हम और हमारी पहचान

नमाज़ का क़ियाम, नमाज़ की बरवक़्त अदायगी हमारी शनाख़्त है जिसे अल्लाह तआला ने क़ुरआन-ए-करीम में और फिर हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद रसूल अल्लाह स. और ख़ुदा के पाक मसीह ने हमारे लिए मुक़र्रर कर दी है।

हम और हमारी पहचान

नमाज़ का क़ियाम, नमाज़ की बरवक़्त अदायगी हमारी शनाख़्त है जिसे अल्लाह तआला ने क़ुरआन-ए-करीम में और फिर हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद रसूल अल्लाह स. और ख़ुदा के पाक मसीह ने हमारे लिए मुक़र्रर कर दी है।

नमाज़ का क़ियाम, नमाज़ की बरवक़्त अदायगी हमारी शनाख़्त है जिसे अल्लाह तआला ने क़ुरआन-ए-करीम में और फिर हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद रसूल अल्लाह स. और ख़ुदा के पाक मसीह ने हमारे लिए मुक़र्रर कर दी है।

सय्यद शमशाद अहमद नासिर, अमेरिका

21 फ़रवरी 2024

यह लेख 5 नवंबर 2019 को अल फज़ल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ था। अनुवादक : इब्नुल मेहदी लईक एम ए

कुछ दिन हुए ख़ाकसार ने एक संपादकीय में पढ़ा कि हज़रत मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम ने एक शख़्स को यह नसीहत फ़रमाई कि

“हमारी पहचान की निशानी सिर्फ यह है कि जब नमाज़ का वक़्त आए तो वुज़ू कर के नमाज़ अदा कर लिया करो यह निशानी काफ़ी है।”

जब ख़ाकसार ने यह इरशाद पढ़ा तो तुरंत ज़हन आप अलैहिस्सलाम की एक और तहरीर और नसीहत की तरफ़ चला गया और वह नसीहत और इरशाद मजमूआ इश्तिहारात जिल्द सोम सफ़ा 48 पर यूं दर्ज है। आप जमात के अफ़राद को नसीहत करते हुए फ़रमाते हैं:

“सो तुम होशयार हो जाओ और वाक़ई नेक दिल और ग़रीब मिज़ाज और रास्तबाज़ बन जाओ। तुम पंजवक्ता नमाज़ और अख़लाक़ी हालत से शनाख़्त किए जाओगे।”

एक शनाख़्त तो हमने ख़ुद करानी है जिसकी वजह से इस जमात का क़ियाम अमल में आया है। इस बारे में हज़रत-ए-अक़दस मसीह मौऊद फ़रमाते हैं :

“यह सिलसिला बैअत तक़्वा शिआर लोगों की जमात के जमा करने के लिए है ताकि ऐसे मुत्तक़ियों का एक भारी गिरोह दुनिया पर अपना नेक असर डाले।

फ़रमाते हैं: “ख़ुदा तआला ने इस गिरोह को अपना जलाल ज़ाहिर करने के लिए और अपनी क़ुदरत दिखाने के लिए पैदा करना और फिर तरक़्क़ी देना चाहा है। ता दुनिया में मुहब्बत और तौबा नसूह और पाकीज़गी और हक़ीक़ी नेकी और अमन और सलाहियत और बनीनौ की हमदर्दी को फैला दे। सो यह गिरोह उस का एक ख़ालिस गिरोह होगा और वह उन्हें आप अपनी रूह से क़ुव्वत देगा और उन्हें गंदी ज़ीस्त से साफ़ करेगा और उनकी ज़िंदगी में एक पाक तबदीली बख़्शेगा।”[1]

यह वह शनाख़्त के पहलू हैं जो हज़रत मसीह मौऊद सारी जमात के अफ़राद से चाहते हैं। जिसमें नमाज़ और तक़्वा शामिल हैं। जो शख़्स बाक़ायदगी के साथ नमाज़ पढ़ता है इस की तो ख़ुदा तआला ने भी यूं तारीफ़ बयान फ़रमाई है।

اِنَّمَا یَعۡمُرُ مَسٰجِدَ اللّٰہِ مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰہِ وَالۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَاَقَامَ الصَّلٰوۃَ وَاٰتَی الزَّکٰوۃَ وَلَمۡ یَخۡشَ اِلَّا اللّٰہَ فَعَسٰۤی اُولٰٓئِکَ اَنۡ یَّکُوۡنُوۡا مِنَ الۡمُہۡتَدِیۡنَ

यानी अल्लाह की मसाजिद तो वही आबाद करता है जो अल्लाह पर ईमान लाए और यौम आख़िरत पर और नमाज़ क़ायम करे। और ज़कात दे और अल्लाह के सिवा किसी से ख़ौफ़ न करे।[2]

तिरमिज़ी अबवाबुत्तफ़्सीर में इसी आयत के तहत आँहज़रत स. का एक इरशाद यूं दर्ज है। हज़रत अबू सईद बयान करते हैं कि रसूल अल्लाह स. ने फ़रमाया: जब तुम किसी शख़्स को मस्जिद में इबादत के लिए आते-जाते देखो तो तुम उस के मोमिन होने की गवाही दो। इस लिए कि अल्लाह तआला फ़रमाता है

“अल्लाह की मसाजिद को वही लोग आबाद करते हैं जो ख़ुदा और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं।”[3]

नमाज़ का क़ियाम, नमाज़ की बरवक़्त अदायगी और नमाज़ बाजमाअत पढ़ने की तो वह हमारी शनाख़्त है जिसे अल्लाह तआला ने क़ुरआन-ए-करीम में और फिर हज़रत-ए-अक़दस मुहम्मद रसूल अल्लाह स.  और ख़ुदा के पाक मसीह ने हमारे लिए मुक़र्रर कर दी है। इसलिए इस में न तो नाग़ा हो और न ही और सुस्ती। ताकि क़ियामत के दिन हमारा शुमार उन लोगों में हो जो नजात और फ़लाह पाने वाले होंगे।

ख़ाकसार ने शुरू ही में लिखा है कि जमात अहमदिया के क़ियाम की वजह यह है कि ख़ुदा तआला के हुक़ूक़, इबादत इलाही और इस की तौहीद पर इन्सान पूरी तरह जम जाए और इस की यह खासियत फिर उस की तब्लीग़ में भी मददगार साबित होंगी। क्योंकि उस के तक़्वा का असर दूसरों को खींच लाने का कारण बनेगा। इंशा अल्लाह

कहते हैं कि एक दफ़ा एक शख़्स हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ के पास आया और उसने सवाल किया कि : मैं दीन की तब्लीग़ के लिए जा रहा हूँ। कोई ऐसा अमल बता दें जो दीन की तब्लीग़ में बहुत मददगार साबित हो। इमाम जाफ़र ने जो जवाब दिया इस में पूरा दीन बयान कर दिया गया है। आपने फ़रमाया:

“कोशिश करना कि दीन की तब्लीग़ के लिए तुम्हें अपनी ज़बान इस्तिमाल न करनी पड़े।”

हज़रत अक़दस मसीह मौऊद अलैहिस्सलाम ने अपनी जमात के दोस्तों के लिए कुछ नसीहतें भी इरशाद फ़रमाई हैं। आपकी तसनीफ़ अज़ाला औहाम सफ़ा 546 पर उन दोस्तों के लिए जो सिलसिला बैअत में दाख़िल हैं नसीहत की बातें लिखी हैं। जो हम सब के लिए अपनी ज़िंदगियों में अमल करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं। आप फ़रमाते हैं:

“ए मेरे दोस्तो जो मेरे सिलसिला बैअत में दाख़िल हो। ख़ुदा हमें और तुम्हें इन बातों की तौफ़ीक़ दे जिनसे वह राज़ी हो जाए। हम क्योंकर ख़ुदा तआला को राज़ी करें और क्योंकर वह हमारे साथ हो। इस का उसने मुझे बार-बार यही जवाब दिया कि तक़्वा से। सो ए मेरे प्यारे भाईओ कोशिश करो ता मुत्तक़ी बन जाओ। बग़ैर अमल के सब बातें हीच हैं और बग़ैर इख़लास के कोई अमल मक़बूल नहीं। सो तक़्वा यही है कि इन तमाम नुक़्सानों से बच कर ख़ुदा तआला की तरफ़ क़दम उठाओ और परहेज़गारी की बारीक राहों की रियाइत रखो। सबसे अव्वल अपने दिलों में इन्किसार और सफ़ाई और इख़लास पैदा करो और सच-मुच दिलों के हलीम और सलीम और ग़रीब बन जाओ कि हर एक ख़ैर और शर का बीज पहले दिल में ही पैदा होता है यद्यपि तेरा दिल शर से ख़ाली है तो तेरी ज़बान भी शर से ख़ाली होगी और ऐसा ही तेरी आँख और तेरे सारे अंग। हर एक नूर या अंधेरा पहले दिल में ही पैदा होता है और फिर रफ़्ता-रफ़्ता समस्त शरीर में फैल जाता है। सो अपने दिलों को हर-दम टटोलते रहो और जैसे पान खाने वाला अपने पाँव को फेरता रहता है और रद्दी टुकड़े को काटता है और बाहर फेंकता है। इसी तरह तुम भी अपने दिलों के मख़फ़ी ख़्यालात और मख़फ़ी आदात और मख़फ़ी जज़बात और मख़फ़ी मुलकात को अपनी नज़र के सामने फेरते रहो और जिस ख़्याल या आदत या मलिका को रद्दी पाओ उस को काट कर बाहर फेंको ऐसा न हो कि वह तुम्हारे सारे दिल को नापाक कर दे और फिर तुम काटे जाओ।

“फिर इसके बाद कोशिश करो और नीज़ ख़ुदा तआला से क़ुव्वत और हिम्मत माँगो कि तुम्हारे दलों के पाक इरादे और पाक ख़्यालात और पाक जज़बात और पाक ख़्वाहिशें तुम्हारे अंगों और तुम्हारी समस्त शक्तियों के माध्यम से प्रकट हों और पूर्ण हों ता तुम्हारी नेकियां कमाल तक पहुंचें क्योंकि जो बात दिल से निकले और दिल तक ही सिममित रहे वह तुम्हें किसी श्रेणी तक नहीं पहुंचा सकती। ख़ुदा तआला की महानता अपने दिलों में बिठाओ और इस के प्रताप को अपनी आँखों के सामने रखो।

“यदि निजात चाहते हो तो दीन अलाजायज़ इख़तियार करो और मिस्कीनी से क़ुरआन-ए-क्रीम का जा अपनी गर्दनों पर उठाओ कि शरीर हलाक होगा और सरकश जहन्नुम में गिराया जाएगा। पर जो ग़रीबी से गर्दन झुकाता है वह मौत से बच जाएगा। दुनिया की ख़ुशहाली की शर्तों से ख़ुदा तआला की इबादत मत करो कि ऐसे ख़्याल के लिए गढ़ा दरपेश है। बल्कि तुम इस लिए उस की प्रसतिश करो कि प्रसतिश एक हक़ ख़ालिक़ का तुम पर है। चाहिए प्रसतिश ही तुम्हारी ज़िंदगी हो जाए और तुम्हारी नेकियों का केवल यही उद्देश्य हो कि वह महबूब हक़ीक़ी और मुहसिन-ए-हक़ीक़ी राज़ी हो जाए क्योंकि जो इस से कमतर ख़्याल है वह ठोकर की है।

“ख़ुदा बड़ी दौलत है इस के पाने के लिए मुसीबतों के लिए तैयार हो जाओ। वह बड़ी मुराद है। इस को हासिल करने के लिए जानों को फ़िदा करो। अज़ीज़ो! ख़ुदा तआला के हुक्मों को बेक़दरी से न देखो। मौजूदा फ़लसफ़ा का ज़हर तुम पर-असर न करे। एक बच्चे की तरह बन कर उस के हुक्मों के नीचे चलो। नमाज़ पढ़ो नमाज़ पढ़ो कि वह तमाम सआदतों की कुंजी है और जब तू नमाज़ के लिए खड़ा होतो ऐसा न कर कि गोया तू एक रस्म अदा कर रहा है। बल्कि नमाज़ से पहले जैसे ज़ाहिरी वुज़ू करते हो ऐसा ही एक बातिनी वुज़ू भी करो। और अपने अंगों को ग़ैरुल्लाह के ख़्याल से धो डालो। तब इन दोनों वुज़ूओं के साथ खड़े हो जाओ और नमाज़ में बहुत दुआ करो और रोना और गिड़गिड़ाना अपनी आदत कर लो ताकि तुम पर रहम किया जाए।”

इस नसीहत के आख़िर पर हज़रत अक़दस मसीह मौऊद फ़रमाते हैं:-

“चाहिए कि इस्लाम की सारी तस्वीर तुम्हारे अस्तित्व में प्रकट हो और तुम्हारी पेशानियों में असर सुजूद नज़र आए और ख़ुदा तआला की बुजु़र्गी तुम में क़ायम हो तौहीद पर क़ायम रहो और नमाज़ के पाबंद हो जाओ और अपने मौला हक़ीक़ी के हुक्मों को सबसे मुक़द्दम रखो  और इस्लाम के लिए सारे दुख उठाओ।  وَلَا تَمُوْتُنَّ اِلَّا وَاَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ۔   (अनुवाद- तुम केवल इस हाल में मरना कि तुम मुसलमान हो)[4]

सन्दर्भ

[1] मजमूआ इश्तिहारात जिल्द अव्वल सफ़ा 196-198

[2] अत्तौबा 9:18

[3] हदीक़तुस्सालेहीन हदीस नंबर 259

[4] इज़ाला औहाम, रूहानी खज़ाइन, जिल्द 3, सफ़ा 546-552

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