इस्लाम में नारी का महत्व

इस्लाम में नारी का महत्व

अनसार अली ख़ान

MARCH 16, 2021

आधुनिक समाज में नारी सम्मान तथा नारी सशक्तिकरण के लिए हर तरफ़ से आवाज़ें उठ रही हैं और उठनी चाहिए भी । चाहे वह बाप की जायदाद में हिस्सा के लिए हो, दहेज प्रताड़ना हो या तलाक़ हो । अफसोस कि कुछ भ्रांत धारणाओं के चलते कुछ अविवेकी तथा इस्लाम धर्म की वास्तविक शिक्षा से अनजान लोग इस्लाम जैसा पवित्र और चहुं ओर से सम्पुर्ण धर्म पर यह आरोप लगाते हैं कि इस्लामी शरीयत नारी सम्मान की शिक्षा नहीं देता बल्कि उनके विरुद्ध अन्याय तथा ज़ुल्म की शिक्षा देता है।

दोस्तों ! कोई भी सच्चा धर्म अन्याय, अनीति व कुरीति की शिक्षा नहीं देता बल्कि धर्म का मुख्य उद्देश्य ही सन्मार्ग है । हमने पढ़ा है कि संस्कृत में एक कहावत है :- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, यत्रितास्तु न पूज्यन्ते सर्वस्तत्रपालं क्रिया: ।

अर्थात जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है, वहाँ फ़रिश्ते विराजते हैं, और जहाँ कभी नारी का अनादर होता है, सभी कार्य चाहे कितने ही श्रेष्ठ क्यों न हों अधूरा ही रहता है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने जीवन के हर भाग में महत्व प्रदान किया है । चाहे मां के रूप में हो, पत्नी के स्वरूप में हो , बेटी हो या बहन के रुप में हो । तात्पर्य है कि विभिन्न परिस्थितियों में नारी को सम्मान प्रदान किया है ।

पवित्र क़ुरआन में अल्लाह ताला फ़रमाता है :- और तेरे रब्ब ने फैसला कर दिया है कि तुम उसके सिवा किसी की उपासना ना करो , और माता-पिता से उपकार पूर्वक बर्ताव करो । यदि तेरे सामने उन दोनों में से कोई एक अथवा वह दोनों ही वृद्धावस्था में की आयु को पहुंचे तो उन्हें उफ़ तक न कह। और उन्हें झिड़क नहीं और उन्हें विनम्रता और सम्मान के साथ संबोधित कर ।

और उन दोनों के लिए दया भाव से विनम्रता के पर झुका दे और कह कि हे मेरे रब्ब ! इन दोनों पर दया कर जिस प्रकार इन दोनों ने बचपन में मेरा पालन-पोषण किया । (सूरह बनी इस्राईल आयत २४-२५)

हदीस में आता है एक व्यक्त्यि हज़रत मुहम्मद साहिब के पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज़्यादा अधिकारी कौन है ? आप ने उत्तर दिया तुम्हारी माता, उसने पूछा फिर कौन ? आपने फिर वही उत्तर दिया कि तुम्हारी माता, उसने पूछा फिर कौन ? आपने कहा तुम्हारी माता, उसने पूछा फिर कौन ? आप ने उत्तर दिया कि तुम्हारे पिता । मानो माता को पिता की तुलना में तीन गुना अधिक अधिकार प्राप्त है। आप स्वल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुख् निस्रुत वाणी में यह वाक्य अति प्रसिद्ध है कि आपने फ़रमाया था मां के क़दमों तले जन्नत है । एक अवसर पर आपने फ़रमाया :- अल्लाह की आज्ञाकारी माता-पिता की आज्ञाकारी में है और अल्लाह की अवज्ञा माता पिता की अवज्ञा में है। (तिर्मज़ी)

प्यारे दोस्तों ! जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज के इस आधुनिक समाज में महिलाओं को अधिकार तथा उनके विकास के लिए राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कइ नियम बनाए गए हैं और उनको उनके अधिकार दिलाने के लिए कइ सामाजिक संस्थाएं काम कर भी रही है ।

ज्ञात हो कि इस्लाम से पहले किसी धार्मिक विधान में औरत को संपत्ति में अधिकार प्राप्त नहीं था परन्तु मज़हब इस्लाम ने औरतों को संपत्ति का अधिकार बेटी के रूप में पिता की जायदाद से और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया ।

१९३० ई. में सुप्रसिद्ध ब्रिटिश लेखिका एनी बेसेंट ने कहा था :- ईसाई इंग्लैंड में संपत्ति में महिला के अधिकार को केवल २० वर्ष पहले ही मान्यता दी गई है जबकि इस्लाम में हमेशा से इस अधिकार को दिया गया है । यह कहना बेहद ग़लत है कि इस्लाम उपदेश देता है कि महिलाओं में कोई आत्मा नहीं है ,या उनका कोई अधिकार नहीं है । (जीवन और मुहम्मद की शिक्षाएं १९३२)

इसी तरह बीवी होने की हैसियत से उसे यह स्वतंत्रता दी कि अगर वोह चाहें तो अपने पति से स्वतंत्र हो सकती है। मतलब यह है कि जहां मर्द को तलाक़ की अनुमति है वहीं औरत को अपनी इच्छा से ख़ुला लेने का भी अधिकार प्राप्त है। और भी ढेरों अधिकार हैं मगर इस सीमित पृष्ठ में उनका वर्णन संभव नहीं है।

बेटी के रूप में सम्मान देते हुए हज़रत मुहम्मद स्वल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जिसने दो बेटियों का पालन-पोषण किया यहां तक कि वह बालिग़ हो गई और उनका अच्छी जगह निकाह करवा दिया वह इन्सान महाप्रलय के दिन हमारे साथ होगा ।आपने यह भी वर्णन किया कि जिसने बेटियों के प्रति किसी प्रकार का कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नर्क से पर्दा बन जाएंगी । (मुस्लिम)

इस्लाम बहन के रूप में नारी सम्मान का यह आदेश देता है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफा स्वल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया – जिस किसी के पास तीन बेटियाँ हों अथवा तीन बहनें हों उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा । (अहमद)

दोस्तों ! इस्लाम ने हर क्षेत्र में नारी सम्मान को स्वर्ग का द्वार बताया जिस मज़हब में जिस धर्म में नारी का यह महत्व है नारी को यह सम्मान दिया जाता हो उसके बारे में यह कहना कि वोह नारी सशक्तिकरण अथवा नारी सम्मान के विरुद्ध है तो यह घोर अन्याय है।

कुछ सामाजिक कुरीतियों के अंतर्गत नारी विधवा हो जाने पर उसे जिंदा जला दिया जाता था मगर मज़हब इस्लाम में विधवाओं को निकाह का भी अधिकार प्राप्त है। इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद पैगंबर का जिस अरब में प्रादुर्भाव हुआ उस समय बाज़ क़बीले अपने बच्चियों को ज़िंदा ज़मीन पर गाड़ देते थे । ऐसे अंधकारमय युग में आप का प्रादुर्भाव उन बच्चियों के लिए अथवा समाज के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था , किसी अमृत से कम नहीं था । आपने नारी सम्मान तथा नारी अधिकार को वह ऊंचाई प्रदान किया कि रहती दुनिया तक आपके नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।

रख पेश नज़र वक्त् बहन जब ज़िंदा गाड़ी जाती थी ,
घर की दीवारें रोती थी जब दुनिया में तु आती थी।
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लेखक अहमदिया मुस्लिम जमात सोलापुर के मिशनरी हैं |

2 टिप्पणियाँ

Rizwanara Begum · मार्च 24, 2021 पर 3:23 पूर्वाह्न

Assalamu alaikum w r w b…
Waqei ye sach hai ke islma ne Aurat ko mukhtalif hiquuq diy ahia… But Naari samaaj aaj bhi in hoqooq se anjan hen… Iski wajha ashiksha (taaleem kibkami) hai.. bahot achha blog hai.. aese hi social media ke zariye in baton ko aam karna hoga….
Mashallah.. international ahmadiyya muslim jamaat hi is azeem zimmedari ko nibh asakti hai.. aur dar asal inhin sab kam ke liye imaam e waqt ka Zahoor huabhai…. Jazakumullah

मुहम्मद अहमद · फ़रवरी 17, 2023 पर 6:58 पूर्वाह्न

इस्लाम मे नारी सम्मान सब्जेक्ट पर मदरसों मे तकरीरी कॉम्पीटिशन होना चाहिए

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