जुलाई 29, 2023
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रेस विज्ञप्ति में अहमदिया मुस्लिम समुदाय तथा भारत में अहमदिया मुस्लिम समुदाय की कानूनी स्थिति के बारे में गलत और भ्रामक जानकारी है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा जारी एक हालिया प्रेस विज्ञप्ति में अहमदिया मुस्लिम समुदाय को “गैर-मुस्लिम” घोषित करने के वक्फ बोर्ड आंध्र प्रदेश के फैसले का समर्थन किया गया है। अहमदिया मुस्लिम समुदाय भारत, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के इस बयान को विभाजनकारी और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों के खिलाफ मानता है। उनकी प्रेस विज्ञप्ति में अहमदिया मुस्लिम समुदाय और भारत में अहमदिया मुस्लिम समुदाय की कानूनी स्थिति के बारे में गलत और भ्रामक जानकारी है। जमीयत उलमा हिन्द का यह बयान भारतीय कानून तथा इस्लामी शिक्षाओं दोनों के ही खिलाफ है।
अहमदिया मुस्लिम समुदाय बार-बार हर मौके पर हृदय से यह घोषणा करता आया है कि यह समुदाय दिलो जान से इस बात का इक़रार करता है कि “ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर् रसूलुल्लाह” अर्थात अल्लाह एक है और उसका कोई भागीदार नहीं और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के पैगंबर और ख़ातमुन्नबिय्यीन हैं, पवित्र क़ुरान अल्लाह की अंतिम शरीयत (धर्मविधान) है और हमें इस पर पूरा विश्वास है। इसी प्रकार अहमदिया मुस्लिम समुदाय अरकान-ए-इस्लाम और अरकान-ए-ईमान का पूरी तरह से पालन भी करता है। इसके बाद किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह कलिमा पढ़ने वाले अहमदी मुसलमानों को गैर-मुस्लिम घोषित करे।
भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों ने कई बार अहमदिया मुस्लिम समुदाय को इस्लाम के एक संप्रदाय के रूप में मान्यता दिए जाने के हमारे अधिकार को बरक़रार रखा है। उदाहरण के तौर पर भारतीय न्यायपालिका के प्रणेता माने जाने वाले जस्टिस वी० के० अय्यर ने 8 दिसंबर 1970 ई के अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि अहमदिया समुदाय इस्लाम का हिस्सा है। उन्होंने अपने फैसले में साफ कहा है कि ”भावनाओं को किनारे रखकर और मामले को कानूनी नज़रिए से देखते हुए मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि अहमदिया संप्रदाय इस्लाम का ही एक संप्रदाय है और कोई अजनबी संप्रदाय नहीं है।”
इसके अलावा, 1916 ई में पटना उच्च न्यायालय ने और 1922 ई में मद्रास उच्च न्यायालय ने भी अहमदिया मुस्लिम समुदाय को इस्लाम के एक संप्रदाय के रूप में मान्यता दी है। इसी तरह भारत की 2011 की जनगणना रिपोर्ट में अहमदिया मुस्लिम समुदाय को इस्लामिक संप्रदाय के रूप में गिना गया है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का इस संदर्भ में विभिन्न संगठनों के कुछ फतवों का हवाला देना बहुत अफसोस की बात है क्योंकि ऐसे फतवे राष्ट्रीय तथा धार्मिक एकता की भावना के खिलाफ हैं जो भारत की विशेषता है। फतवे, जिनकी कोई कानूनी हैसियत नहीं है, उनका उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान या स्थिति पर सवाल उठाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में फतवे कानून के बराबर नहीं हैं। और फतवे भी वह जिनका आधार इस्लामी शिक्षाओं पर नहीं बल्कि मौलवियों की मनगढ़ंत बातों पर है।
हम सभी धार्मिक संगठनों तथा राहनुमाओं से अनुरोध करते हैं कि वे अपनी ज़िम्मेदारी निभाएं और ऐसे बयान देने से बचें जो सामाजिक सद्भाव और धार्मिक एकता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके बजाय, आइए हम उस सहिष्णुता और अंतरधार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का प्रयास करें जिसके लिए इस्लाम खड़ा है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
Incharge Press and Media, Ahmadiyya Muslim Jama’at India.
Qadian-143516, dist. Gurdaspur, Punjab, India.
Mob: +91-9988757988, email: [email protected],
tel: +91-1872-500311, fax: +91-1872-500178
Noorul Islam Toll Free Number: 1800-103-2131
0 टिप्पणियाँ