेख का स्रोत

भारत के प्रसिद्ध उर्दू अख़बार “हिन्द समाचार” के चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले एडिशन के दिनांक 26 मार्च 2021 ई० के अंक के पृष्ठ 5 पर एक ख़बर पढ़ने को मिली जिसका शीर्षक था:

क़ादियान में पहुंचा पहला रेलवे विद्युत इंजन

 इस रोचक और ईमान वर्धक ख़बर का विवरण यों है:

“क़ादियान 25 मार्च………..क़ादियान में आज एतिहासिक दिन है जहाँ आज पहली बार बिजली का इंजन पहुंचा। बटाला से क़ादियान के मध्य कई महीनों से चल रहे बिजली लाइन के कार्य के पूर्ण होने के बाद आज इस रेल लाइन पर बिजली के इंजन का सफ़ल ट्रायल किया गया। 

यह ट्रायल रेलवे सुरक्षा कमिश्नर शैलेश कुमार पाठक सी.सी.आर.एस की देख-रेख में हुआ। इस अवसर पर बहुत संख्यां में रेलवे अधिकारी उपस्थित थे।

क़ादियान रेलवे स्टेशन मास्टर प्रवीन यादव ने बताया कि अमृतसर, बटाला, क़ादियान के मध्य बिजली करण किया जा रहा है। इसको दृष्टिगत रखते हुए क़ादियान में रेलवे के सीनियर अफ़सरों की टीम पहुंची और बिजली लाइन का ट्रायल किया है। 

आज एक पूरी ट्रेन ट्रायल के लिए अफ़सरों को लेकर क़ादियान पहुंची थी। लगभग अढ़ाई बजे यह ट्रेन बटाला के लिए रवाना हुई। आज का यह ट्रायल सफल रहा। आशा की जा रही है कि कोविड-19 से कुछ राहत के बाद अप्रैल महीने के पश्चात जब भी क़ादियान के लिए ट्रेन चलेगी तो डीज़ल के स्थान पर बिजली ट्रेन चला करेगी। इस ट्रायल को देखने के लिए अत्यधिक संख्या में शहरवासी भी पहुंचे हुए थे।”

इस संक्षिप्त ख़बर से ध्यान हज़रत अक़्दस मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के 14 अप्रैल 1905 ई० की एक रोया (तन्द्रावस्था) की ओर चला गया जिस में आप अलैहिस्सलाम को एक यह दृश्य भी दिखाया गया कि:

    “मैं क़ादियान के बाज़ार में हूँ और एक गाड़ी पर सवार हूँ जैसा कि रेलगाड़ी होती है…..”

(तज़किरह पृष्ठ 453, एडिशन 2004 ई०)

क़ादियान में रेलगाड़ी पहुँचने के बारे में हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम की भविष्यवाणी एक प्रसिद्ध भविष्यवाणी है। कई सहाबा ने इसे स्वयं हुज़ूर अलैहिस्सलाम की मुबारक ज़बान से सुना था यहाँ तक कि उन्हें हुज़ूर ने यह भी बता दिया था कि क़ादियान की रेलवे लाइन नवां पिंड और बसरावां से हो कर पहुंचेगी। अतः सहाबा के कथनों में ऐसी गवाहियाँ मौजूद हैं जैसा कि तज़किरह के पृष्ठ 667 पर रजिस्टर रिवायतों से उद्धृत कुछ रिवायतों का चयन निम्नलिखित है कि:

 (1) “संभवतः 1902 ई० की घटना है कि हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम सुबह सैर के लिए गए…….जब हम इस गाँव के मध्य पहुंचे जो नवां पिंड के नाम से प्रसिद्ध है……….ख़लीफ़ा रज्बुद्दीन साहिब ने (मुझे कहा)…….कि हज़रत साहिब ने इस स्थान पर जहाँ कि रेलवे लाइन गुज़रेगी, अपने सोंटे से निशान कर दिया है। अतः कई वर्ष पूर्व अल्लाह तआला ने अपने प्रिय मसीह मौऊद के शुभ मुख से निकली हुई बातों को पूरा किया।” (रजिस्टर रिवायात सहाबा जिल्द 4 पृष्ठ 177)

(2) “आप अलैहिस्सलाम फ़रमाते थे कि यहाँ रेल भी आएगी।”(रजिस्टर रिवायात सहाबा जिल्द 5 पृष्ट 81 रिवायत शाह मुहम्मद साहब रज़ि॰ निवासी क़ादियान रजिस्टर रिवायात सहाबा जिल्द 6 पृष्ठ 7 रिवायत नत्थू साहिब निवासी क़ादियान)

(3) (बटाला वाली सड़क के ख़राब और कष्टदायक होने की शिकायत पर) हज़रत साहिब अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि:

“घबराओ नहीं। कोई दिन वह होगा जब यहाँ गाड़ी आ जाएगी।” (रजिस्टर रिवायात सहाबा जिल्द 10 पृष्ठ 212 रिवायत सरदार बेगम साहिबा रज़ि॰ पत्नी चौधरी मुहम्मद हुसैन साहिब तलवंडी इनायत ख़ां)

इन भविष्यवाणियों की महानता और इनके असमान्य और प्रतिकूल परिस्थितियों में पूरा होने का अनुमान लगाने के लिए जांच-पड़ताल करें तो ज्ञात होता है कि हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम ने जिस समय ख़ुदा से आदेश प्राप्त कर मामुरियत का दावा किया था उस समय क़ादियान बहुत छोटा सा गुमनाम गाँव था। क़ादियान की आबादी दो हज़ार लोगों से अधिक न होगी। इसके अधिकतर घर वीरान दिखाई देते थे और आवश्यक प्रयोग की सामान्य-सामान्य वस्तुओं को ख़रीदने के लिए भी बाहर जाना पड़ता था। इसी प्रकार उस समय क़ादियान की बस्ती तार और रेल इत्यादि से भी वंचित थी मानो दुनिया से बिल्कुल कटी हुई अवस्था में पड़ी हुई थी। क़ादियान को पश्चिम में 12 मील दूर स्थित बटाला का रेलवे स्टेशन लगता था। इसके और क़ादियान के मध्य एक टूटी-फूटी कच्ची सड़क थी जिस पर न केवल पैदल चलने वाले थक कर चूर हो जाते थे अपितु यक्के में यात्रा करने वालों को भी बहुत कष्ट उठाना पड़ता था। इन मार्गों पर बरसात के दिनों में सैलाब की स्थिति, सवारी के साधनों की कमी, मार्गों की ख़राब अवस्था और विभिन्न कठिनाइयों का नक्शा और विवरण स्वयं सर्वज्ञानी ख़ुदा ने अपने इल्हाम में “फ़ज्जे अमीक़” कह कर कर दिया है। बटाला से क़ादियान तक सड़क का निर्माण तो कहाँ इस ख़राब हालत रास्ते की मुरम्मत के भी साधन न होते थे।

क़ादियान तक रेल गाड़ी पहुँचने की तारीख़ भी बहुत ही रोचक और ईमान वर्धक है और ज्ञात होता है कि जैसे एक विशेष प्रारब्ध के अंतर्गत समस्त पड़ाव पूर्ण होते गए और 19 दिसंबर 1928 ई० को पहली ट्रेन क़ादियान के रेलवे स्टेशन पर पहुंची, इस दिन क़ादियान से अधिकतर अहमदी लोग इस भविष्यवाणी के पूरा होने के चश्मदीद गवाह बनने अमृतसर स्टेशन पर पहुँच गए जहाँ हज़रत मुस्लेह मौऊद भी अपने ख़ुद्दाम के साथ पधारे हुए थे ताकि क़ादियान के लिए पहली गाड़ी चलने और इस के उद्घाटन के अवसर पर उस पवित्र ख़ुदा के समक्ष दुआ के हाथ उठाएं जिसने केवल अपनी कृपा और दया से वर्तमान युग के इस आविष्कार को जिस की ओर भूतपूर्व भविष्यवाणियों में खर-ए-दज्जाल कह कर संकेत किया गया था, उसको ख़ुदा ने मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के आराम और सुविधा के लिए वशीभूत कर के दारुल अमान तक पहुंचा दिया।

इस अवसर पर गाड़ी को निम्नलिखित पंक्तियों के बड़े-बड़े लाल रंग के बेज़र्स से सजाया गया था :-

اَلَاۤ اِنَّ رَوْحَ اللّٰہِ قَرِیْبٌ۔اَلَاۤ اِنَّ نَصۡرَ اللّٰہِ قَرِیۡبٌ۔ یَاْتُوْنَ مِنْ کُلِّ فَجٍّ عَمِیْقٍ۔ یَاْتِیْکَ مِنْ کُلِّ فَجٍّ عَمِیْق

وَ اِذَا الۡعِشَارُ عُطِّلَتۡ وَ اِذَا النُّفُوۡسُ زُوِّجَتۡ

यह मेरे रब से मेरे लिए एक गवाह है

यह मेरे दावे की सच्चाई पर ख़ुदा की मुहर है इत्यादि इत्यादि 

 अतः यह विशेष क़ाफ़ला अपने निर्धारित समय पर अमृतसर चला। और रास्ते में और लोग भी सम्मिलित होते चले गए। बटाला और वडाला ग्रंथियां से लोग जैसे-तैसे कर के सवार हुए जहाँ आस-पास के बहुत से अहमदी स्त्री और पुरुष एकत्र थे। अंततः गाड़ी ने अपने निर्धारित समय 3 बज कर 42 मिनट पर हरकत की और साथ ही अल्लाहो अक़बर का अत्यंत उच्च और ज़ोरदार नारा बुलंद हुआ जो गाड़ी के रेलवे यार्ड से निकलने तक निरंतर बुलंद होता रहा। गाड़ी देखने के लिए व्यक्तियों के गुज़रने के पुल पर भारी भीड़ थी। अल्लाहो अकबर और “ग़ुलाम अहमद की जय” के नारे रास्ते के प्रत्येक गाँव और स्टेशन पर बुलंद होते आए। यद्यपि गाड़ी अमृतसर से ही बिल्कुल भर चुकी थी और प्रत्येक डब्बे में बहुत से व्यक्ति बैठे थे। परन्तु बटाला स्टेशन पर तो ऐसी भीड़ हो गई थी कि बहुत लोग गाड़ी में बैठ न सके और बहुत से मुश्किल से पाएदानों पर खड़े हो सके। क़ादियान से पहले स्टेशन वडाला ग्रंथियां पर भी जहाँ आस-पास के बहुत से स्त्री तथा पुरुष एकत्र थे उनमें से कुछ ही लोग मुश्किल से बैठ सके। अंततः गाड़ी अपने समय पर शाम के 6 बजे क़ादियान के प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंची। यहाँ भी आस-पास के बहुत से दोस्तों की भीड़ थी। स्टेशन झंडियों और गमलों से अत्यंत सुशोभित था। वातावरण देर तक अल्लाहो अक़बर और “ग़ुलाम अहमद की जय” के उत्साहपूर्ण नारों से अत्यधिक गूंजता रहा। कुछ अजीब ही शान नज़र आ रही थी। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों में किसी के सोच-विचार में न था कि इस स्थान पर इतनी रौनक और ऐसी चहल-पहल हो सकती है लेकिन अल्लाह तआला ने थोड़ी ही अवधि में ऐसे साधन उत्पन्न कर दिए कि बिल्कुल नया नक्शा आँखों के सामने आ गया। फलहम्दोलिल्लाह अला ज़ालिक

गाड़ी की सवारियां 

हज़रत ख़लीफ़तुल मसीह द्वितीय और हुज़ूर के परिवार वालों के अतिरिक्त हज़रत साहिबज़ादा मिर्ज़ा बशीर अहमद साहब रज़ि॰, हज़रत साहिबज़ादा मिर्ज़ा शरीफ़ अहमद साहिब रज़ि॰ और हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम के ख़ानदान के कई बालक भी इस गाड़ी में आए थे। और हज़रत नवाब मुहम्मद अब्दुल्लाह खान साहिब रज़ि॰, हज़रत मौलाना मौलवी सय्यद मुहम्मद सरवर शाह साहिब रज़ि॰, हज़रत मौलाना मौलवी शेर अली साहब रज़ि, हज़रत इर्फ़ानी कबीर शेख़ याक़ूब अली साहिब रज़ि ऐडीटर अलहकम, हज़रत मौलवी मीर क़ासिम अली साहिब ऐडीटर “फ़ारूक़”, हज़रत मौलवी अबदुल मुग़नी ख़ान साहिब नाज़िर बैत-उल-माल, हज़रत मौलवी अबदुर्रहीम साहिब दर्द रज़ि और कई और स्थानीय प्रतिष्ठित लोगों को भी इस गाड़ी में हज़रत ख़लीफ़तुल मसीह द्वितीय रज़ि के साथ का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

फलों का वितरण

हज़रत ख़लीफ़तुल मसीह द्वितीय की सेवा में अमृतसर के स्टेशन पर कई सहाबा ने फलों की टोकरियाँ प्रस्तुत कीं जो हुज़ूर ने सारी की सारी रास्ते में बाँट दीं।

सामान्य बातें

इस प्रथम गाड़ी के गार्ड का नाम बाबू वली मुहम्मद साहिब और ड्राईवर का नाम बाबू उमरदीन साहिब था।  गाड़ी अमृतसर से बटाला तक 25 मील प्रति घंटा की रफ़्तार से और बटाला क़ादियान 15 मील प्रति घंटा की रफ़्तार से आई जिस में पांच बोगियां, तीन सिंगल गाड़ियाँ और दो ब्रेक वेन थीं। इंजन S-Class T और 709 नंबर का था। इस प्रथम गाड़ी को जो अमृतसर से क़ादियान जानी थी देखने और उसमें यात्रा करने के लिए अत्यधिक दूरी से जो टिकट खरीदे गए वह श्रीमान शेख़ अहमदुल्लाह साहिब हेड क्लर्क कंटोन्मेंट बोर्ड नौशेहरा और उन की बहन ज़ुबेदा ख़ातून साहिबा के नौशेहरा छावनी से क़ादियान तक के थे। यह गाड़ी रात को साढ़े 6 बजे अमृतसर चली गई जिस में बटाला, अमृतसर और लाहौर के बहुत से सहाबा वापिस हो गए।

इस अवसर पर अहमदियत के शत्रु मौलवी सनाउल्लाह अमृतसरी ने एक विरोधी विज्ञापन प्रकाशित कर के अमृतसर के स्टेशन पर बंटवाया था। और इसी अवसर पर हज़रत डॉक्टर हश्मतुल्लाह साहिब ने भी एक चार पृष्ठ का अत्यंत सुन्दर ट्रेक्ट तैयार कर के अमृतसर स्टेशन पर बंटवाया था। जबकि एक अन्य अहमदी भाई ने पंजाबी भाषा में काव्य रूप में ट्रेक्ट तैयार कर के बंटवाया था।

परन्तु स्मरण रहे कि प्रदर्शित रूप से इन परोक्ष की ख़बरों के पूरा होने के कोई चिन्ह दिखाई नहीं देते थे अपितु हुकूमत के ध्यान न देने की तो यह अवस्था थी कि रेलवे लाइन बिछवाने की तो क्या बात केवल इतनी सी बात की अनुमति के लिए कि क़ादियान से बटाला तक सड़क पक्की कर दी जाए और इसके लिए सालों तक प्रयास भी निरंतर रूप से किए गए थे उस समय के सरकारी अधिकारीयों ने व्यावहारिक रूप से इनकार कर दिया था जबकि दूसरी सड़कें और रास्ते आए दिन ठीक होती रहती थीं लेकिन यदि अंत तक भी बारी न आई तो इस छोटे से टुकड़े की जो बटाला और क़ादियान के मध्य था। तब वास्तविक परिस्थिति ऐसी थी कि कदापि आशा न थी क़ादियान तक रेलवे लाइन इतनी तेज़ी से बिछ जाएगी और ट्रेन पहुंच जाएगी। लेकिन ख़ुदा ने ऐसा परिवर्तन किया कि जमाअती प्रयास के बिना अचानक सामने आया कि रेलवे बोर्ड के पास से दरया-ए-ब्यास के मध्य रेलवे लाइन प्रस्तावित की गई है। परंतु फिर पता चला के रेल विभाग के संबंधित ज़िम्मेदार अफ़सरों के निकट यह रेलवे योजना संभवतः 1930ई० तक भी पूर्ण नहीं हो सकती। परंतु क्योंकि ख़ुदा के इरादे में अब समय आ चुका था कि अहमदियत का केंद्र क़ादियान रेल के माध्यम से संपूर्ण देश से मिला दिया जाए इसलिए रेलवे बोर्ड ने 1927ई० के अंत में क़ादियान-बूटारी रेलवे की अनुमति दे दी और 1928ई० के आरंभ में सूचना विभाग पंजाब सरकार की ओर से सरकारी तौर पर यह घोषणा कर दी गई कि रेलवे बोर्ड ने नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे के प्रबंधाधीन 5 फुट 6 इंच पटरी की बटाला से बूटारी तक 42 मील लंबी रेलवे लाइन बनाने की अनुमति दे दी है।

इस योजना का नाम बटाला-बूटारी रेलवे होगा साथ ही सरकारी गज़ट में घोषणा हुई के सर्वे हो चुका है और लाइन बिछाने का काम शीघ्र आरंभ होने वाला है।

अतः व्यवहारिक रूप से यह कार्य अत्यंत तीव्रता से आरंभ हो गया और दिन-रात के ज़बरदस्त प्रयासों के बाद अंततः 14 नवंबर 1928 ई० को रेल की पटरी क़ादियान की सीमा में पहुंच गई। इस दिन स्कूलों और दफ़्तरों में छुट्टी कर दी गई और लोग गिरोहों के रूप में रेलवे लाइन देखने के लिए जाते रहे।

 हज़रत ख़लीफ़तुल मसीह द्वितीय ने आदेश दिया कि नए रास्ते खुलने पर कई प्रकार की अधर्मता का भी भय होता है इसलिए समस्त जमाअत और सिलसिले के केंद्र के लिए रेल के लाभान्वित और शुभ होने के लिए दुआएं करनी चाहिए और सदक़ा देना चाहिए। अतः क़ादियान की समस्त मस्जिदों में दुआएं की गईं और ग़रीबों और मिस्कीनों में सदक़ा दिया गया। 16 नवंबर 1928ई० को रेलवे लाइन क़ादियान के स्टेशन तक ठीक उस समय पहुंची जबकि जुमा की नमाज़ हो रही थी। नमाज़ के बाद स्त्रियां, पुरुष और बच्चे स्टेशन पर एकत्र होने आरंभ हो गए और लगभग दो अढ़ाई हज़ार की संख्या हो गई। रेलवे के मज़दूरों और कर्मचारियों के कार्य समाप्त करने पर उनमें मिठाई बांटी गई जिसका प्रबंध मरकज़ी चंदे से किया गया था।

अब केवल स्टेशन के निर्माण और रेलवे लाइन की पूर्णता का कार्य शेष था। (अलफ़ज़ल 30 नवंबर 1928ई०) जो दिन-रात एक कर के पूर्ण कर दिया गया। क़ादियान के सबसे पहले स्टेशन मास्टर बाबू फ़कीर अली साहिब निर्धारित हुए। (अलफ़ज़ल 11 दिसंबर 1928ई०) और स्टेशन का नाम “क़ादियान मुग़लां” प्रस्तावित किया गया। पहले बताया जा चुका है कि लाइन के बूटारी तक जाने का निर्णय हुआ था परंतु अभी लाइन क़ादियान की सीमा तक नहीं पहुंची थी कि रेलवे अधिकारियों ने क़ादियान से आगे लाइन बिछाने का फैसला स्थगित कर दिया। और न केवल अगले भाग का निर्माण रुक गया (अलफ़ज़ल 2 नवंबर 1928ई०) अपितु आगे बिछी हुई रेलवे लाइन उखाड़ भी दी गई। और जो ज़मीनें इसके लिए विभिन्न मालिकों से ख़रीदी गई थी अंत में नीलामी के माध्यम से बेच दी गई।

इन परिस्थितियों से स्पष्ट है कि यह लाइन केवल शुद्ध ख़ुदाई परिवर्तन के अंतर्गत केवल क़ादियान के लिए तैयार हुई। मुंशी मुहम्मद दीन साहिब पूर्व मुख़तार-ए-आम (पिता शेख़ मुबारक अहमद साहिब मुरब्बी-ए-सिलसिला) का बयान है कि जब रेलवे लाइन बिछ गई तो संबंधित यूरोपियन रेलवे अफ़सर के निमंत्रण पर एक दावत हज़रत नवाब मुहम्मद अली ख़ान साहिब की कोठी में की गई। सर्वे का स्टाफ़ भी सम्मिलित था और जमाअत के कई प्रतिष्ठित लोग भी सम्मिलित थे। इस अवसर पर यूरोपियन अफ़सर ने यह बात प्रकट की कि मेरे अंदर कोई ऐसी शक्ति उत्पन्न हो गई थी जो मुझे चैन नहीं लेने देती थी और यही तहरीक हुई थी कि शीघ्र लाइन पूर्ण हो।

 तारीख़-ए-अहमदियत (अहमदियत का इतिहास) की जिल्द पंचम में द्वितीय ख़िलाफ़त की 15 साल की घटनाओं के इंदराज में क़ादियान दारुल अमान तक ट्रेन पहुंचने के दौरान ख़ुदा के विशेष व्यवहार और विभिन्न इमान वर्धक घटनाओं का रिकॉर्ड दर्ज किया गया है।

    स्मरण रहे कि हज़रत अक़्दस मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम ने अपनी पुस्तक “तोहफा गोलड़विया” में इस्लाम की विजय और इसके पूर्ण प्रकाशन के मिशन के मार्ग में प्राप्त होने वाले साधनों का वर्णन किया है और बताया कि प्रकाशन की पूर्णता के लिए समस्त क़ौमों के पारस्परिक संबंधों में ऐसी सवारियां प्राप्त हो गई हैं कि जिन से बढ़कर सुविधा सवारी की संभव नहीं। और फ़रमाया कि :-

“इस समय वर्णन योग्य आयत

(अलजुमअ : 4) وَ اٰخَرِیۡنَ مِنۡہُمۡ لَمَّا یَلۡحَقُوۡا بِہِمۡ

और इसी प्रकार आयत :

(अल आराफ़ : 159) قُلۡ یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ اِنِّیۡ رَسُوۡلُ اللّٰہِ اِلَیۡکُمۡ جَمِیۡعًا

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के दूसरे अवतरण की आवश्यकता हुई और इन समस्त सेवकों ने जो रेल और तार और अग्नबूट और छापे खाने और डाक का उत्तम प्रबंध और पारस्परिक भाषाओं का ज्ञान और विशेष रूप से हिंदुस्तान में उर्दू ने, जो हिंदुओं और मुसलमानों में एक समान भाषा हो गई थी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की सेवा में निवेदन किया कि या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम हम समस्त सेवक उपस्थित हैं और प्रकाशन का कर्तव्य पूर्ण करने के लिए दिलों जान से तत्पर हैं आप पधारिए और इस अपने कर्तव्य को पूरा कीजिए क्योंकि आप का दावा है कि मैं समस्त लोगों के लिए आया हूं और अब यह वह समय है कि आप उन समस्त क़ौमों को जो ज़मीन पर रहती हैं क़ुरआन का प्रचार कर सकते हैं और प्रकाशन को पूर्णता तक पहुंचा सकते हैं और समझाने के अंतिम प्रयास को पूर्ण करने के लिए समस्त लोगों में क़ुरआन की सच्चाई के प्रमाण फैला सकते हैं। तब आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की आध्यात्मिकता ने उत्तर दिया कि देखो मैं समरूप के रूप में आता हूं परंतु मैं हिन्द में आऊंगा क्योंकि धर्मों का जोश और समस्त क़ौमों का मजमा और समस्त धर्मों तथा संप्रदायों का इकठ और शांति और आज़ादी इसी स्थान पर है………..”

(तोहफा गोलड़विया रूहानी ख़ज़ाइन 17 पृष्ठ 262 से 263)

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