प्रेम सभी से, घृणा किसी से नहीं: विश्व में शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय

इस्लाम की शिक्षा यह है कि हमें सभी मानव जाति से प्यार करना चाहिए, और किसी के लिए नफ़रत नहीं करनी चाहिए

प्रेम सभी से, घृणा किसी से नहीं: विश्व में शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय

इस्लाम की शिक्षा यह है कि हमें सभी मानव जाति से प्यार करना चाहिए, और किसी के लिए नफ़रत नहीं करनी चाहिए

अनसार अली ख़ान, ढेंकानाल

सच्चा धर्म हमें आपसी प्रेम और सद्भाव तथा विनम्र रहना सिखाता हैं, और बताता है कि हमें लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय अहमदिया मुस्लिम समुदाय के संस्थापक हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद साहेब क़ादियानी के तृत्तीय उत्तराधिकारी (ख़लीफ़ा) हज़रत मिर्ज़ा नासिर अहमद साहेब ने “प्रेम सभी से, घृणा किसी से नहीं” यह अविस्मरणीय नारा दिया था। इस का पृष्ठभूमि वर्णन करते हुए उन्होंने स्वयं एक अवसर पर कहा कि:

मैंने अपने जीवनकाल में पवित्र क़ुरआन का सैकड़ों बार ध्यान से अध्ययन किया है। इसमें एक भी आयत (वाक्य) नहीं है जो सांसारिक मामलों में एक मुस्लिम और एक गै़र-मुस्लिम के बीच अंतर सिखाती हो। इस्लामी शरीयत मानव जाति के लिए केवल दया और करुणा है। हज़रत मुहम्मद (स्व.अ.व) और आपके अनुयायियों ने प्रेम और करुणा से लोगों का दिल जीत लिया था, अगर हमें लोगों का दिल जीतना है तो प्यारे नबी और उनके अनुयायियों के पदचिन्हों पर चलकर उनका अनुसरण करना होगा, प्रेम से लोगों के मन को जीतना होगा। पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं का सारांश ‘प्रेम सभी से घृणा किसी से नहीं है। यही तरीक़ा है दिलों को जीतने का, इसके अतिरिक्त और कोई तरीक़ा नहीं है।”[1]

सन् १९८० में पश्चिम की यात्रा के दौरान पश्चिम जर्मनी में एक पत्रकार ने तत्कालीन अहमदिया मुस्लिम विश्व प्रमुख हज़रत मिर्ज़ा नासिर अहमद से उनके जीवन के उद्देश्य और दृष्टिकोण के बारे में पूछा तो उन्होंने तत्काल उत्तर दिया कि: मैंने अपना जीवन मानव जाति के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है, मेरे हृदय में मानव जाति के लिए प्रेम और करुणा का सागर है। आप ने कहा कि, मैं उन्हें कल्याण के लिए जो निस्संदेह सत्य की राह है, पर बुला रहा हूं। यहां भी प्रेम ही का संदेश लेकर आया हूं। मनुष्य मनुष्य से प्रेम करे, फलस्वरूप प्रेम ही जनम लेता है और प्रेम ही की सदैव विजय होती है और पूर्वाग्रह की सदैव पराजय होती है।[2]

लंदन में एक पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा:

“मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं और मैं राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। मेरा सन्देश सत्य धर्म का संदेश है जो कहता है कि मनुष्य और मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं है। सत्य धर्म हमें बिना किसी अपवाद के हर इंसान से प्यार करना सिखाता है उसके अधिकारों को हड़पना नहीं सिखाता है… ‘प्रेम सभी से, घृणा किसी से नहीं’ इस बुनियादी सिद्धांत पर कार्यरत हों।”[3]

आपने अंतर्राष्ट्रीय एकता और अखंडता का ऐसा अचूक उपाय बताया जिसकी आज भी दुनिया कायल है ,अपनी दूरदृष्टी से आने वाले ख़तरे को भांपते हुए आपने कहा:

“तृतीय विश्व युद्ध का ख़तरा मानव जाति के सिर पर मंडरा रहा है। इस संपूर्ण विनाश से बचने के लिए यह आवश्यक है कि सभी मानव जाति एकजुट होकर इस ख़तरे को दूर करने का प्रयास करें। ‘One God & One Humanity’ अर्थात ‘एक ईश्वर और एक मानव जाति’, इस के सिद्धांत पर एकजुट होना चाहिए।”[4]

दोस्तों ! मुहब्बत की तलवार एक ऐसी तलवार है जिस से कोई बच नहीं सकता। शांति स्थापित करने का एकमात्र तरीक़ा प्रेम और निःस्वार्थ सेवा के लिए मानव जाति के दिलों को जीतना है । ज्ञात हो कि विश्व शांति घातक हथियारों के माध्यम से नहीं बल्कि आपसी प्रेम और निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से होगी।

उन्होंने एक बार कहा था कि:

“दुनिया तेवर चढ़ाकर तथा लाल आँखो से तुम्हें देख रही है, तुम मुस्कुराते चेहरे से दुनिया को देखो। हम तो यह भी पसंद नहीं करते कि जो अपनी तरफ़ से हमारा विरोधी है… उसके पांव में कांटा भी चुभे।

“परम प्रतापी अल्लाह ने हमें दुआएं करने और क्षमा करने के लिए बनाया है, उसने हमें मानव जाति का दिल जीतने के लिए बनाया है। हमने न तो किसी को दुःख पहुंचाना है और न ही किसी को श्राप देना है। हमने सबके मंगलमय होने की कामना करते रहना है।”[5]

स्मरण रहे कि हमारी जमाअत (समुदाय) हर इंसान के कष्टों को दूर करने के लिए बनाई गई है । सदैव यह स्मरण रहे कि एक अहमदी कभी किसी से शत्रुता नहीं रखता और न रख सकता है। क्योंकि उसके रब ने  उसे प्रेम करने तथा सेवा के लिए जन्म दिया है।

दोस्तों ! ‘प्रेम सभी से, घृणा किसी से नहीं’ अहमदिया मुस्लिम समुदाय का वह आदर्श वाक्य है, जो इस्लाम की शिक्षाओं और समुदाय के संस्थापक हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद (अ.स) से प्रेरित है। यह आदर्श वाक्य सार्वभौमिक प्रेम और करुणा, सहनशीलता और स्वीकृति, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, अंतरधार्मिक समझ, हिंसा और उग्रवाद को अस्वीकार करना यह एक सुंदर फ़लसफ़ा है जो व्यक्तियों को उनकी पृष्ठभूमि, आस्था या विश्वास की परवाह किए बिना सभी लोगों के प्रति प्रेम, दया और सहानुभूति विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर हम एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं। जैसा कि हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद (अ.स) ने कहा, “इस्लाम की शिक्षा यह है कि हमें सभी मानव जाति से प्यार करना चाहिए, और किसी के लिए नफ़रत नहीं करनी चाहिए”।

आप ने क्या ही ख़ूब कहा कि:

“गालियां सुन के दुआ दो पा के दुःख आराम दो

किब्र की आदत जो देखो तुम दिखाओ इन्किसार।”

लेखक अहमदिया मुस्लिम समुदाय के प्रचारक हैं और अभी गोवा में सेवा कर रहे हैं

सन्दर्भ

[1] पश्चिम का दौरा पृ ५२३

[2] पश्चिम का दौरा १४०० ई

[3] पश्चिम की यात्रा १४००

[4] पश्चिम की यात्रा १४००

[5] शुक्रवार उपदेश १४ जून १९७४

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