प्रेस रिलीज़
हज़रत आयशा के साथ पैगंबर मुहम्मद के विवाह के बारे में अपमानजनक टिप्पणी निंदनीय है
इतिहास के अनुसार, हज़रत आयशा (र ज़) अपने निकाह के समय नौ वर्ष की थीं और विवाह के समय बारह से चौदह वर्ष की थीं।
इतिहास के अनुसार, हज़रत आयशा (र ज़) अपने निकाह के समय नौ वर्ष की थीं और विवाह के समय बारह से चौदह वर्ष की थीं।
इस्लामी शिक्षा ऐसी पवित्र शिक्षा है जिसने मर्द और औरत को अलग अलग रखकर ठोकर से बचाया है और मानव का जीवन हराम और कड़वा नहीं किया जिससे यूरोप ने आए दिन के गृहयुद्ध और आत्महत्याएं देखीं।
खिलाफ़त इस्लाम की एकता को बनाए रखने का ईश्वरीय माध्यम है। यह एक ईश्वरीय व्यवस्था है जो मुसलमानों की आध्यात्मिकता को दृढ़ता प्रदान करता है।
वह मनुष्य जिसने अपने व्यक्तित्व से, अपने गुणों से और अपने कार्यों से सम्पूर्णता का उदाहरण दिखाया और सम्पूर्ण मानव कहलाया वह मुबारक नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के विषय में इस्लाम की प्रस्तुत की हुई शिक्षा अत्यधिक उत्तम और हर बुराई से पवित्र और हर अच्छाई से परिपूर्ण है। और इस्लाम की वर्णित सीमाएँ अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की खूबी को निखारने वाली और उसकी सुन्दरता को दोबाला करने वाली हैं।
“अहमदिय्यत एक [बौद्धिक] आयुध सामग्री कारखाना है जो असंभव को संभव बनाने के लिए तैय्यार किया गया है और एक शक्तिशाली मत है जो पहाड़ों को अपने स्थान से हिला देता है ”– पादरी सैमुएल मारिनस ज़्वेमर
राजा श्री कृष्ण जी महाराज वास्तव में एक ऐसे पूर्ण व्यक्ति थे जिनका उदाहरण हिंदुओं के किसी ऋषि और अवतार में नहीं पाया जाता। वह अपने समय केअवतार अर्थात नबी थे जिन पर ख़ुदा की ओर से रूहुल क़ुदुस (पवित्र आत्मा) उतरती थी। वह ख़ुदा की ओर से विजय प्राप्त और भाग्यशाली थे।
पश्चिमी दुनिया नारी स्वतंत्रता की अग्रदूत मानी जाती है। परन्तु क्या इतिहास में कोई ऐसी महान विभूति भी गुज़री है जिसने महिलाओं को उनके अधिकार इस प्रकार दिलाए हों कि वह आज भी सभ्य से सभ्य क़ौम तथा राष्ट्र के लिए मार्गदर्शक हैं?
हर साल मुहर्रम महीने के पहले दस दिन दुनिया भर के मुसलमान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में दुःख प्रकट करते है। 1400 साल पहले गुज़री इस घटना में जान देने वालों में अक्सर मुहम्मद (स अ व) के रिश्तेदार थे।
अतः जब मक्का वालों के मुख से इस बात की पुष्टि हो गई कि रसूले करीम स.अ.व यूसुफ़ के प्रारूप थे तथा यूसुफ़ के समान अल्लाह तआला ने उन्हें अपने भाइयों पर विजय प्रदान की थी उसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो फैसला सुनाया उसका उदाहरण न इतिहास प्रस्तुत कर सकता है न वर्तमान और भविष्य भी ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करने में सदैव अस्मर्थ रहेगा।