क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त करने वाला अल्लाह तआला है

इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआन-ए-मजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआन-ए-मजीद की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया।

क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त करने वाला अल्लाह तआला है

इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआन-ए-मजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआन-ए-मजीद की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया।
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इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआनमजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआनमजीद की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया।

मुहम्मद हमीद कौसर

04 सितंबर 2022

क़ुरआन-ए-मजीद की 26 आयतों पर आरोपों के उत्तर
(क़िस्त – 1)

अलहम्दो लिल्लाह तिथि 12 अप्रैल 2021ई. को सुप्रीमकोर्ट ने ऊपर वर्णित निवेदन ख़ारिज कर दिया और उस पर अपनी नाराज़गी का प्रकटन किया। अलहमदो लिल्लाह 26  आयतों के सिलसिला में निवेदन तो ख़ारिज हो गया परन्तु निवेदन देने वाला और उसके साथियों ने वर्णित आयते और बुख़ारी
की कुछ अहादीस के हवाले से क़ुरआन-ए-मजीद के बारे में संदेह और आपत्ति अख़बार, रेडीयो, टेलीविज़न के माध्यम से पैदा करने की कोशिश की है जिससे कुछ ग़ैर मुस्लिमों के ज़हनों में प्रश्न पैदा हुए हैं, उसके उत्तर नीचे दिए जा रहे हैं।

इस धरती पर बसने वाले करोड़ों मुस्लमानों का यह ईमान और विश्वास क़ियामत तक रहेगा कि क़ुरआन-ए-मजीद अल्लाह का कलाम है और नुज़ूल के दिन से ही अल्लाह तआला ने उसको अपने संरक्षण में रखा हुआ है और क़ियामत तक रखेगा। और यह भी एक हक़ीक़त है कि पिछली चौदह सदियों में शैतानी और पिशाचवृत्त ताक़तों ने इस कलाम इलाही में सैंकड़ों स्थान आपति और संदेह पैदा करने की कोशिशें कीं और यह सिलसिला अब तक जारी है। वर्तमान में ही लखनऊ के वसीम रिज़वी नामी एक व्यक्ति ने सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया में एक अर्ज़ी दाख़िल की और 26 क़ुरआन-ए-मजीद  की आयतों को हज़फ़ करने का मुतालिबा किया। निवेदन पत्र देने वाले के अनुसार इन आयते में दहश्तगर्दी और इंतिहापसंदी की शिक्षा दी गई है जिस से वर्तमान समय में कुछ गिरोह नौजवानों को दहश्तगर्दी के लिए वरग़लाते हैं और उस के कथन के अनुसार ये आयते मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के पवित्र जीवन में क़ुरआन-ए-मजीद का हिस्सा नहीं थीं बल्कि ख़ुलफ़ा-ए राशेदीन में से पहले तीन खल़िफ़ा-ए-ने उनको क़ुरआन-ए-मजीद में शामिल किया।

अलहम्दो लिल्लाह तिथि 12 अप्रैल 2021ई. को सुप्रीमकोर्ट ने ऊपर वर्णित निवेदन ख़ारिज कर दिया और उस पर अपनी नाराज़गी का प्रकटन करते हुए पच्चास हज़ार रुपय (50,000) जुर्माना डाल दिया। इसलिए इस विषय में रोज़नामा हिंद समाचार में तिथि 13 अप्रैल 2021को निमन्लिखित ख़बर प्रकाशित हुई :

नई दिल्ली 12 अप्रैल (यू एन आई) : सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को क़ुरआन-ए-मजीद की 26 आयते को हटाने का निवेदन ख़ारिज कर दिया। जस्टिस रोहिंगटन फ़ाली नरेमन के प्रबंध वाली बैंच ने उतर प्रदेश शीया वक़्फ़ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी की दरख़ास्त ख़ारिज कर दी और उन पर 50,000 रुपय का जुर्माना लगाया। जस्टिस नरीमन ने कहा “यह मुकम्मल तौर पर ग़ैर संजीदा रिट पटीशन है’। केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन ने पूछा कि क्या निवेदन देने वाला इस दरख़ास्त के बारे में संजीदा है?’’ उन्होंने कहा “क्या आप दरख़ास्त की समाअत पुर इसरार कर रहे हैं? क्या आप वाक़ई संजीदा हैं?”

क़ुरआन-ए-मजीद के ख़िलाफ़ फ़ुज़ूल और तुच्छ बातें करने वाले वसीम रिज़वी की तरफ़ से पेश सीनीयर ऐडवोकेट आर. के रायज़ादा ने उत्तर दिया कि वह मद्रस्सा तालीम के कवायद के लिए अपना निवेदन सीमित कर रहे हैं। इसके बाद उसने अपने साथी का मत प्रस्तुत किया, जिस से बैंच संतुष्ट नज़र नहीं आया और उसने 50 हज़ार रुपय जुर्माना करते हुए दरख़ास्त ख़ारिज कर दी।

ख़्याल रहे रिज़वी की अर्ज़ी में कहा गया था कि इन आयते में इन्सानियत के बुनियादी उसूलों को नज़रअंदाज किया गया है और ये मज़हब के नाम पर नफ़रत, क़तल, ख़ूनख़राबा फैलाने वाला है, इसके साथ ही ये आयते दहश्तगर्दी को बढ़ावा देने वाली है। रिज़वी का यह भी कहना था कि ये क़ुरआन-ए-मजीद की आयते मद्रस्सों में बच्चों को पढ़ाई जा रही हैं, जो उनकी बुनियाद डालने का कारण हैं दरख़ास्त में कहा गया है कि क़ुरआन-ए-मजीद की इन 26 आयते में ज़ुल्म की शिक्षा दी गई है, ऐसी तर्बीयत जो दहश्तगर्दी को बढ़ावा देती है उसे रोका जाना चाहिए। (हिंद समाचार, जालंधर, तिथि 13 अप्रैल 2021पृष्ठ 2,1)

अलहमदो लिल्लाह 26 आयते याद करवाने के सिलसिला में निवेदन तो ख़ारिज हो गया परन्तु निवेदन देने वाला और उसके साथियों ने वर्णित आयते और बुख़ारी की कुछ अहादीस के हवाले से क़ुरआन-ए-मजीद के बारे में संदेह और आपत्ति अख़बार, रेडीयो, टेलीविज़न के माध्यम से पैदा करने की कोशिश की है जिससे कुछ ग़ैर मुस्लिमों के ज़हनों में यह प्रश्न पैदा हुआ कि :

(1) जब एक मुस्लमान ने क़ुरआन-ए-मजीद के बारे में तहरीफ़ और तबदील करने का आरोप लगाया है तो इस में सच्चाई किया है?

(2) दूसरी तरफ़ मुस्लमानों की नई नसल मुस्लमान होने के बावजूद अर्ज़ी देने वाला के तहरीर करदा आरोपों का उत्तर चाहती है। ताकि वे इस उत्तर की रोशनी में ख़ुद को और ग़ैरमुस्लिम दोस्तों को क़ुरआन-ए-मजीद की सदाक़त का क़ायल कर सके।

वर्णित वजूहात की बिना पर वसीम रिज़वी के तहरीर करदा आरोपों के उत्तर तहरीर कर दिए गए हैं। इस दुआ के साथ कि अल्लाह तआला इन उत्तरों को मुस्लमानों और दूसरे मज़ाहिब के अच्छी परिवर्ती वाले दोस्तों के दिलों में पैदा शूदा संदेहों के निवारण का बायस बना दे। आमीन। तथा ख़ुदा क़ुरआन-ए-मजीद के बारे में उनके ईमान को ओर मज़बूती प्रदान करे। आमीन।

आरोप नंबर 1

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम जो कि 632 ई. में फ़ौत हुए अल्लाह तआला ने उन्हें इन्सानियत के लिए एक संदेश दिया था और यह क़ुरआन-ए-मजीद उनकी ज़िंदगी में नहीं बना था बल्कि आपके बाद बनाया गया।

उत्तर :  हर सच्चा और हक़ीक़ी मुस्लमान यह विश्वास और ईमान रखता है कि ख़ुदा तआला ने मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम पर तक़रीबन 23 वर्ष के अरसा में क़ुरआन-ए-मजीद नाज़िल फ़रमाया और इसी नाज़िल करने वाले ख़ुदा ने इसी क़ुरआन-ए-मजीद में यह ऐलान और वादा सदैव के लिए फ़र्मा दिया कि :

(1) اِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَاِنَّا لَہٗ لَحٰفِظُوْنَ (सूरः अल् हिज्र, आयत नंबर 10) अनुवाद : नि संदेह हमने ही यह वर्णन उतारा है और नि संदेह हम ही इस की हिफ़ाज़त करने वाले हैं। इस आयत-ए-करीमा में अल्लाह तआला ने वादा फ़र्मा दिया कि मैंने ही क़ुरआन-ए-मजीद को उतारा है और मैं ही इस का हिफ़ाज़त करने वाला और संरक्षक रहूँगा। और ज़मीन पर रहने वाले किसी इन्सान की मजाल नहीं कि वह इस में कमी बेशी कर दे। इस वादे से यह मालूम होता है कि यदि किसी ने यह जुर्रत और साहस किया कि क़ुरआन-ए-मजीद में कोई रद्द-ओ-बदल कमी या बढ़ोतरी करे उसे सर्व शक्तिमान ख़ुदा कदापि ऐसा नहीं करने देगा पिछली 14 सदियां इस पर गवाह और शाहिद हैं।

क़ुरआन-ए-मजीद के नुज़ूल और जमा करने की तारीख़

एक अनुमान के अनुसार क़ुरआन-ए-मजीद का नुज़ूल 24 नातिक़ (रमज़ान) के अनुसार 20 अगस्त 610 ई.को शुरू हुआ और हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की वफ़ात तिथि  यक्म रबीउल प्रथम11 हिज्री के अनुसार 26 मई 632 ई. तक अलग औक़ात में नाज़िल होता रहा। इस हिसाब से आपकी नबुव्वत के दिनों की संख्यां तक़रीबन सात हज़ार नौ सौ सत्तर (7970 ) बनती है और क़ुरआन-ए-करीम के शब्द की मजमूई संख्यां (77924) बनती है। इस हिसाब से प्रतिदिन नुज़ूल की औसत कम-ओ-बेश नो (9) शब्द बनते हैं। तारीख़ से इलम होता है कि कभी कबार क़ुरआन-ए-मजीद की आयते अत्याधिकत नाज़िल होती थीं और कभी कबार कम। और आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का तरीक़ मुबारक था कि जितनी आयते नाज़िल होतीं हैं सहाबा किराम को साथ साथ भाषाी याद करवा देते। नुज़ूल क़ुरआन-ए-मजीद की आरंभ से ही हज़रत जिब्राईल सय्यदना मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के पास से उस समय तक नहीं जाते जब तक आपके हाफ़िज़े में नाज़िल शूदा आयते महफ़ूज़ और याद न हो जातीं और जिब्राईल के जाने के बाद आप सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम अपने सहाबा के पास आते तो उन को नाज़िल शुदा आयते साथ-साथ याद करवाते जाते और इस तरह क़ुरआन-ए-मजीद सहाबा के हाफ़िज़ा में रोज़ प्रथम से ही महफ़ूज़ होता चला जा रहा था। सहाबा के सीने और हाफ़िज़े में जो क़ुरआन-ए-मजीद जमा और महफ़ूज़ होता रहा वह ताबेईन और तबा ताबेईन ने अपने हाफ़िज़ा और सीने में महफ़ूज़ किया और वही क़ुरआन-ए-मजीद नसल दर नसल सीने से सीने आज तक मुस्लमानों के हाफ़िज़ा में महफ़ूज़ है और एक के बाद दूसरी नसल में स्थानांतरित होता चला जा रहा है। तारीख़-ए-इस्लाम में वर्णन है सय्यदना मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने अपनी हयाते मुबारका में जो आख़िरी हज फ़रमाया इस में तक़रीबन एक लाख चौबीस हज़ार (124000) सहाबा थे और यह एक स्वभाविक और क़ुदरती बात है कि इन में से एक बड़ी संख्यां ऐसे हुफ़्फ़ाज़ की थी जिनके हाफ़िज़ा और सीने में क़ुरआन-ए-मजीद महफ़ूज़ था। फिर रमज़ानुल मुबारक में तरावीह का सिलसिला शुरू हुआ और रमज़ान में सारी दुनिया की बड़ी-बड़ी मसाजिद में मुकम्मल क़ुरआन-ए-मजीद के हाफिज़(इमाम) नमाज़ियों को बुलंद आवाज़ से क़ुरआन-ए-मजीद सुनाते हैं और एक हाफ़िज़ इमाम के पीछे खड़ा रहता है ताकि यदि इमाम किसी जगह भूल जाये तो वह उसको याद कराए। तरावीह का यह तसलसुल इंडोनेशिया से लेकर चीन और अफ़्रीक़ा, यूरोप और अमरीका उपमहाद्वीप, हिंद और पाक और अरब में जारी और सारी है और सीने से सीने में महफ़ूज़ क़ुरआन-ए-मजीद के पढ़ने में कहीं भी कोई अंतर नहीं और यह अल्लाह तआला के उस वादे की सबसे बड़ी तसदीक़ और सच्चाई है कि पिछली चौदह सदीयों में क़ुरआन-ए-मजीद सीने से सीने में नसल बंसल बड़े महफ़ूज़ तरीक़ से स्थानांतरित होता चला आरहा है और उसकी कोई मिसाल दुनिया की किसी किताब में नहीं मिलेगी और हिफ़ाज़त के इस निज़ाम को नज़र अंदाज करके कोई आरोप लगाना प्रले दर्जे की जहालत का सबूत होगा।

क़ुरआन-ए-मजीद की हिफ़ाज़त का तरीक़ा :

आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का यह तरीक़ था कि जो आयते क़ुरआन-ए-मजीद शरीफ़ की नाज़िल होती जाती थीं उन्हें साथ-साथ लिखवाते जाते और ख़ुदाई तफ़हीम के अनुसार उनकी तर्तीब भी ख़ुद निर्धारित फ़रमाते जाते थे। इस बारे में बहुत सी हदीसें मिलती हैं जिनमें से दर्ज निमंलिखित हदीस बतौर मिसाल के पेश की जा है :

عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ قَالَ قَالَ عُثْمَانُ بْنُ عَفَّان رضی اللہ عنھما کان رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اذا نَزَلَ علیہ شیئیٌ دَعَا بَعْضَ مَن کَانَ یَکْتُبُ فیقول ضَعوا ھٰٓؤُلآءِ الاٰیات فی سو رۃ الَّتی یَذْ کُرُ فیھا کَذَاوَکَذَا فَاِذَا نَزَلَتْ عَلَیْہ الاٰیۃُ فَیَقُولُ ضَعُوا ھذہٖ الاٰیۃ فی السُورۃ الّتی یذکر فیھا کذاوَکذا

(तिरमिज़ी अबू दाउद, मसनद अहमद बा-हवाला मिश्कात बाब फ़ज़ायल क़ुरआन-ए-मजीद)

अर्थात हज़रत इब्ने अब्बास जो आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के चचाज़ाद भाई थे रिवायत करते हैं कि हज़रत उस्मान ख़लीफ़ा सालिस (जो आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के ज़माना में वह्यी के लिखने वाले रह चुके थे) फ़रमाया करते थे कि आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम पर जब कुछ आयते इकट्ठी नाज़िल होती थीं आप सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम अपने वह्यी के लिखने वाले में से किसी को बुला कर इरशाद फ़रमाते थे कि इन आयते को अमुक सूरः में अमुक जगह लिखों और यदि एक ही आयत उतरती थी तो फिर इसी तरह किसी  वह्यी के लिखने वाले को बुला कर और जगह बता कर उसे तहरीर करवा देते थे।

जिन सहाबा से वह्यी के लिखवाने का काम लिया जाता था उनके नाम और हालात तफ़सील-ओ-ताय्युन के साथ तारीख़ में महफ़ूज़ हैं। इन में से अत्याधिकत प्रसिद्ध सहाबा ये थे। हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत ज़ुबैर बिन अल् अवाम रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत शर्जील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाह अवाम रज़ियल्लाहु अन्हो, हज़रत अबी बिन क़ाब रज़ियल्लाहु अन्हो और हज़रत जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हो।

 (फ़तह अल-बारी, भाग 9 पृष्ठ 19 व ज़रक़ानी, भाग 4 पृष्ठ 311से 326)

इस फ़हरिस्त से ज़ाहिर है कि आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम को इस्लाम के आरंभ में से ही एक विश्वसनीय जमाअत क़ुरआन-ए-मजीद की वह्यी के कलमबंद करने के लिए मौजूद थी और इस तरह क़ुरआन-ए-मजीद शरीफ़ न केवल साथ-साथ तहरीर में आता गया था बल्कि साथ ही साथ उस की मौजूदा तर्तीब भी जो कुछ उद्देश्य के अधीन नुज़ूल की तर्तीब से अलग रखी गई है क़ायम होती गई आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की वफ़ात के बाद जबकि नुज़ूल क़ुरआन-ए-मजीद पूर्ण हो चुका था हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु  ख़लीफ़ा प्रथम ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के मश्वरा से हज़रत जै़द बिन साबित अंसारी को आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की वह्यी को लिखने वाले रह चुके थे हुक्म फ़रमाया कि वह क़ुरआन-ए-मजीद शरीफ़ को एक बाक़ायदा पुस्तक की सूरः में इकट्ठा करवा कर सुरक्षित कर दें। इसलिए जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु  ने बड़ी मेहनत के साथ हर आयत के सम्बन्ध में भाषाी और तहरीरी हर दो किस्म की पुख़्ता गवाह प्रदान करके उसे एक बाक़ायदा पुस्तक की सूरः में इकट्ठा कर दिया। (बुख़ारी किताब फ़ज़ायल अल्क़ुरआन बाब किताब नबी सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम) इसके बाद जब इस्लाम अलग देशों में फैल गया तो फिर हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ख़लीफ़ा सालिस के हुक्म से जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु के एकत्र करदा नुस्खे के अनुसार क़ुरआन-ए-मजीद शरीफ़ की असंख्य मुस्तनद कापियां लिखवा कर समस्त इस्लामी देशों में भिजवा दी गईं।

(बहवाला बुख़ारी किताबुल फ़ज़ायल अल्-क़ुरआन बाब जमा अल्-क़ुरआन, फ़तह भाग 9 पृष्ठ 18-17)

हिफ़ाज़त के इस दूसरे तरीक़ के बाद एतिराज़ करने वाले के आरोप का खोखलापन और बे-बुनियाद होना स्पष्ट और साबित है और यह कहना कि क़ुरआन-ए-मजीद की किताब बाद में बनाई गई इंतिहाई हैरत-अंगेज़ है और कम इलमी का सबूत है। एतिराज़ करने वाले को इलम होना चाहिए कि शब्द किताब  (کَتَبَ،یَکْتُبُ،کِتاَبا)  से लिया गया है अल्लाह तआला ने सूरः अल् बकरा की इब्तिदा में ही हर क़ुरआन-ए-मजीद पढ़ने वाले को यह नवीद सुना दी “ذالک الکتاب‘” कि यह वह किताब है। एतिराज़ करने वाले को चाहिए शब्द किताब पर ग़ौर करे यदि यह किताब तहरीर शूदा सय्यदना मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के समय-ए- मुबारक में मौजूद नहीं थी तो उस समय मुनाफ़क़ीन और मुख़ालिफ़ीन इस्लाम जो मदीना में ही मौजूद थे यह प्रश्न उठा ताकि जिस कलाम इलाही को किताब कहा जा रहा है वह है कहाँ? वह किताबी की शक्ल में हमें नज़र नहीं आती। इन के सुकूत से स्पष्ट है कि इस समय के प्रचलित तरीक़ के अनुसार क़ुरआन-ए-मजीद तहरीरी शक्ल में मौजूद था। और इस पर ज़्यादा यह है कि अल्लाह ने ऐलान फ़रमाया لَارَ یْبَ فِیْہ  यह जो किताब है इस में शक की न कोई गुंजाइश है और न कोई ख़दशा और न कोई सम्भावना। हे क़ुरआन-ए-मजीद पढ़ने वाले पूरे यक़ीन और इतमिनान से उसको पढ़ और उसका अध्यन कर। इन सारे सम्भावनाी आरोपों का अल्लाह तआला ने आरंभिक दो शब्द में निवारण फ़र्मा दिया है।

लेखक  नाज़िर दावत इलाल्लाह मर्कज़िया, उत्तर भारत, क़ादियान 

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1 टिप्पणी

Samiur Rahman · सितम्बर 4, 2022 पर 10:32 पूर्वाह्न

पृथ्वी पर सभी ईश्वरीय पुस्तकों में से केवल पवित्र कुरान ही है जो अनंत काल तक सुरक्षित रहने का दावा करता है। यह यह भी घोषणा करता है कि ईश्वर ने इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद ली है। और इसलिए यह सभी मानवीय हस्तक्षेपों से सुरक्षित है और हमेशा रहेगा।

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