फरहत अहमद आचार्य
तनाव क्या है ?
सामान्यतः बहुत से मानसिक रोग हैं जिन में से आजकल के आधुनिक तथा चमक दमक भरे युग में तनाव या Depression एक बड़ी चिंताजनक बीमारी बन कर उभर रहा है। यूं तो मनुष्य का उदास या निराश होना स्वाभाविक है और हम में से हर कोई भिन्न-भिन्न समय में उदास रहता है या हमारा मूड ऑफ होता है, लेकिन जब ये एहसास काफी लंबे समय तक बना रहे तो समझ जाइए कि वह तनाव की स्थिति है। यह एक ऐसा मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उसे अपना जीवन नीरस, खाली-खाली और दुखों से भरा लगता है। प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग कारणों से तनाव हो सकता है। किसी बात या काम का अत्यधिक दवाब लेने से यह समस्या पैदा हो जाती है। यह तनाव केवल सामान्य दुख नहीं है इसे दुनिया की नंबर एक सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य समस्या कहा गया है। इसमें कुछ लोग कुछ लक्षणों का अनुभव करते हैं तथा कुछ लोग कई अन्य लक्षणों का। लक्षणों की गंभीरता भी समय के साथ व्यक्तियों में भिन्न होती है।
यह क्यों होता है?
तनाव का सम्बन्ध किसी वर्ग विशेष, आयु विशेष या लिंग विशेष से नहीं है अपितु बहुत से सफ़ल व्यक्ति जिनको देख कर हम सोचते हैं कि सब कुछ उनके सामर्थ्य में है और बाहर से सुखी भी लगते हैं परन्तु वे भी तनाव से लड़ रहे होते हैं। ऐसे बहुत से कारण हैं जो तनाव की स्थिति तक ले जाते हैं उदाहरणतया कोई शारीरिक बीमारी, बचपन की कोई घटना, बेरोज़गारी, गरीबी, घरेलू कलह या प्यार में असफलता, प्रिय के साथ एक टकराव होना, काम पर एक सकारात्मक मूल्यांकन प्राप्त नहीं करना, भाई-बहनों की असहमति आदि। इसी प्रकार प्रमुख जीवन परिवर्तन, कोई आघात, यौन दुर्व्यवहार, मादक द्रव्यों के सेवन, गर्भावस्था, कैंसर, स्ट्रोक और मधुमेह जैसी पुरानी शारीरिक बीमारियां भी इसके कारणों में से हो सकती हैं। तनाव या Dipression किसी पुरानी बीमारी के कारण भी हो सकता है जैसे कैंसर, हार्दिक रोग, Back Pain या सर की चोट आदि और जिन दवाओं के द्वारा उनका इलाज किया जाता है उनके साइड इफेक्ट से भी तनाव की समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह भी एक रिसर्च है कि मर्दों की अपेक्षा स्त्रियाँ हर्मोनिकल परिवर्तनों के कारण तनाव की अधिक शिकार हो जाती हैं।
निराशा की पराकाष्ठा
प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर व्यक्ति की कोशिश होती है कि वह किसी मुकाम तक पहुंचे और कुछ बड़ा करके दिखाए और ऐसे ही कई मामलों में युवाओं में बढ़ता मानसिक तनाव अत्यंत दुर्भाग्यवश उनकी जीवन लीला समाप्त करने का कारण बन जाता है क्योंकि कई बार वे तनाव से मुक्ति पाने के लिए मौत को भी गले लगा लेते हैं। ज़रा सी नाराज़गी, सहनशक्ति का अभाव, घरेलू कलह तथा भावनाओं में बहकर खुदकुशी जैसे कदम उठाना युवाओं में अब कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन इन सबसे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाना कोई हल नहीं है। बल्कि इस तनाव से मुक्ति का उचित उपाय करना चाहिए जो कि असम्भव नहीं।
तनाव के लक्षण
सामान्य रूप से हमें तनाव के इन लक्षणों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए ताकि समय रहते हम इस बीमारी से बच सकें। जब ये निम्लिखित लक्षण निरंतर देखने में आएं तो हमें सतर्क हो जाना चाहिए:
- नींद न आना।
- ब्लड प्रेशर बढ़ना।
- थका हुआ महसूस करना।
- खाना ठीक से न पचना।
- खराब स्वास्थ्य।
- दिल तेज़ी से धड़कना।
- सिरदर्द।
- इम्यूनिटी सिस्टम कमज़ोर होना।
- निराशा।
- किसी भी काम में मन न लगना।
- छोटी-सी बात पर गुस्सा आना या आक्रामक हो जाना।
- चिड़चिड़ापन।
- आत्महत्या का विचार आना।
तनाव के बारे में इस्लामिक दृष्टि कोण
तनाव के बारे में इन्टरनेट पर बहुत कुछ लिखा जाता है आपने पढ़ा होगा परन्तु मैं उससे हट कर इसका इस्लामिक दृष्टिकोण आपके सामने रखना चाहता हूँ- पवित्र क़ुरआन स्पष्ट रूप से कहता है कि:
“अल्लाह किसी जान पर उसके सामर्थ्य से अधिक बोझ नहीं डालता। जो उसने (अच्छा काम) किया हो वह उसके लिए होगा और जो उसने (बुरा काम) किया होगा वह उसी पर पड़ेगा। हे हमारे रब्ब! अगर कभी हम भूल जाएँ या गलती कर बैठें तो हमें दण्ड न देना। हे हमारे रब्ब! तू हम पर वैसी ज़िम्मेदारी न डालना जैसी तूने उन लोगों पर डाली जो हमसे पहले गुज़र चुके हैं। हे हमारे रब्ब! और इसी प्रकार हम से वह बोझ न उठवा जिसके उठाने का हमारे अन्दर सामर्थ्य नहीं, और हमसे अनदेखा कर और हमें क्षमा कर दे और हम पर दया कर (क्योंकि) तू हमारा स्वामी है और काफिरों (अल्लाह तथा उसके अवतार का इंकार करने वालों) के मुकाबले पर हमारी सहायता कर।(सूरः बक़रः 2: 287)
जैसा कि पवित्र क़ुरआन की यह आयत कहती है कि “अल्लाह किसी जान पर उसके सामर्थ्य से अधिक बोझ नहीं डालता” इसलिए हमें अपने कर्तव्यों या इस जीवन को कभी बोझ नहीं समझना चाहिए। सबसे बहुमूल्य चीज़ जो है वह मनुष्य का स्वास्थ्य है, उसकी सेहत है हमें अपने जीवन में दैनिक कार्यों तथा ज़िम्मेदारियों के प्रति हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए और यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारे ऊपर जो ज़िम्मेदारियां हैं वे कदापि हमारे सामर्थ्य से अधिक या बाहर नहीं हैं। हम उन्हें निभा सकते हैं। अगर हम ऐसा विश्वास नहीं रखेंगे तो इसका बुरा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य और सेहत पर अवश्य पड़ेगा। फिर पवित्र क़ुरान में अल्लाह फरमाता है:
“तुम मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआ को सुनूंगा, तुम मुझसे मांगो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा (2:187)
वास्तव में जब मनुष्य अपना दुःख-दर्द किसी के सम्मुख वर्णन नहीं कर पाता तो वह अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहता है और वह दुःख दर्द आगे चल कर स्थाई रूप धारण कर तनाव का कारण बनता है।
इसी प्रकार हदीस में आता है हज़रत मुहम्मद स.अ.व. ने फ़रमाया कि एक व्यक्ति नमाज़ पढ़ते हुए जब सजदे में होता है तो वह अपने रब्ब के सबसे अधिक निकट होता है अतः तुम उस समय अपने रब्ब को पुकारो और उससे अपनी व्यथा कहो। जब मनुष्य अपने दर्द और तकलीफ को ख़ुदा के समक्ष कहेगा तो निश्चित रूप से उसका मन हल्का हो जाएगा और वह तनाव मुक्त रहेगा। और अल्लाह उसकी दुआ को सुनेगा और उसकी तकलीफ भी दूर हो जाएगी।
प्रतिदिन क़ुरान की तिलावत अनुवाद सहित करना अर्थात क़ुरान का कुछ भाग पढ़ना भी मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से सशक्त करता है और तनाव से दूर रखता है।
इस्लामी पांच नमाज़ों ने मानवीय जीवन को इतनी सुन्दरता से पांच भागों में विभाजित किया है कि यदि कोई यथासमय इसका पालन करे तो उसका मन तथा शरीर इससे स्वस्थ रहता है।
अधिकतर देखने में आता है समस्त भौतिक संसाधनों तथा ऐश्वर्यों से युक्त व्यक्ति को भी अपने जीवन में संतुष्टि नहीं मिलती और हमेशा एक कमी का आभास बना रहता है। वह स्वयं भी समझ नहीं पाता कि यह हार्दिक असंतुष्टि क्यों है और कहीं न कहीं यह असंतुष्टि भी उसे तनाव की ओर धकेल देती है, इसका हल पवित्र क़ुरान बताता है कि
“निस्सन्देह अल्लाह को याद करने से दिलों को संतुष्टि मिलती है” (13:29)
और यही सच है जिसकी आरम्भ से हज़ारों-लाखों नबी, ऋषि-मुनि, अवतार गवाही देते तथा इसका पालन करते आए हैं।
आज हमें भी पवित्र क़ुरान के इन दो आदेशों को मान कर अपने जीवन को तनाव मुक्त और स्वस्थ बनाना चाहिए कि
(1) ख़ुदा ने किसी पर उसके सामर्थ्य से अधिक बोझ नहीं डाला है अतः अपना भरसक प्रयत्न करें जीवन स्वयं ही सरल हो जाएगा और
(2) दूसरा सर्वदा ख़ुदा को याद करते रहें उसकी इबादत, महिमा और स्तुति करते रहें। यही इस सांसारिक जीवन का परम उद्देश्य है जैसा कि अल्लाह फ़रमाता है:
“हमने इंसानों तथा जिन्नों को केवल अपनी इबादत के लिए पैदा किया है” (58:57)
अल्लाह ताआला हमें तनाव जैसी मानसिक बीमारी से सुरक्षित रखे।
1 टिप्पणी
Sakil Pathan · सितम्बर 5, 2025 पर 6:29 अपराह्न
Mujhe chinta hai aur mai maut ke bare me kabr ke bare me jada sochta hoon aur neend nahi aata aur aata hai to a yaad aata hai ki aaj acha hoon ek din waqt aayega ki mai kabr me hoon marna hai abhi ya kuch sal baad a yaad aata hai Aur dill gam ghin ho jata hai fir nirasha rahta hai sarir kamjor rahta hai dill akela mahsoos karta hai Apne aapko allah duniya me hame ache se rakhe