हज़रत आयशा के साथ पैगंबर मुहम्मद के विवाह के बारे में अपमानजनक टिप्पणी निंदनीय है

इतिहास के अनुसार, हज़रत आयशा (र ज़) अपने निकाह के समय नौ वर्ष की थीं और विवाह के समय बारह से चौदह वर्ष की थीं।

हज़रत आयशा के साथ पैगंबर मुहम्मद के विवाह के बारे में अपमानजनक टिप्पणी निंदनीय है

इतिहास के अनुसार, हज़रत आयशा (र ज़) अपने निकाह के समय नौ वर्ष की थीं और विवाह के समय बारह से चौदह वर्ष की थीं।

जून 4, 2022

इस्लाम के संस्थापक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा अ व के पवित्र व्यक्तित्व के बारे में अपमानजनक और मुस्लमानों की भावनाओं को कष्ट पहुंचाने वाले बयानात की जमाअत अहमदिया कड़ी निंदा करती है।

मुस्लमानों की प्रतिक्रिया हमेशा ऐसी होती है और होनी चाहिए जिससे आँहज़रत अ व की शिक्षा और जीवनी निखर कर सामने आए।

इस्लाम के संस्थापक हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद मुस्तफ़ा के बारे में अपमानजनक बयानात मुस्लमानों की भावनाओं को कष्ट पहुंचाने वाले हैं। किसी भी धार्मिक मार्गदर्शक के बारे में इस प्रकार के बयानात देश की शांति को भंग करने वाले होते हैं। इस्लाम के संस्थापक हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद मुस्तफ़ा ने प्रत्येक धर्म के सम्मानित व्यक्तियों का मान सम्मान करने और दूसरों की धार्मिक भावनाओं को भी सम्मान की दृष्टि से देखने की महान शिक्षा दी है। हिंदुस्तान जैसे देश में जहां भिन्न-भिन्न धर्मों से सम्बन्ध रखने वाले एक ही समाज में रहते हैं यहां देश में शांति स्थापित करने के लिए एक दूसरे के धार्मिक मार्गदर्शकों, इबादत-गाहों यहां तक के एक दूसरे की धार्मिक भावनाओ का भी मान-सम्मान करने की ज़रूरत है।

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा की शान में धृष्टता-पूर्वक बयानात की वजह से निश्चित रूप में हमारे ह्रदय घायल हैं। लेकिन जमाअत अहमदिया की प्रतिक्रिया यह है कि हम ख़ुदा तआला के समक्ष इस पवित्र नबी के लिए हज़ारों रहमतें और सलामती की दुआ करते हैं और आप की पवित्र जीवनी से लोगों को अवगत कराने की कोशिश करते हैं और लोगों के आरोपों का निवारण करने की कोशिश करते हैं।

हज़रत नबी अकरम की हज़रत आयशार ज़ से निकाह के वक़्त हज़रत आयशार ज़ की आयु, इतिहास और अहादीस की पुस्तकों की रोशनी में 9 वर्ष थी। जब आप की शादी हुई उस वक़्त हज़रत आयशार ज़ की आयु इतिहास और अहादीस की पुस्तकों के अनुसार 12-14 वर्ष थी। जिस युग की इस वक़्त बात हो रही है वह आज से 1400 वर्ष से भी ज़्यादा पुराना ज़माना है जिसमें लड़कियों की छोटी आयु में शादी कराने और मर्द और औरत की आयु के मध्य काफ़ी अंतर के साथ भी शादी करने का रिवाज था।

किसी एक घटना की बुनियाद पर शादी के हवाला से हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद मुस्तफ़ा के आचरण के बारे में ग़लत बातें संबद्ध करना सख़्त नाइंसाफ़ी है बल्कि आँहज़रत की पवित्र जीवनी का अध्यन करने से मालूम होगा कि आप के अख़लाक़ अत्यधिक उच्च श्रेणी के थे और महिलाओं के अधिकारों की अदायगी के हवाले से आपने उस ज़माने में अज़ीमुश्शान शिक्षा दी हैं जो आज के विकसित युग में भी महिलाओं को संसार के कुछ हिस्सा में प्राप्त नहीं है।

जब आँहज़रत ने ख़ुदा के संदेश को लोगों में फैलाने की कोशिश शुरू की तो मक्का के लोगों ने आप को इस काम से रोकने के लिए तरह-तरह के सांसारिक लोभ दिए। इस में से एक लालच उन्होंने यह दी कि यदि आप कहें तो आपकी शादी मक्का की सबसे सुंदर लड़की से करवा दी जाएगी। लेकिन आप ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि ख़ुदा की तौहीद  (एकेश्वरवाद) का क़ियाम ही मेरे आने का उद्देश्य है। इससे मैं कदापि रुक नहीं सकता।

जब आप की आयु 25 वर्ष की थी तो आप की शादी हज़रत ख़दीजार ज़ से हुई जिनकी आयु उस वक़्त 40 वर्ष थी और आप ने उनके साथ 25 वर्ष का शादीशुदा जीवन खु़शी के साथ गुज़ारा। इसके अतिरिक्त आप की अक्सर पत्नियाँ या तो विधवा थीं या फिर वृद्ध थीं।

इन घटनाओं और तथ्यों से मालूम होता कि आप की शादियों के उद्देश्य भी उच्च थे। जिनके माध्यम से क़ौमों की तर्बीयत हो रही थी, समाज के निचले वर्ग वालों को सहारा मिल रहा था।

आँहज़रत की ज़िंदगी अत्यधिक पवित्र और उच्च श्रेणी की थी। इस महान इन्सान की जीवनी का एक पल भी ऐसा नहीं कि इस पर किसी को आरोप लगाने का अवसर मिल सके।

अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हिंदुस्तान में बसने वाले सभी धर्मों के लोगों को एक दूसरे के धर्म गुरूओं का मान-सम्मान करने वाला बनाए ताकि हमारा यह देश शांति का केंद्र बन जाए। आमीन

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